बलभद्र, बलदाऊ, बलराम (हलधर) जन्मोत्सव
शेषनाग अवतार बलराम जी, श्री कृष्ण के बड़े भाई थे। जिनको बलदाऊ या हलधर के नाम से भी जाना जाता है । वह अपने साथ गदा या हल धारण करते थे । इसलिए उन्हें हलधर कहा जाता है।
बलराम जी का जन्म भाद्रपद महीने में, कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था इसीलिए इस दिन को उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है ।
पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन है कि बलराम शेषनाग के अवतार थे । ऐसा माना जाता है कि, धरती पर जब जब धर्म की स्थापना के लिए श्री हरि ने अवतार लिया तब तब शेषनाग ने भी उनका साथ देने के लिए किसी ना किसी रूप में जन्म लिया है ।
त्रेता युग में विष्णु जी के अवतरण श्री राम के समय उनका लक्ष्मण जी के रूप में जन्म हुआ है । वहीं द्वापर में श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप में बलराम का जन्म भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था । इनका एक नाम संकर्षण भी है।
ये यदुकुल के थे और वृष्णि वंश यानि चन्द्र वंशी थे। कहते हैं कि देवकी व वासुदेव के ये सातवें पुत्र थे। जिन्हें योगमाया ने संकर्षित करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था।
यह महाभारत काल की घटना है। इनकी एक बहन थी जिनका नाम सुभद्रा था। इनकी पत्नी का नाम रेवती था। ये गदा धारण करते थे। कंस की मल्लशाला में जब श्री कृष्ण ने चारुण को पछाड़ा था तो बलराम जी ने अपनी मुष्टि के प्रहार से उसका वध किया था। ये इतने बलशाली थे।
यदुवंश के उपसंहार के बाद शेषावतार बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला को समाप्त किया।
इनको बलभद्र भी कहा जाता है क्योंकि यह सभी वीरों में अतुल बलशाली थे। परन्तु महाभारत के युद्ध में इन्होंने लड़ाई नहीं लड़ी थी। क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही उनके अच्छे मित्र थे। वे किसी एक के विरोध में नहीं खड़े होना चाहते थे। लेकिन श्री कृष्ण ने जब पांडवो का साथ दिया तो वे उनका साथ भी नहीं छोड़ सकते थे। अतः अपना धनुष बाण दुर्योधन को सौंप कर तीर्थ यात्रा पर चले गए थे। इस दिन मथुरा के समीप दाऊजी स्थान पर भव्य मेला दंगल आदि का बड़ा आयोजन होता है। दूर दूर से यहां लोग एकत्रित होते है और इनका जन्मोत्सव सभी हर्सोल्लास के साथ मनाते हैं।
जय जय श्री कृष्ण बलराम।।
प्रोफेसर दिग्विजय कुमार शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार, लेखक
आगरा