राजनीतिसम्पादकीय

नेपाल में हिंसक विद्रोह पर देश में विपक्ष के स्वर

राकेश कुमार मिश्र

अभी हाल ही में निकट पड़ोसी देश नेपाल में वहाँ युवाओं के संगठन जनरल जेड के द्वारा ओली सरकार के विरुद्ध सड़क पर उतरकर सत्ता का मुखर विरोध किया गया एवं दो ही दिन में प्रधानमंत्री ओली सहित सम्पूर्ण मंत्रिमंडल को पद त्यागने के लिए मजबूर कर दिया। यह प्रदर्शन एवं विरोध शीघ्र ही अराजक एवं हिंसक हो गया और संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, राष्ट्रपति आवास, सुप्रीम कोर्ट सहित अनेक सरकारी और गैर – सरकारी संस्थानों में आगजनी एवं लूटपाट की गई। अनेक पूर्व प्रधानमंत्री एवं वर्तमान और पूर्व नेताओं को भी हिंसा का सामना करना पड़ा एवं उनके घरों और सम्पत्तियों को भी आगजनी एवं लूटपाट का शिकार होना पड़ा। यह कहना गलत नहीं होगा कि नेपाल दो दिनों पूरी तरह अराजकता एवं हिंसा की आग में जलता रहा और देश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रही। इस विरोध एवं प्रदर्शन की तात्कालिक वजह ओली सरकार के द्वारा 32 प्रमुख सोशल मीडिया एप पर लगाया गया प्रतिबन्ध था जिसके कारण जनरल जेड के युवक विरोध में सड़कों पर उतर आये। ओली सरकार के द्वारा छात्रों के विरोध एवं प्रदर्शन के प्रति अपनाए गए दमनात्मक रवैये एवं पुलिस की फायरिंग में हुई युवकों की मौत के कारण इसने हिंसक एवं अराजक रूप ले लिया। युवाओं में आक्रोश का यह एक बड़ा कारण था कि सरकार ने इन सोशल मीडिया एप पर रोक लगाकर न केवल लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को छीनने का काम किया, बल्कि लोगों की आजीविका के भी एक महत्वपूर्ण स्त्रोत को समाप्त कर दिया। एक अनुमान के अनुसार इन सोशल मीडिया एप पर रोक लगाने के पहले एक औसत नेपाली युवा इनके माध्यम से लगभग 1400 डालर वार्षिक कमा लेता था। इसके अलावा इन सोशल मीडिया एप का बड़े पैमाने पर उपयोग नेपाली लोगों के द्वारा वर्तमान सरकार एवं व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और परिवारवाद को उजागर करने के लिए किया जा रहा था। युवाओं और नेपाली लोगों ने सरकार के इस कदम को भ्रष्ट व्यवस्था एवं नेताओं को संरक्षित करने के कदम के रूप में देखा और विरोध में सड़क पर आ गए। सरकार का तर्क था कि इन सोशल मीडिया के प्रमुखों ने सरकार के निर्देश के बाद भी अपना पंजीकरण नहीं कराया। इस स्थिति में मजबूर होकर सरकार को इन्हें प्रतिबंधित करने के लिए कदम उठाना पड़ा।
यह सत्य है कि नेपाली लोगों और विशेष रूप से युवाओं ने जैसा विद्रोह सरकार और व्यवस्था के प्रति दिखाया, वह इस बात का प्रमाण है कि उनमें सरकार और व्यवस्था के प्रति भीषण आक्रोश एवं निराशा का भाव था। सोशल मीडिया पर रोक के बहाने वह गुस्सा और आक्रोश खुलकर सामने आ गया। यह सत्य है कि नेपाल के लोगों ने राजशाही के विरुद्ध एक लम्बे संघर्ष के बाद देश में लोकतंत्र की स्थापना की और जनता को बड़ी उम्मीद थी कि नई लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवारवाद एवं भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी तथा सरकारें जनहित के फैसले लेगी तथा देश को विकास के पथ पर अग्रसर करेगी। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि 2008 में राजशाही की समाप्ति और लोकतंत्र की स्थापना के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुनी हुई सरकारें भी घोर भ्रष्टाचार एवं सत्ता की लोलुपता में जनता के हितों को नजरंदाज ही करती यहीं। राजनीतिक अस्थिरता की यह पराकाष्ठा थी कि 17 वर्षों में 14 सरकारें बनीं परन्तु हर सरकार अपने हितों की पूर्ति और अपनी सत्ता के बचाव में ही संलग्न रही। यही कारण था कि आन्दोलनकारी न केवल ओली सरकार के विरुद्ध थे वरन वे उपलब्ध विकल्पों में अन्य किसी विपक्षी नेता के नेतृत्व में भी नई सरकार के गठन के लिए सहमत नहीं थे चाहे वे प्रचण्ड हों या देउबा। उनको यही शिकायत थी कि इन्हीं नेताओं ने सत्ता की बंदरबांट की और भ्रष्टाचार में लिप्तता के साथ साथ अपने पुत्रों एवं परिवार का ही पोषण किया। इससे राजनीतिक अस्थिरता को तो बल मिला ही, आम जनता के हितों की हमेशा उपेक्षा ही की जाती रही। देश में बेरोजगारी, मंहगाई एवं भ्रष्टाचार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता रहा और कुछ नेता लोकतन्त्र की आड़ में सत्ता का सुख उठाते रहे। अन्ततः सेना के द्वारा आगे बढ़कर स्थिति को नियंत्रित किया गया और देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्रीमती सुशीला कार्की के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार का गठन हुआ।अन्तरिम प्रधानमन्त्री ने छः माह में आम चुनाव कराने की शर्त मानते हुए कार्यभार ग्रहण किया। आम जनता एवं युवकों में भारी असंतोष तो इस विद्रोह एवं सत्ता परिवर्तन का मुख्य कारण रहा ही परन्तु बंगलादेश, पाकिस्तान एवं श्री लंका में हाल में ही हुए विद्रोह एवं सत्ता पलट को देखते हुए अमेरिका जैसे बाहरी देश के हस्तक्षेप की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। नेपाल सरकार के चीन के प्रति अत्यधिक झुकाव की नीतियों के कारण इस आशंका को और अधिक बल मिलता है।
नेपाल में हिंसक विद्रोह एवं सत्ता परिवर्तन से यह तो साफ है कि आम जनता जब विद्रोह पर उतरती है तो बड़े बड़े सत्ताधारियों को घुटने टेकने और समर्पण के लिए मजबूर कर देती है। यह स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिए अच्छी नहीं होती और इसका खामियाजा पूरे राष्ट्र को भुगतान पड़ता है। एक लोकतांत्रिक सरकार का यह पहला कर्तव्य है कि वह जनता के हितों के प्रति समर्पित हो और जनता का विश्वास सरकार के प्रति बना रहे। इसके लिए जनता के साथ संवाद एवं जनता की समस्याओं के प्रति सरकार की संवेदनशीलता बहुत जरूरी है।आम लोगों को यह महसूस होना चाहिए कि उनकी चुनी हुई सरकार उनके हितों के लिए जागरुक एवं क्रियाशील है। नेपाल में उत्पन्न इन परिस्थितियों पर हमारे देश के विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियायें सुनकर ऐसा लगता है कि उन्हें अपने लिए इस घटनाक्रम में एक आशा की किरण दिखाई देती है। विपक्षी नेता देश में सरकार को नेपाल के घटनाक्रम से सबक लेने की नसीहत दे रही है और तरह तरह की बातें करके सरकार को यह आगाह कर रही है कि निकट भविष्य में भारत में भी ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। यह सत्य है कि हमें विश्व और विशेष रूप से अपने पड़ोसी देशों में हो रहे घटनाक्रम पर नजर रखनी चाहिए और उसके कारणों की तह में जाकर उससे सबक भी लेना चाहिए लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप बिना सोचे विचारे भारत जैसे महान देश के सशक्त लोकतंत्र और उसके मजबूत नेतृत्व पर सवाल खड़े करने लगें। यह भी बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप काल्पनिक और झूठे तथ्यों के आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था और उसकी मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली की तुलना नेपाल, श्रीलंका या पाकिस्तान जैसी राजनैतिक अस्थिरता से ग्रसित कमजोर आर्थिक स्थिति वाले देशों से करें। यह कितना दुःखद एवं चिन्ताजनक है कि विपक्षी नेता नेपाल में संकट उत्पन्न होते ही यह कहने लगे कि भारत में भी स्थितियां नेपाल या बंगला देश से अलग नहीं हैं और भारत में भी कभी भी निकट भविष्य में ऐसे ही हालात उत्पन्न हो सकते हैं। विपक्षी नेता मोदी और भाजपा का विरोध करने में देश के गौरवशाली इतिहास और यहां की जनता की लोकतंत्र के प्रति अटूट निष्ठा को भी भूल जाते हैं जिसका सबूत देश की जनता ने संविधान लागू होने के बाद से आज तक निरन्तर हर विपरीत परिस्थितियों में भी दिया है। देश में चाहे आपातकाल जैसी लोकतांत्रिक एवं मूल अधिकारों का हनन करने वाली स्थिति आई हो या यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में भीषण भ्रष्टाचार एवं नीतिगत अपंगता के हालात हों, जनता ने अपने वोट के अधिकार को ही अपना अस्त्र बनाकर निरंकुश एवं भ्रष्ट सरकार को सत्ता से हटाने का काम किया है। देश की जनता ने कभी भी हिंसक विद्रोह या अराजकता फैलाने के मार्ग को पसंद नहीं किया और न ही कभी देश के नेताओं ने लोकतंत्र का रास्ता छोड़कर जनता को इसके लिए उकसाने का काम किया। आजकल के नेताओं के इन दुर्भाग्यपूर्ण बयानों से ऐसा लगता है कि उन्हें हमारी समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत पर भी यकीन नहीं रहा। हमारे देश के विपक्षी नेता ऐसे बयान तब दे रहे हैं जब दुनिया हमारे मजबूत नेतृत्व एवं तेजी से प्रगति करती अर्थव्यवस्था की कायल है और यह मानती है कि भारत को वर्तमान नेतृत्व के चलते रोकना या उस पर देश के हितों के विपरीत जाने के लिए दबाव बनाना असंभव है।
नेपाल में हिंसक विद्रोह होते ही आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि हमारे देश के आकाओं को भी नेपाल की घटना से सबक लेने की जरूरत है। इसी तरह शिवसेना (उद्भव) के सांसद संजय राउत ने कहा कि हमारे देश में भी लोगों में नेपाल जितना ही असंतोष है और वह दबा हुआ है। हमारे देश के लोग गांधी के रास्ते पर चलने वाले हैं अतः यह असंतोष सड़क पर नहीं आ रहा है। यह समझ पाना कठिन है कि वे देश में किस असंतोष की बात कर रहे हैं। सत्यता यह है कि मोदी जी के नेतृत्व में देश निरन्तर तेजी से आगे बढ़ रहा है और भारत का कद वैश्विक स्तर पर इतना ऊंचा हो गया है कि अब कोई भी वैश्विक ताकत भारत को नजरंदाज करने की सोच भी नहीं सकती। देश में आम आदमी के सशक्तिकरण के लिए अनेक योजनाओं को लागू किया है जिससे लोगों को गरीबी से निजात दिलाने एवं सामान्य जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण सफलता मिली है। स्वच्छता अभियान, गरीबों के लिए करोड़ो आवास, देश की लगभग आधी आबादी को आरोग्य कार्ड बनाकर पांच लाख रुपए तक की मुफ्त चिकित्सा की सुविधा, लगभग 80 करोड़ जनसंख्या को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने के साथ साथ घर घर बिजली, पानी एवं इंटरनेट सुविधा पहुंचाने का काम इसी सरकार के द्वारा किया गया है। अभी हाल में ही जीएसटी दरों में व्यापक कटौती करके सामान्य जनता एवं मध्यम आय वर्ग को भरपूर राहत प्रदान की गई है। आयकर प्रणाली में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाकर लोगों को कर भार में काफी राहत भी प्रदान की गई है और कर प्रणाली का सरलीकरण करके कर चोरी पर भी काफी हद तक अंकुश लगाया गया है। ऐसी जनता के हितों के लिए समर्पित सरकार के प्रति दबे हुए आक्रोश की बात करना नासमझी तो नहीं वरन जनता को भ्रमित करने की एक साजिश जरूर कही जा सकती है। इसी तरह अखिलेश यादव ने कहा कि यदि वोट चोरी जारी रही तो अपने देश में भी नेपाल के घटनाक्रम की पुनरावृत्ति कोई रोक नहीं सकता। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के पास इस समय वोट चोरी के झूठे एवं मनगढ़ंत आरोप के अलावा कोई दूसरा मुद्दा ही नहीं है और वो हर सवाल का जवाब यही देते हैं वोट चोर गद्दी छोड़। पहले यही नेता ईवीएम को दोष देते नहीं थकते थे परन्तु उस झूठ की हवा निकल जाने के बाद ये नेता नए झूठे आरोप के साथ मोदी और भाजपा को घेरने और जनता को भ्रमित करने में प्रयासरत हैं। इसके लिए उन्हें चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को भी गाली देने एवं न्यायालय के निर्णयों को भी नकारने में कोई संकोच नहीं है। ऐसा विपक्ष यदि नेपाल या अन्य पड़ोसी देशों में हो रहे विद्रोह एवं सत्ता परिवर्तन को अपने लिए एक उम्मीद के रूप में देखता है तो इसमें किसी को आश्चर्यचकित होने की जरुरत नहीं है। अफसोस की बात बस यह है कि इन विपक्षी नेताओं को महज सत्ता के लिए देश को अराजकता की दिशा में ले जाने में भी कोई लज्जा नहीं आती और विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को भी बरबाद एवं मृत कहने में भी शर्म नहीं महसूस होती।
हमें यह देखना होगा कि नेपाल में इस विद्रोह एवं सत्ता पलट के पीछे सबसे बड़ा कारण उच्चस्थ पदों पर बैठे लोगों में व्याप्त गहन भ्रष्टाचार एवं निजी हितों को पोषित करने वाली राजनीति थी। देश में मोदी जी के नेतृत्व में सरकार में बैठे लोगों पर पिछले 11 वर्षों में भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं है। यही नहीं डीबीटी एवं डिजिटल भुगतान की प्रणाली को अपनाकर बिचौलियों के द्वारा जनता के धन को डकारने की पुरानी व्यवस्था पर भी बहुत हद तक अंकुश लगाया गया है। देश में ईडी और सीबीआई की सक्रियता ने नेताओं से लेकर भ्रष्ट अधिकारियों एवं उद्योगपतियों तक में डर का माहौल उत्पन्न किया है। ऐसे में आप किस आधार पर अपने देश में नेपाल की पुनरावृत्ति की मंशा पालें तो यह हास्यास्पद है। नेपाल में राजशाही की समाप्ति के बाद से ही राजनैतिक अस्थिरता का दौर चल रहा था जबकि अपने देश में एक लम्बे समय से राजनैतिक स्थिरता रही है और मोदी जी के नेतृत्व में इस सरकार का लगातार तीसरा कार्यकाल है। इसके पहले भी 16 वर्षों तक डा मनमोहन सिंह और श्री अटल बिहारी बाजपेई जी के नेतृत्व में देश में स्थिर सरकार रही। इस आधार पर भी विपक्षी नेताओं की मंशा पूरी होती नहीं दिखती। किसी भी सरकार के विरुद्ध ऐसे विद्रोह का एक कारण सरकार की जनता से संवादहीनता एवं संवेदनशीलता भी होती है परन्तु मोदी जी के नेतृत्व में सरकार जनता के प्रति पूर्णतः संवेदनशील है और आम लोगों के साथ सरकार एवं मोदी जी सतत संवाद के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। हर महीने मन की बात के द्वारा जनता से संवाद का मोदी जी का कार्यक्रम इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र हों या विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले खिलाड़ी हों, देश के सीमा पर तैनात सैनिक हों या इसरो में कार्यरत लोग हों,मोदी जी सभी से मिलने और उनका उत्साहवर्धन करने में कभी पीछे नहीं रहते। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान सरकार जन संवाद या जनता के प्रति संवेदनशीलता में किसी से पीछे है। सत्य तो यह है कि मोदी जी का जनता से यही जुड़ाव उनकी आम लोगों में लोकप्रियता का एक बड़ा कारण है। मैंने तो कभी भी ऐसा प्रधानमन्त्री पहले कभी देखा और न सुना जो जनता के साथ इतना जुड़ा हुआ हो। अतः इस विषय में भी विपक्ष को निराशा का ही सामना करना पड़ेगा और उनके मंसूबों के कामयाब होने की कोई भी संभावना नजर नहीं आती।
अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि विपक्षी नेताओं को किसी भी विषय पर अपना पक्ष रखते समय और बयान देते समय देश की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत और देश की जनता के मिजाज एवं परिपक्वता का भी ध्यान रखना चाहिए।मोदी जी और सरकार के विरोध में देश को इतना सशक्त एवं जन अधिकारों के प्रति समर्पित संविधान देने वाले देश के जननायकों की भावना का भी सम्मान न रखने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। इन विपक्षी नेताओं को याद रखना चाहिए कि देश की जनता ऐसे अराजकता फैलाने वाले एवं लोकप्रिय सरकार के विरुद्ध दुष्प्रचार की ऐसी राजनीति करने वाले नेताओं को कभी भी पसंद नहीं करती और न ही उनके बहकावे में आने वाली है। देश की सरकार को भी ऐसे तत्वों से सतर्क रहना होगा जिनके लिए सत्ता पाने हेतु मूल्यों एवं राष्ट्रहित की राजनीति का कोई मूल्य नहीं है।

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