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“धर्म और अंधविश्वास जनता को गुलाम बनाए रखने के औजार हैं, हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा : भगत सिंह

लखनऊ। 28 सितंबर वैज्ञानिक, तार्किक भौतिकवादी और स्पष्ट विचारधारा के प्रणेता महान क्रांतिकारी की जन्म जयंती की बधाई के साथ आइए पलटे इतिहास के इंकलाबी पन्ने।
भगत सिंह के जीवन में अपने परिवार के सदस्यों, महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों और पुस्तकों का कितना महत्वपूर्ण स्थान है और जानते है किस प्रकार परिवार के संस्कार बच्चों का भविष्य निर्धारित करते हैं। युवाओं के प्रेरणा स्रोत का अवतरण 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान में फैसलाबाद, पाकिस्तान) के बंगा गांव में एक सिख परिवार में हुआ था। उनका परिवार स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था और उनके क्रांतिकारी विचारों को परिवार के देशभक्ति के माहौल ने बहुत प्रभावित किया। इस पारिवारिक पृष्ठभूमि ने भगत सिंह के बाल मन पर गहरा असर डाला, और इसमें उनकी मां विद्यावती कौर की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। हालांकि, भगत सिंह पर सबसे अधिक प्रभाव उनके चाचाओं और घटनाओं जैसे जलियांवाला बाग हत्याकांड का पड़ा, लेकिन मां का भावनात्मक समर्थन और पारिवारिक मूल्यों का प्रसार उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था।अजीत सिंह, भगत सिंह के चाचा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी और देशभक्त थे। उनका योगदान मुख्य रूप से 1907 के पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन (1907) में अजीत सिंह ने पंजाब में ब्रिटिश सरकार की नींव हिला दी थी।किसान-विरोधी नीतियों, विशेष रूप से कैनाल कॉलोनी बिल और लैंड रेवेन्यू बिल के खिलाफ किसानों को संगठित किया।यह आंदोलन किसानों की एकता और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।अजीत सिंह ने अपने भाई स्वर्ण सिंह के साथ मिलकर भारत माता सोसाइटी की स्थापना की, जो एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन था।इस संगठन का उद्देश्य युवाओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित करना और स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा देना था।अजीत सिंह ने अपने ओजस्वी भाषणों और लेखों के माध्यम से जनता में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को प्रज्वलित किया।
उनके समाचार पत्र और पर्चे, जैसे कि पेशवा और भारत माता, क्रांतिकारी विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण थे।उनके भाषणों में देशभक्ति और बलिदान की भावना प्रबल थी, जिसने भगत सिंह जैसे युवाओं को प्रभावित किया।ब्रिटिश सरकार की नजरों से बचने के लिए अजीत सिंह को 1907 में भारत छोड़ना पड़ा। वे फारस, तुर्की, और अन्य देशों में गए, जहां उन्होंने गदर आंदोलन के साथ मिलकर काम किया।
विदेशों में रहते हुए निर्वासित जीवन जीते हुए भी उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने और क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने का काम किया।लगभग 40 वर्षों तक निर्वासन में रहे लगातार देश हित में कार्य करते रहे इन सभी नीतियों की कहानी भगत सिंह अपने माताजी और पिता जी से सुनकर और पढ़कर बड़े हुए।भगत सिंह ने अपने चाचा के बलिदान और देशभक्ति से प्रेरणा ली, जो उनके क्रांतिकारी जीवन का आधार बनी।अजीत सिंह का योगदान केवल पंजाब तक सीमित नहीं था; उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता संग्राम को गति दी। उनकी निर्भीकता, संगठन क्षमता, और जनता को जागृत करने की शक्ति ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भगत सिंह के जन्म के समय ही उनके पिता और चाचा (अजित सिंह व स्वर्ण सिंह) जेल में बंद थे, जो गदर पार्टी के सदस्य थे। बाल मन में क्रांति की जो अमिट गाथा चित्रित हुई उसने बलिदान की सुनहरी अमिट रेखा खींच दी। माता पिता सहित की महत्वपूर्ण भूमिका में भगत सिंह के चाचाओं, अजित सिंह और स्वर्ण सिंह, ने उनके जीवन में क्रांतिकारी विचारों, सशस्त्र संघर्ष और बलिदान की भावना को जागृत किया। अजित सिंह ने उन्हें वैचारिक दिशा दी, जबकि स्वर्ण सिंह की शहादत ने भावनात्मक रूप से प्रेरित किया।
यह प्रभाव भगत सिंह के लेखों, जैसे “मैं नास्तिक क्यों हूं” और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के मेनिफेस्टो में देखा जा सकता है, जहां समाजवादी और स्वतंत्रता के विचार उनके चाचाओं की शिक्षाओं से प्रेरित थे।
आज, 28 सितंबर 2025, भगत सिंह की जयंती पर, उनके चाचाओं का योगदान हमें याद दिलाता है कि एक क्रांतिकारी की नींव परिवार की प्रेरणा से ही मजबूत होती है।
वहीं माता विद्यावती का प्रभाव भगत सिंह के जीवन में गहरा और अप्रत्यक्ष था। एक माँ के रूप में, उन्होंने भगत सिंह को न केवल भावनात्मक बल दिया, बल्कि उनके क्रांतिकारी विचारों को पनपने के लिए एक ऐसा माहौल प्रदान किया, जिसमें देशभक्ति और बलिदान की भावना सर्वोपरि थी। उनकी दृढ़ता और नैतिकता ने भगत सिंह को एक निडर और आदर्शवादी क्रांतिकारी बनने में मदद की। भगत सिंह के बचपन से लेकर फांसी के फंदे तक कई बार माता का मूक समर्थन उनको आत्म बल देने के लिए काफी था।भगत सिंह के जीवन का सबसे मार्मिक पहलू उनकी मां से आखिरी मुलाकात था। उन्होंने मां को सांत्वना देते हुए कहा:
“मां, मेरी मौत पर आंसू मत बहाना। कहीं आप रो पड़ीं तो लोग कहेंगे कि भगत सिंह की मां रो रही हैं।”यह शब्द विद्यावती कौर के दिल को छू गए। भगत सिंह ने हमेशा अपनी मां की ममता से ऊपर भारत मां के प्रति समर्पण को रखा, लेकिन मां ने भी कभी अपने बेटे को रोका नहीं ।प्रेरणा का स्रोत
विद्यावती कौर का प्रभाव प्रत्यक्ष क्रांतिकारी प्रशिक्षण से अधिक भावनात्मक और नैतिक था। उन्होंने भगत सिंह को सिखाया कि कर्तव्य ममता से ऊपर होता है। भगत सिंह की जेल डायरी और लेखों में परिवार का उल्लेख कम है, लेकिन उनकी देशभक्ति की जड़ें इसी पारिवारिक समर्थन में निहित हैं। बाद में, जब अभिनेता मनोज कुमार ने 1965 की फिल्म ‘शहीद’ में भगत सिंह का किरदार निभाया, तो विद्यावती कौर ने उन्हें देखकर कहा, “तुम मेरे बेटे जैसे लगते हो।” यह उनकी मां के रूप में भगत की छवि को जीवंत करता है।
वही पिता किशन सिंह के देशभक्ति और सामाजिक सुधार के विचारों ने भगत सिंह को गहराई से प्रभावित किया। उनके घर का माहौल शुरू से ही क्रांतिकारी और देशभक्ति से भरा था, जिसने भगत सिंह के विचारों को आकार दिया।
भगत सिंह के जन्म के समय, किशन सिंह जेल में थे, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उनकी सक्रियता का प्रमाण है। इस घटना ने भगत सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।बल्कि उनके क्रांतिकारी विचारों को पनपने के लिए एक ऐसा माहौल प्रदान किया, जिसमें देशभक्ति और बलिदान की भावना सर्वोपरि थी। उनकी दृढ़ता और नैतिकता ने भगत सिंह को एक निडर और आदर्शवादी क्रांतिकारी बनने में मदद की।
परिवार के साथ वो भारतीय क्रांतिकारी जिन्होंने भगत सिंह के जीवन को बहुत प्रभावित किया उनमें प्रमुख रूप से
पंजाब केसरी के नाम से प्रसिद्ध लाला लाजपत राय भगत सिंह के लिए एक आदर्श थे।
1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज और उनकी मृत्यु ने भगत सिंह को गहरा आघात पहुँचाया।
इस घटना ने भगत सिंह को सांडर्स हत्याकांड (लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स की हत्या) के लिए प्रेरित किया, जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की एक बड़ी कार्रवाई थी।चंद्रशेखर आज़ाद भगत सिंह के निकटतम साथी और HSRA के प्रमुख नेता थे। जिनकी निडरता, संगठन क्षमता, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की रणनीति ने भगत सिंह को गहराई से प्रभावित किया।आज़ाद की “आज़ाद” रहने की प्रतिज्ञा और उनकी नेतृत्व शैली भगत सिंह के लिए प्रेरणादायक थी। वही काकोरी कांड (1925) के नायक रामप्रसाद बिस्मिल भगत सिंह के लिए एक प्रेरणा स्रोत थे।बिस्मिल के क्रांतिकारी लेख, कविताएँ (जैसे “सरफरोशी की तमन्ना”) और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की गतिविधियों ने भगत सिंह को सशस्त्र क्रांति की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया।
सुखदेव थापर, शिवराम राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त भगत सिंह के सबसे करीबी साथी थे।
सांडर्स हत्याकांड और असेंबली बम कांड (1929) में उनकी भागीदारी और बलिदान की भावना ने भगत सिंह को और दृढ़ किया।सुखदेव की रणनीतिक सोच और राजगुरु की निडरता ने भगत सिंह के क्रांतिकारी कार्यों को बल दिया।
अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी और विचारको की यदि बात की जाए तो भगत सिंह कार्ल मार्क्स और लेनिन के विचारों से प्रभावित थे
भगत सिंह समाजवादी और साम्यवादी विचारों से गहराई से प्रभावित थे। उन्होंने कार्ल मार्क्स और व्लादिमीर लेनिन की रचनाएँ पढ़ीं, जिनमें सामाजिक समानता और शोषण के खिलाफ संघर्ष के विचार थे।
उनकी पुस्तकें और लेख, जैसे “मैं नास्तिक क्यों हूँ” और जेल नोटबुक, उनके समाजवादी विचारों को दर्शाते हैं।
रूसी क्रांति (1917) ने भगत सिंह को यह विश्वास दिलाया कि सशस्त्र क्रांति और जन-जागरण स्वतंत्रता और सामाजिक बदलाव ला सकता है।
भगत सिंह ने पश्चिमी लेखकों और विचारकों की रचनाएँ पढ़ीं, जिनमें विक्टर ह्यूगो की किताबें और जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के समाजवादी विचार शामिल थे।
इन लेखकों ने उनकी वैचारिक समझ को और गहरा किया।
भगत सिंह ने इटली के एकीकरण में ग्यूसेप गैरीबाल्डी और मेजिनी की क्रांतिकारी गतिविधियों से प्रेरणा ली।
मेजिनी की “यंग इटली” ने भगत सिंह को युवाओं को संगठित करने और क्रांतिकारी संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया।
इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाएं जिन्होंने भगत सिंह के जीवन में गहरी छाप छोड़ी उनमें मुख्यतः
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग नरसंहार ने भगत सिंह को गहराई से प्रभावित किया।
उस समय 12 वर्षीय भगत सिंह घटनास्थल पर गए और खून से सनी मिट्टी को एकत्र किया, जो उनके लिए ब्रिटिश अत्याचारों का प्रतीक बन गया। इसी कांड ने बंदूकों की फसल उगाने और फिर असंख्य बंदूक उगने पर उनसे अग्रेजों को मारने को प्रेरित किया।इस घटना ने उनके मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की भावना को जन्म दिया। दूसरी महत्वपूर्ण घटना
सिख गुरुद्वारे ननकाना साहिब में हुए नरसंहार ने भगत सिंह को धार्मिक और सामाजिक अन्याय के खिलाफ और अधिक जागरूक किया। चौरी-चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेने से भगत सिंह निराश हुए।इस घटना ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि अहिंसक तरीके ब्रिटिश शासन को उखाड़ने में अपर्याप्त हैं, जिसके कारण वे सशस्त्र क्रांति की ओर मुड़े। भगत सिंह ने महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन बनाए जिसमें
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) है।
भगत सिंह ने 1928 में HRA को पुनर्गठित कर HSRA बनाया, जिसमें समाजवादी विचारों को शामिल किया गया।
इस संगठन के अन्य सदस्य, जैसे बटुकेश्वर दत्त, जतिंद्रनाथ दास, और शिव वर्मा, ने भगत सिंह के साथ मिलकर कई कार्रवाइयाँ कीं, जो उनकी प्रेरणा का हिस्सा बने।भगत सिंह ने 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की, जो युवाओं को क्रांतिकारी विचारों और समाजवाद के लिए प्रेरित करने का मंच थी।
इस संगठन ने भगत सिंह के नेतृत्व को और मजबूत किया।
भगत सिंह के जीवन में ये क्रांतिकारी और घटनाएँ उनके विचारों, दृढ़ संकल्प और बलिदान की भावना के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं। उन्होंने न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया, बल्कि सामाजिक समानता और शोषण के खिलाफ संघर्ष के लिए भी एक वैचारिक आधार प्रदान किया। भगत सिंह ने इन प्रेरणाओं को आत्मसात कर एक ऐसे क्रांतिकारी बन गए, जिनका प्रभाव आज भी युवाओं को प्रेरित करता है। जाति ,धर्म समुदाय वाद से ऊपर उठकर कई पीढियो से युवाओं की प्रेरणा स्रोत अमिट छवि रखने वाले क्रांतिकारी है।
विभिन्न अध्ययनों और सूचियों (जैसे जगरण जोश, एडसिस, द फेमस पीपल) में वे नंबर एक पर हैं। उनकी शहादत (23 मार्च 1931, मात्र 23 वर्ष की आयु में फांसी) ने उन्हें अमर बना दिया और हमें आजाद।
किताबें पढ़ने से विचारधारा जन्म लेती है,आज भी, “इंकलाब जिंदाबाद” और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे नारे युवाओं में प्रासंगिकता के साथ गूंजते हैं।
@रीना त्रिपाठी अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ सर्वजन हिताय संरक्षण समिति।

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