कटते जंगल चिंता का विषय
रणधीर धाकरे
हे इंसानों मत काटो मुझको,
सीधा-सादा जंगल हूं मैं।
1. फिर तुम मुझ को दोष ना देना,
श्वास नहीं जब पाओगे।
मेरे अस्तित्व को याद करोगे,
आंखों से अश्रु बहाओगे।
इसीलिए कहता हूं सबसे,
संपूर्ण धरा का कंबल हूं मैं।
हे इंसानों मत काटो मुझको,
सीधा-सादा जंगल हूं मैं।
2. मेरे कारण वर्षा होती,
नित नवजीवन पाते हो।
प्राण दायिनी पवन को पाकर,
मन ही मन हर्षाते हो।
अभी समय है समझो मुझको,
आप सभी का मंगल हूं मैं।
हे इंसानों मत काटो मुझको,
सीधा-सादा जंगल हूं मैं।
3. थोड़ा- थोड़ा रोज काटते,
तिल तिल कर मैं मरता हूं।
इन जीव जंतु का क्या होगा,
यही सोच कर डरता हूं।
छोटे जीव की शरण स्थली,
बड़े जीव का दंगल हूं मैं।
हे इंसानों मत काटो मुझको,
सीधा-सादा जंगल हूं मैं।