उत्तर प्रदेश

वंदेमातरम में देशभक्ति की प्रेरणा

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

वंदे मातरम दो शब्दों का वाक्यांश मात्र नहीं है। बल्कि इसमें राष्ट्र सेवा और साधना का संकल्प समाहित है। स्वतंत्रता संग्राम में यह शब्द असंख्य लोगों को प्रेरणा देता था। स्वतंत्रता संग्राम में इसका उद्घोष देशभक्ति की ऊर्जा का संचार करता था। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा में इसका गायन हुआ था। 1875 में वंदे मातरम का गीत लिखा गया था। देश 1947 में स्वतंत्र हुआ। 1950 में संविधान को स्वीकार किया गया। संसद में पहले वंदे मातरम संसद में गाया नहीं जाता था। राम नाईक ने लोकसभा में वंदे मातरम को लेकर प्रस्ताव किया।
उनका प्रयास सफल हुआ। 1992 में लोकसभा व राज्यसभा में सत्र के पहले दिन जन गण मन सत्र के अंतिम दिन पर वंदे मातरम प्रारंभ हुआ। राम नाईक से यह प्रश्न किया गया था कि वंदे मातरम के केवल कुछ ही वाक्यांश ही गाए जाते हैं। पूरा वंदे मातरम गीत नहीं गया जाता। तब राम नाईक ने कहा कि था कि हमने एक शुरुआत कर दी है। इसके लिए एक जन जागरण की जरूरत है। लोग प्रयास करें तो एक न एक दिन पूरा वंदे मातरम भी गया जाएगा। यह गीत बंकिम चंद्र
चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित किया था। इसके अगले चरणों में देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का उल्लेख है। 1937 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने फैजपुर में निर्णय लिया कि वंदे मातरम के केवल दो टुकड़े ही गाए जाएंगे। संविधान सभा ने इसे राष्ट्रगीत का स्थान दिया। आनंद मठ अठारहवीं सदी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित है। उपन्यास में संन्यासी ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध विद्रोह करते है। मातृभूमि की देवी रूप में आराधना की गई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद देश में निराशा थी। उस समय वंदे मातरम ने जनमानस में आशा का संचार किया। इससे ब्रिटिश सत्ता भी परेशान हुई।1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में इसे गाया जबकि 1905 में बंग भंग आंदोलन के दौरान यह विरोध का प्रमुख नारा बना।
अंग्रेज ने भयभीत होकर 1907 में इस गीत को प्रतिबंधित कर दिया। मुस्लिम लीग ने इस विषय पर अंग्रेजों का साथ दिया। इसके दो वर्ष बाद कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में अध्यक्ष सैयद अली इमाम ने वंदे मातरम का विरोध किया। इस पर विचार हेतु एक कमेटी बनाई गई। रवींद्र नाथ टैगोर, नेहरू,अबुल कलाम आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस इसके सदस्य थे। यह किया गया कि गीत के शुरू के दो पद्य दो गाए जाएंगे। संविधान सभा के अंतिम दिन इसका गायन हुआ था। स्वतंत्रता की मध्य रात्रि में भी इसका गायन हुआ था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि वंदे मातरम् केवल एक शब्द नहीं बल्कि यह एक मंत्र, एक ऊर्जा, एक सपना और एक संकल्प है। यह भारत की आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह गीत मां भारती के प्रति भक्ति और समर्पण की प्रतीक भावना है जो हमें अपने अतीत से जोड़ता है, वर्तमान में आत्मविश्वास भरता है और भविष्य के लिए साहस देता है।
वंदे मातरम् का मूल भाव है भारत मां भारती भारत की शाश्वत संकल्पना। जब यह चेतना शब्दों और लय के रूप में प्रकट हुई तब वंदे मातरम् जैसी रचना सामने आई। गुलामी के दौर में यही उद्घोष भारत की स्वतंत्रता का संकल्प बन गया था। बंकिम बाबू ने मां भारती को ज्ञान की देवी सरस्वती समृद्धि की देवी लक्ष्मी और शक्ति की देवी दुर्गा के रूप में चित्रित किया। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने राजभवन में बच्चों के साथ वंदे मातरम का गायन किया। उन्होंने कहा कि बंकिम चंद्र चटोपाध्याय एक राष्ट्रवादी लेखक और चिंतक थे, उनके घर में देश की आ ज़ादी के लिए रणनीतियों पर चर्चा होती थी। जब उनकी पुत्री ने जिज्ञासा प्रकट की कि भारत माता कौन है। तब उसी प्रेरणा से उन्होंने वंदे मातरम की रचना की। यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन का सूत्र बन गई। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ भारत की भक्ति व शक्ति की सामूहिक तथा शाश्वत अभिव्यक्ति का स्वरूप है। यह स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अमर मंत्र बना था। यह वही भाव है,जो वैदिक वाक्य ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ से प्रकट होता है। राष्ट्र प्रथम के भाव के साथ हम सब की सामूहिक अभिव्यक्ति राष्ट्र माता के प्रति होनी चाहिए।

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