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सदी की भीषणतम ट्रेन दुर्घटना हादसा, लापरवाही या षड्यंत्र  और फिर सियासत ! 

मृत्युंजय दीक्षित 

भारतीय रेलवे के इतिहास में ओडिशा के बालसोर और भद्रक के बीच बाहनगा बाजार स्टेशन के पास हुई भीषण रेल दुर्घटना से संपूर्ण भारत दुखी है, जहां भी लोग एकत्र हो रहे हैं वहां इसी  दुर्घटना की चर्चा हो रही है और स्थान- स्थान पर एकत्र लोग मृत लोगों  के प्रति संवेदना प्रकट कर रहे हैं और घायलों के शीग्र  स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे है। इस ट्रेन दुर्घटना में 280 से अधिक लोगों  की मौत और एक हजार से अधिक लोगों का घायल हो जाना ह्रदय विदारक  है । 
दुर्घटना की भयावहता का पता वहां से आ रही तस्वीरों  से ही लग रहा है किंतु इन बेहद विपरीत परिस्थितियों  में भी स्थानीय समुदाय ने जैसे त्वरित रूप  से पीड़ित यात्रियों की सहायता की है वह अभूतपूर्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्घटनास्थल का तत्काल दौरा किया,अस्पतालों में जाकर दुर्घटना में घायलों का हाल जाना और स्थिति की समीक्षा की। रेलवे और भारत सरकार ने भी तत्काल घायलों को 50 हजार व मृतकों के परिजनों को दस लाख की अग्रिम सहायता की घोषणा की है। इस ट्रेन दुर्घटना का समाचार आते ही केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव व शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी जिस जीवटता का परिचय दिया है, वह अतुलनीय है। 
संघ व समाज ने प्रस्तुत किया  मानवता का उदहारण - सदी की भीषणतम ट्रेन दुर्घटना में स्थानीय समाज के लोगों ने जिस प्रकार सेवा की वह अप्रतिम है ।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सैकड़ों स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्य में जुटे रहे। संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंच गये। जहां पर दुर्घटना हुई थी उसके पास स्थित गांव बाहनगा में संघ की शाखा होने के करण वहां के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचे और फिर उनकी सूचना पर सैकड़ों की संख्या में स्वयंसेवक वहां पर पहुंच गये,अस्पतालों में रक्तदान के लिए भारी भीड़ पहुंच गयी। स्वयंसेवकों ने 550 यूनिट रक्तदान किया। स्थानीय मेडिकल स्टोर के मालिकों  ने पीड़ितों के लिए अपना मेडिकल स्टोर पूरी तरह से फ्री कर दिया।युवाओं ने पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाने के लिये अपनी बाइक, टेंपो, टैक्सी आदि निजी वाहनों का भी इस्तेमाल किया। आम जनता ने पीड़ितों के लिए भोजन, पानी आदि की व्यवस्था की। 
ओड़िशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना की सीबीआई जांच भी प्रारम्भ हो गयी है क्योंकि प्रारम्भिक जांच के दौरान ऐसी जानकारियां सामने आयी हैं जो किसी षड्यंत्र की दिशा में जाती लग रही हैं । रेलवे अधिकारियों  का कहना है कि सिस्टम में जानबूझकर हस्तक्षेप के बिना ये संभव नहीं है कि ट्रेन के लिए निर्धारित मार्ग को मुख्य लाइन से लूप लाइन में बदल दिया जाये।
कैसे हुयी थी दुर्घटना ? - बालासोर में बाहनगा बाजार स्टेशन के पास चेन्नई से हावड़ा जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से टकरा गयी थी इसके बाद कोरोमंडल के कई डिब्बे पटरी से उतर गये थे ये डिब्बे पास वाली लाइन से गुजर रही यशवंतपुर -हावड़ा एक्सप्रेस से टकरा गये थे। 
भारतीय रेलवे के अमृतकाल में जिन परिस्थितियों में यह ट्रेन दुर्घटना हुई उससे कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं जिनसे प्रतीत हो रहा  है कि यह महज एक हादसा नहीं अपतु सोची- समझी साजिश है। वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रेलवे में ड्रीम प्रोजेक्ट वंदे भारत एक्सप्रेस का कार्य अंतिम चरण में प्रवेश कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने का भी विपक्ष द्वारा मजाक उड़ाया जा रहा है। वंदे भारत ट्रेनों पर  विरोधी दलों  के कर्यकर्ता कहीं पत्थरबाजी कर रहे हैं और कहीं रेलवे ट्रैक पर जानवर घुसाकर वंदेभारत को डिरेल करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल में रेलवे में बड़ा बदलाव आया है इसके अंतर्गत अब स्टेशनों का अधुनातन तरीके से कायाकाल्प किया जा रहा है। वंदे भारत ट्रेने पूरी तरह से स्वदेशी है उस पर भी विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार पुराने डिब्बों  को नया कर वंदेभारत के नाम पर चला रही है। यह भी कहा गया कि सरकार अब केवल वंदे भारत ट्रेन में चलने वाले यात्रियों को यात्री मानकर काम कर रही है। कोरोमंडल एक्सप्रेस की दुर्घटना के बाद वंदे भारत एक बार फिर निशाने पर आ गयी । 
मोदी सरकार में भारतीय रेलवे आत्मनिर्भरता की ओर तीव्रता से बढ़ रहा है। रेलवे अब चीनी उत्पादों पर निर्भरता को कम कर रहा है जिसका असर दिखायी पड़ रहा है। भारत की पहली बुलेट ट्रेन का काम भी गति पकड़ चुका है। यही कारण है कि चीन परस्त विरोधी दल लगातार मोदी सरकार की तीखी आलोचना कर रहे हैं। 
अब यह बात बिल्कुल सत्य प्रतीत हो रही है कि जिस विपक्ष ने कभी कुछ किया ही नहीं और जिन लोगों ने नकारात्मक ढंग से केवल रेलवे को भ्रष्टाचार का अडडा बना दिया वहीं लोग आज रेल मंत्री का इस्तीफा मांग रहे हैं और पूरी तरह से गलत व झूठ पर आधरित बयानबाजी कर रहे हैं।
विपक्ष के हमलों के बीच भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व रेल मंत्रियों नीतीश कुमार, लालू यादव और ममता बनर्जी के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया है। पूर्व रेल मंत्री नीतीश कुमार जो आजकल वर्तमान रेल मंत्री से इस्तीफा मांग रहे हैं अपना इतिहास भूल गये है। जब वह रेल मंत्री थे तब 79 बार दो ट्रेनों की आपस में टक्कर हुई और सर्वाधिक एक हजार बार ट्रेनें बेपटरी हो गयीं जिसमें 1,527 मौतें हुई वहीं लालू प्रसाद यादव जो दुर्घटना के बाद अनाप- शनाप बयानबाजी कर रहे हैं उनके कार्यकाल में 51 बार ट्रेनों  की टक्कर हुई और 550 बार पटरी से उतरी तथा 1,159 मौतें हुई वहीं ममता बनर्जी जो आजकल मोदी विरोधी मोर्चा बनाकर 2024 में प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही है उनके कार्यकाल में 54 बार ट्रेनों की टक्कर हुई 839 बार बेपटरी हुई और 1451मौतें हुयी है। 
विपक्ष के जितने भी नेता अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा मांग रहे हैं और सरकार की आलोचना कर रहे हैं उन सभी को अपना कार्यकाल याद रखना चाहिए। यह लोग कभी घटनास्थल पर नहीं जाते थे और केवल दुख व्यक्त कर देने की खानापूरी कर देते थे। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की असली नाराजगी यह है कि उन्होंने आने कार्यकाल में रेलवे में जो घोटाला किया है अब वह जांच अंतिम चरण में पहुंच चुकी है और गर्मी के अवकाश के बाद संभव है कि रेलवे में घोटाला करने वाला लालू परिवार जेल चला जाये।वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व उनकी सरकार के कई मंत्री घोटालों में बुरी तरह से फंस रहे हैं जिसमें कुछ जेल जा चुके हैं और कुछ जाने की तैयारी में है। इन सभी मंत्रियों ने रेल बजट तो कई बार पेश किया है लेकिन कभी उसमें कोई भी लक्ष्य नहीं प्राप्त हो सका है और यही नाकाम व नकारा लोग सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि,”ट्रेन में कवच सिस्टम क्यों नहीं था?” 
सबसे बड़ी बात यह है कि जब सदी की भीषणतम दुर्घटना की जांच सीबीआई ने प्रारम्भ कर दी है और वह दुर्घटनास्थल पर पहुंच गयी है तब इन्हीं दलों ने सीबीआई जांच का भी विरोध शुरू कर दिया है जिससे इन दलों का विकृत दोमुंहापन उजागर हो रहा है और इन सभी दलों  पर संदेह उठना स्वाभाविक भी है की कहीं यह सभी दल साजिशकर्ता देशद्रोही ताकतों  के हाथों में तो नहीं चले गये हैं।
आज यह विपक्षी दल जिस सुरक्षा कवच की बात कर रहे हैं वह वर्ष 2022 के बजट में आया और अभी देश के दो फीसदी हिस्सों में ही है तथा संपूर्ण भारत में यह सुरक्षा कवच पहुंचने में लंबा समय लेगा । विपक्षी दलों के नेताओं के बयानों  से लगता है कि वह केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने का असफल प्रयास कर रहे हैं और उन्हें रेलवे तकनीक का ज्ञान ही नहीं है। आज का विपक्ष आपदा में केवल अपने लिए अवसर की खोज कर रहा है। रेलवे विशेषज्ञों  का कहना है कि अगर सुरक्षा कवच लगा भी होता तो भी दुर्घटना को नहीं रोका जा सकता था।ट्रेन दुर्घटना ट्रेन के बेपटरी होने की वजह से हुई है और वहीं दूसरी ओर उसके साथ भारत का विपक्ष भी बेपटरी हो गया। 
अमेरिका दौरे पर गये कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि जब कांग्रेस की सरकारों में ट्रेन दुर्घटनाएं होती थीं उसके मंत्री अपनी जिम्मेदारी मानकर इस्तीफा दे देते  थे किंतु अबकी बार इतनी बड़ी दुर्घटना हो जाने के बाद कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं लेना चहा रहा। संपूर्ण विपक्ष केवल “इस्तीफा दो, इस्तीफा दो” का नारा लगाता रहा जबकि मंत्री अश्विनी वैष्णव ग्राउंड जीरो पर लगातार काम करते रहे और जब तक पूरा ट्रैक खाली नहीं हो गया और स्थितियां सामान्य नहीं हो गयी तब तक वह वहीं अपने कर्तव्यपथ और सेवापथ पर डटे रहे। यहां पर सबसे ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि रेल मंत्रालय के अब तक इतिहास में वह सबसे पढ़े लिखे रेल मंत्री बने हैं और वहां के हालातों को अच्छी तरह से समझते भी हैं। यही कारण है कि भीषणतम संकट और चुनौतियां आने के बावजूद वह वहां पर डटे रहे जिसकी आज सोशल मीडिया पर जमकर प्रशंसा की जा रही है। उन्होंने एक -एक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया और कई बार वह भावुक भी हुए। केंद्रीय स्वास्थ मंत्री मनसुख मांडविया ने भी घटनास्थल पर जाकर पीड़ितों से मुलाकात की और अस्पतालों की व्यवस्था का जायजा लिया। तत्परता से सथियों को सामान्य बनाने का यह संयुक्त प्रयास था ।

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