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उभय पक्ष में खड़े हैं अपने तीर चलाऊँ किस ठौर

डीके श्रीवास्तव

आगरा। 'मनुष्य के संस्कार ही उसके भविष्य, चरित्र तथा कीर्ति के लिए उत्तरदायी हैं। जहां धृतराष्ट्र अपने पुत्रों और शत्रु पक्ष के बीच हो रहे युद्ध के लिए चिंता कर रहे हैं, वहीं अर्जुन को दोनों ही पक्षों में अपने दिखाई दे रहे हैं। महा पराक्रमी अर्जुन समूचे कुल का नाश सामने देखकर विचलित हो रहा है।' श्रीमद्भगवद्गीता प्रवचन श्रृंखला में दूसरे दिन कथावाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने विषाद योग का वर्णन किया।
 बाग फरजाना में प्रवचन करते हुए कथावाचक ने कहा कि आज मनुष्य की स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भीतर मचा हुआ द्वंद्व हमें महाभारत के अर्जुन की सी भूमिका में खड़ा कर देता है। हम अपने अहं को मारें या उसके समक्ष समर्पण कर दें, यह प्रश्न हमें हमेशा उलझन में डालता रहता है। ऐसे समय में हमें कृष्ण रूपी गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। श्रीमद्भगवद्गीता गुरु के इसी महत्व को प्रकाशित करती है।
 कथावाचक ने इसके साथ होने वाली हानियों का भी उल्लेख किया। इस अवसर पर श्रीमती मुकुल किशोर ने कथावाचक को अंगवस्त्र पहनाकर सम्मानित किया। नाम संकीर्तन के साथ प्रवचन का विश्राम हुआ।

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