
अयोध्या में भव्य श्री राम मंदिर और काशी में भव्य श्री विश्वनाथ धाम निर्माण के बाद पहली बार महाकुंभ का आयोजन हुआ।
समुद्र मंथन में अमृत और विष दोनों प्रस्फुटित हुए थे। अमृत की बूंदे जहां गिरी,वहां कुंभ के आयोजन होने लगे। सृष्टि के कल्याण हेतु विष को भगवान महादेव ने अपने कंठ में धारण किया। वह नीलकंठ रूप में भी आराध्य हो गए। महाकुंभ शुभारंभ के साथ ही काशी और अयोध्या धाम तक जन सैलाब परिलक्षित हो रहा है।आध्यात्मिक उत्सव की उमंग है।