
इस समय देश में विपक्षी नेताओं और उनके समर्थक कार्यकर्ताओं के द्वारा लगातार देश के लोकतंत्र को अपमानित करने वाले बयान दिए जा रहे हैं और लगता है इन नेताओं के बीच यह होड़ लगी है कि कौन इस दौड़ में सबसे आगे है। इन नेताओं को सत्ता की ललक ने इतना अंधा बना दिया है कि वे यह भी भूल जाते हैं कि वे सार्वजनिक जीवन में है और उनकी सब बातों और करतूतों का देश की जनता पूरा संज्ञान लेती है और इसे देश के साथ साथ अपना भी अपमान मानती है। इन विपक्षी नेताओं के सुर इतने बिगड़ैल एवं ओछे स्तर के होते हैं कि वे संवैधानिक मूल्यों एवं मर्यादा का तो हनन करते ही हैं, देश की जनता के द्वारा दिए गए जनादेश पर भी सवाल खड़े करके सीधे तौर पर जनता के विवेक एवं सम्मान पर भी कुठाराघात करते हैं। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद ही ऐसे स्तरहीन एवं अपमानजनक बयान देने का सिलसिला कांग्रेस की अगुवाई में प्रारम्भ हो गया था और प्रधानमंत्री मोदी के लिए जैसे अपमानजनक एवं निन्दनीय शब्दों का प्रयोग किया गया, उसकी मिसाल मिलना लगभग असम्भव है। मौत का सौदागर, नीच, जाहिल,चौकीदार चोर जैसे शब्दों के साथ साथ मोदी के लिए मौत की कामना और कब्र खुदने से लेकर हिटलर या कुत्ते की मौत मरने के लिए भी दुआएं की गई।मोदी जी ने इसे विपक्षी नेताओं की हताशा मानकर अपने लिए दी जाने वाली इन गालियों को हमेशा नजरंदाज किया और इन रोज दी जाने वाली गालियों को अपने लिए शक्तिवर्धक एवं देश के लिए अधिक समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा की संज्ञा दी। अफसोस की बात है कि जनता के अपार समर्थन से प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए एवं देश से लेकर विदेशों तक लोकप्रियता की मिसाल बने मोदी जी के लिए आज भी गालियों एवं अपमानजनक शब्दों का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। विपक्षी नेताओं में इस बात की भी समझ नहीं है कि वे देश की जनता के द्वारा ही चुने गए प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को गाली देकर देश की जनता एवं लोकतंत्र का ही सीधे तौर पर अपमान कर रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में और भी अधिक बहुमत से जनता द्वारा मोदी जी को पुनः देश के प्रधानमंत्री पद पर बिठाने के बाद भी विपक्ष ने कोई सीख नहीं ली और मोदी के प्रति नफरत एवं घृणा से भरे बयान देने का सिलसिला जारी रखा। 2024 के आम चुनाव में भी मोदी जी ने विपक्ष के लाख दुष्प्रचार एवं जनता को भ्रमित करने के ऐजेंडे के बावजूद एनडीए को बहुमत दिलाकर रिकार्ड बनाते हुए देश के प्रधानमंत्री के तौर पर लगातार तीसरी बार शपथ ली। तब से विपक्ष का रवैया और भी अधिक आक्रामक हो गया है और विपक्ष का जो विरोध भाजपा एवं मोदी जी के लिए व्यक्तिगत अपमान एवं गाली गलौच तक सीमित था वह संवैधानिक संस्थानों को भी गाली देने एवं इन संस्थानों की ईमानदारी एवं निष्ठा पर भी सवाल खड़े करने तक पहुंच चुका है।
विपक्षी नेताओं का यह तर्क रहता है कि सरकार की नीतियों की आलोचना एवं उसे कटघरे में खड़ा करना उसका संवैधानिक अधिकार है और इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाने के लिए स्वतंत्र हैं। विपक्षी नेता यह भूल जाते हैं कि सरकार का विरोध करने का और उसकी नीतियों के विरोध करने का एक संवैधानिक तरीका संविधान में वर्णित है। संविधान या देश का कानून किसी को भी गाली देने, अपमानजनक बयान देने और संवैधानिक संस्थानों की गरिमा एवं प्रतिष्ठा को तार तार करने एवं सार्वजनिक मंचों से से उन पर बिना समुचित प्रमाण के ऊलजलूल आरोप लगाने की इजाजत नहीं देता। यह कितना हास्यास्पद एवं चिन्ताजनक है कि पिछले कुछ माहों में ही विपक्षी नेताओं के द्वारा चुनाव आयोग पर सीधे तौर पर भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी करवाने का आरोप बढ़ चढ़कर लगाने की होड़ लगी हुई है और इस हवन में आग डालने के लिए हर विपक्षी नेता आतुर दिखाई पड़ता है जैसे उसे सत्ता पर पुनः काबिज होने का अमोघ अस्त्र मिल गया हो। यह भी देश के साथ विपक्षी नेताओं का अच्छा मजाक है कि वह चुनाव आयोग पर लगाए गए इन गम्भीर एवं चिन्ताजनक आरोपों का कोई पुख्ता सबूत भी देने के लिए तैयार नहीं हैं और चाहते हैं कि उनकी चुनावी रैली या प्रेस वार्ता का चुनाव आयोग स्वतः संज्ञान ले और जवाब दे। चुनाव आयोग ने आरोप लगाने वालों से जब हस्ताक्षरित शपथ पत्र पर आरोपों की सूची मांगी तो नेता विपक्ष राहुल गांधी का जवाब था कि उनके शब्द ही शपथ पत्र हैं। यह स्वतः इस बात का प्रमाण है कि राहुल गांधी अपने द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए अतार्किक एवं तथ्यहीन आरोपों के प्रति कितना गम्भीर हैं। राहुल गांधी एवं उनके सहयोगी भलीभांति यह जानते हैं कि उनके आरोपों में कोई दम नहीं है परन्तु वो जानबूझकर मोदी के साथ साथ चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा करने के लिए देश में भ्रम एवं संवैधानिक संस्थानों के प्रति अविश्वास फैलाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसके लिए इन नेताओं को देश के लोकतंत्र को अपमानित करने एवं जनता को भी भ्रमित करके संवैधानिक संस्थानों के प्रति उकसाने में कोई संकोच नहीं है।
2014 में सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल पहले तो ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ते रहे परन्तु चुनाव आयोग के सख्त रवैये और न्यायालय से भी निराश होने के बाद अब यह विपक्षी दल मतदाता सूची में जानबूझकर चुनाव आयोग द्वारा गड़बड़ी एवं भाजपा से चुनाव आयोग की मिलीभगत का आरोप लगाते नहीं थक रहे हैं।
चुनाव आयोग पर इतने गैर जिम्मेदाराना एवं निन्दनीय आरोपों का प्रारम्भ राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव में धाँधली एवं फर्जी मतदान भाजपा के पक्ष में कराने के साथ किया परन्तु चुनाव आयोग से लेकर उच्चतम न्यायालय तक इन आरोपों को खारिज किए जाने के बाद भी आज तक वे इस दुष्प्रचार में मशगूल हैं। इसके बाद राहुल गांधी ने बंगलौर सिटी संसदीय सीट की एक विधान सभा में खुलकर चुनाव आयोग के द्वारा मतदाता सूची में गड़बड़ी कर भाजपा के पक्ष में वोट चोरी करवाने का आरोप लगाया गया परन्तु अनेक समाचार चैनलों एवं चुनाव आयोग ने एक पत्रकार वार्ता करके उनके आरोपों की हवा निकाल दी और यह भी माना कि मतदाता सूची में पूरे देश में अनेक विसंगतियां हैं जिनके सुधार के लिए ही पूरे देश में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्णय लिया गया है। इसकी शुरुआत बिहार से की गई है। ऐसे में यह विचारणीय प्रश्न है कि राहुल गांधी एवं तेजस्वी यादव सहित सम्पूर्ण विपक्ष मतदाता सूची के शुद्धिकरण के लिए चलाए गए चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान का विरोध क्यों कर रहा है? विचारणीय प्रश्न यह है कि जहाँ चुनाव आयोग बिहार में चुनाव के पूर्व मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के लिए संकल्पबद्ध है तो विपक्षी नेता इसे वोट काटकर भाजपा को जिताने की चुनाव आयोग की चाल बता रहा है। जनता में चुनाव आयोग के प्रति अविश्वास एवं भ्रम फैलाने के लिए इस समय राहुल गांधी तेजस्वी यादव के साथ बिहार में वोट अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं जिसमें रोज चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी जैसा बेहद अपमानजनक एवं निन्दनीय आरोप लगाने के साथ साथ चुनाव आयोग को भला बुरा कहने की सभी सीमाएं टूटती नजर आ रही हैं। इस यात्रा के दौरान मंचों से चुनाव आयोग को देख लेने की धमकी के साथ साथ वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे नारे लगाकर देश के लोकतंत्र को अपमानित करने एवं संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की सरेआम बिना किसी तथ्य एवं प्रमाण के निन्दा करने की हर संभव कोशिश की जा रही है। यही नहीं इस यात्रा के दौरान राहुल, तेजस्वी सहित सभी विपक्षी नेताओं की भाषा बेहद अपमानजनक एवं निन्दनीय है। अभी दो दिन पहले ही कांग्रेस के मंच से ही उनके किसी कार्यकर्ता ने प्रधानमंत्री मोदी की दिवंगत मां के लिए अपशब्द कहे और गाली दी। इससे भी दुःखद एवं चिन्ताजनक यह है कि राहुल गांधी सहित किसी भी शीर्ष नेता ने इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए उस कार्यकर्ता की निन्दा में दो शब्द भी नहीं कहे। राजनीति में शुचिता की गिरावट की यह पराकाष्ठा है और देश के लोकतंत्र को रसातल में ले जाने का घोर निन्दनीय कृत्य है। आज ही माननीय अखिलेश यादव ने वोट अधिकार यात्रा में शामिल होने पर चुनाव आयोग को जुगाड़ आयोग की संज्ञा दी और भाजपा के इशारे पर कार्य करने की तोहमत चुनाव आयोग पर लगाई। कल टीएमसी की एक सांसद महुआ मोइत्रा ने देश के गृह मंत्री अमित शाह का सिर काटकर मेज पर रखने जैसा आपत्तिजनक बयान दिया। यह बयान उन्होंने बंगाल में घुसपैठियों पर नकेल कसने एवं उन्हें देश के संसाधनों पर जबरन कब्जा करने से रोकने के विषय पर प्रधानमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया में दिया और देश के गृहमंत्री को घुसपैठ रोकने में नाकाम बताया। लोकतंत्र में असहमति व्यक्त करने का सभी को अधिकार है और किसी मंत्री की नाकामी पर सवाल उठाने का भी सभी को हक है परन्तु एक स्वस्थ लोकतंत्र में मंत्री क्या किसी के लिए भी ऐसी भाषा स्वीकार नहीं की जा सकती और इसे लोकतंत्र का अपमान ही कहा जा सकता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि पश्चिम बंगाल समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्य लम्बे समय से बंगलादेशी घुसपैठियों की समस्या से त्रस्त रहे हैं और स्वयं ममता बनर्जी ने इस समस्या पर तब रोष प्रकट किया था जब वे सांसद और श्री सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। ऐसे में वर्तमान गृह मंत्री पर घुसपैठ की समस्या का पूरा ठीकरा फोड़ना एवं इस तरह की अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग करना कहां तक न्यायसंगत है।
विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब वह चुनाव जीत जाता है तो ईवीएम से लेकर चुनाव आयोग सभी उसे सही लगते हैं परन्तु चुनाव हारते ही चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी निशाना साधने में उसे कोई संकोच नहीं होता। विपक्ष को अपने झूठे दुष्प्रचार के आगे यह भी नहीं समझ आता कि यदि चुनाव आयोग लम्बे समय से भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी करवा रहा होता तो भाजपा 240 पर ही क्यों सिमट जाती जबकि अधिकतर चुनाव बाद के सर्वेक्षण भाजपा की अप्रत्याशित जीत एवं सहयोगी दलों के साथ मिलकर लगभग 400 सीटें जीतने की भविष्यवाणी 2024 के आम चुनाव के समय कर रहे थे। अखिलेश यादव जो चुनाव आयोग को जुगाड़ आयोग आज कह रहे हैं, उनकी पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित सफलता कैसे मिली। महाराष्ट्र लोकसभा एवं कर्नाटक विधान सभा चुनाव आयोग में चुनाव आयोग सही काम कर रहा था जब भाजपा की हार एवं विपक्ष की जीत हुई। जब विपक्ष को कर्नाटक लोकसभा एवं महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा तो चुनाव आयोग गलत हो गया और भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी करवाने लगा। ऐसे अतार्किक एवं मनगढंत आरोपों पर राहुल गांधी सहित सभी विपक्षी नेताओं की बुद्धि पर तरस ही आता है। हरियाणा में जब जीतता हुआ चुनाव कांग्रेस हार गई और भाजपा ने लगातार तीसरी बार जीतकर सरकार बनाई तो कांग्रेस के ही सहयोगी दलों ने उस पर चुनाव लड़ने में अक्षमता एवं दल की अंदरूनी कलह की वजह से चुनाव हारने का आरोप लगाया। आज राहुल गांधी इसके लिए भी चुनाव आयोग को दोषी करार देते नजर आते हैं। दिल्ली के विधान सभा चुनाव में भाजपा को एक लम्बे समय के बाद जीत 2025 में मिली जो आम आदमी पार्टी की सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी एवं केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के अधिकांश नेताओं की भ्रष्टाचार में लिप्तता एवं वादा खिलाफी से उपजे आक्रोश का नतीजा थी। आम आदमी पार्टी भी अपनी हार का ठीकरा चुनाव आयोग पर ही फोड़ती नहीं थकती। झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार भाजपा को हराकर पुनः सत्ता में आई। इन नेताओं को यह बताना चाहिए कि क्या चुनाव आयोग झारखंड में सही एवं निष्पक्ष था। ऐसे अभी सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं जब विपक्ष ने चयनात्मक तरीके से अपनी हार की खीझ मिटाने के लिए न केवल चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की ईमानदारी एवं निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए वरन जनमत को अपमानित करके देश में लोकतंत्र को भी शर्मसार करने का काम किया। अब तो पानी सर के ऊपर जाने की स्थिति है जब विपक्षी नेता अपने रोज के भाषणों में भी चुनाव आयोग पर भाजपा के साथ मिलकर वोट चोरी करवाने एवं वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे अमर्यादित नारे लगाते हैं और देश में लोकतंत्र का मजाक उड़ाने एवं संवैधानिक संस्था पर कीचड़ उछालने में ही अपनी बहादुरी समझ रहे हैं। मोदी के प्रति घृणा एवं नफरत से भरे यह सभी विपक्षी नेता देश को अपमानित करने एवं देश विरोधी ताकतों को बल प्रदान करने का काम कर रहे हैं जिसमें कहीं न कहीं सुनियोजित साजिश एवं षड़यंत्र की भी बदबू आती है। यदि ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि उन्हें न तो देश की जनता पर भरोसा है और न ही देश के संवैधानिक संस्थानों पर। अभी कुछ दिनों पहले ही चुनाव आयोग ने कहा कि यदि बिना किसी ठोस प्रमाण के कोई व्यक्ति आरोप लगाता है तो उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई जाएगी और उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा। सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के पास ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं कि वह ऐसे अराजक तत्वों के ऊपर कोई प्रत्यक्ष कार्यवाही कर सके। इसका नाजायज फायदा हमारे देश के नेता उठाते हैं। जरूरत इस बात की है कि कानून में कुछ ऐसी व्यवस्था की जाय कि देश की संवैधानिक संस्थाओं पर बिना किसी ठोस सबूत के सवाल खड़ा करने वाले लोगों एवं देश को अपमानित करने का प्रयास करने वालों पर कठोर कार्यवाही की जा सके।