राजनीतिसम्पादकीय

क्फ संशोधन विधेयक – विरुद्ध में कुतर्क

राकेश कुमार मिश्र

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी अपने बेख़ौफ और साहसिक निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें जहां भी पहले के कानूनों और चली आ रही व्यवस्थाओं में कमियां दिखाई पड़ती हैं और लगता है कि ऐसे कानून एवं व्यवस्थाएं देशहित या जनहित में नहीं हैं या अपने मूल लक्ष्यों से भटक गई हैं, वह किसी भी आलोचना और विरोध की परवाह किए बिना सुधार के लिए समुचित कदम उठाने से पीछे नहीं हठते। इसके लिए मोदी जी को अनेक मौकों पर साम्प्रदायिकता फैलाने एवं समाज के एक वर्ग को अपनी नीतियों से निशाने पर लेने और उसके निजी कानूनों एवं आस्थाओं में नाजायज दखल देने जैसे आधारहीन आरोपों का भी सामना करना पड़ता है। देश के अधिकांश विपक्षी दलों के नेताओं और कट्टरपंथी तत्वों के द्वारा उन्हें देश की एकता एवं सामाजिक समरसता के लिए घातक नेता के रूप में लांछित करने में भी संकोच नहीं किया जाता है।धारा 370 की समाप्ति हो या तीन तलाक पर प्रतिबंध या श्री राम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण, मोदी जी ने अनेंकों बार यह साबित किया है कि विरोध के स्वर उन्हें उनके देशहित और जनहित के मार्ग पर चलने से विचलित नहीं कर सकते। उन्होंने स्वयं कई बार कहा है कि उनका लक्ष्य एवं रास्ता समाज में सभी का संतुष्टीकरण है न कि किसी का भी तुष्टीकरण।
वक्फ कानून संशोधन विधेयक ऐसे ही विवादित कानूनों में एक है। प्रारम्भ से ही इस कानून का विरोध मुस्लिम समाज के कट्टरपंथी लोगों और तथाकथित छद्म धर्मनिरपेक्ष नेताओं के द्वारा किया जाता रहा है। इसी कारण बिल पेश किए जाने के बाद संसद की सिफारिश पर उसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया जिसके अध्यक्ष श्री जगदंबिका पाल जी थे। समिति ने पक्ष और विपक्ष के नेताओं के साथ सभी सरोकार रखने वाले लोगों के साथ विचार विमर्श किया और उनके सुझावों को स्वीकार किया। इसके बाद नए बिल पर संसद के दोनों सदनों में परिचर्चा हुई और बहुमत से दोनों सदनों के द्वारा पारित होने के बाद इसने वक्फ कानून संशोधन विधेयक का रूप ले लिया। संसद में परिचर्चा के दौरान भी सभी विपक्षी दल के नेताओं ने इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया। विपक्षी दल के नेताओं ने बिल के विरोध में वही घिसे पिटे और मुस्लिम तुष्टीकरण की मानसिकता से ग्रसित तर्क दिए कि यह कानून लाना देश में मुस्लिम समुदाय के निजी मामलों में दखल है। विपक्ष के नेताओं द्वारा यह भी कहा गया कि मोदी सरकार एक समुदाय के प्रति नफरत की भावना से काम करती है और उनकी आस्था पर चोट पहुंचाने के लिए तत्पर रहती है। सरकार इस कानून के द्वारा मुस्लिम समाज के द्वारा अपने समाज के लोगों के हित के लिए दान या वक्फ की गई संपत्तियों से उन्हें बेदखल कर उन सम्पत्तियों पर कब्जा करना चाहती है। विपक्ष के नेताओं ने खुलकर यह आरोप लगाया कि इस बिल द्वारा देश के वक्फ कानून में लाए जाने वाले संशोधनों को देखकर लगता है कि सरकार की नीयत साफ नहीं है और वह प्रतिशोध की भावना से काम कर रही है। इसके विपरीत सरकार का यह पक्ष था कि वर्तमान में वक्फ कानून में वक्फ के नीति नियंताओं को असीमित अधिकार दिए गए हैं। इन असीमित अधिकारों के कारण वक्फ परिषद का रवैया अधिनायकवादी और आततायी हो गया है। वे इन अधिकारों का लाभ उठाकर अनेकों सार्वजनिक सम्पत्तियों पर कब्जा करते हैं और जब चाहें किसी भी सम्पति पर अपना दावा ठोंक देते हैं,चाहे वे सम्पतियां कितने भी लम्बे समय से सरकार या समाज के दूसरे समुदायों के अधिकार में हों और उपयोग की जा रही हों। यह वक्फ के नियंताओं के दुस्साहस और हठधर्मिता की पराकाष्ठा थी कि वे कभी संसद भवन या हवाईअड्डों की जमीन पर दावा करते थे तो कभी सरकारी कार्यालयों और पार्कों की जमीन पर अपना दावा जताते थे। हद तो तब हो गई जब वक्फ ने दक्षिण में एक शत प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले गांव और वहां के एक 1500 वर्ष प्राचीन मंदिर की जमीन पर भी अपना दावा ठोंक दिया। समस्या का मूल कारण यह था कि पूर्व कानून में वक्फ को यह अधिकार प्राप्त था कि बिना कोई साक्ष्य दिए वक्फ किसी भी सम्पति पर अपना दावा ठोंक सकता था और दूसरे पक्ष को नोटिस दे सकता था। यह दायित्व दूसरे व्यक्ति या पक्ष पर था कि वह यह साबित करे और अपने पक्ष में सबूत दे कि वह ही उसका कानूनी तौर पर मालिक है।
सरकार के द्वारा वक्फ कानून के संशोधन में सरकार का दूसरा तर्क यह था कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में भीषण भ्रष्टाचार व्याप्त है और वक्फ के पास बड़ी मात्रा में संपत्तियों का लाभ प्रबंधन के परिवारों और निकटवर्ती लोगों तथा मुस्लिम समाज के शक्ति संपन्न तबकों के द्वारा ही उठाया जा रहा है। मुस्लिम समाज के गरीब और कमजोर तबके को इन वक्फ संपत्तियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई लाभ नहीं मिलता है। इस प्रकार वक्फ अपने मूल लक्ष्यों से ही भटक गई है जिसके गठन की संकल्पना का लक्ष्य ही समाज के सम्पन्न वर्ग द्वारा वक्फ की गई संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान और सामाजिक कल्याण के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना था। बड़े पैमाने पर वक्फ की संपत्तियां मामूली किराए या कुछ प्रतीकात्मक धनराशि लेकर लम्बी अवधि के लिए पट्टे पर व्यवसाय के लिए दे दी गई हैं जिन पर शान के साथ बिना दाम लगाए होटल, माल, सिनेमाघर और निजी शिक्षण संस्थान एवं मेडिकल कालेज तक चलाए जा रहे हैं। संसद के बाहर भी वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध शुरू से ही आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और मुस्लिम लीग जैसे अनेक मुस्लिम संगठनों के द्वारा किया जाता रहा है। यह संगठन भी इस विधेयक को मुस्लिम विरोधी एवं मुसलमानों के निजी धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बता रहे हैं और सरकार द्वारा वक्फ की सम्पतियों को हड़पने की साजिश रचने का प्रयास मानते हैं। इन संगठनों ने अपने अनेक प्रदर्शनों में वक्फ पर सरकार के नियंत्रण एवं दखल देने के विरुद्ध मुस्लिम समाज को भड़काने के साथ साथ सरकार को धमकी और चेतावनी देने की बात भी की। यह संगठन वक्फ कानून संशोधन विधेयक को असंवैधानिक करार देने की याचिका लेकर उच्चतम न्यायालय तक गए।
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि यदि सरकार किसी भी कानून के मनमाने तरीके से लागू किए जाने और असीमित अधिकारों के प्रावधानों को नियमित करने के लिए कानून में कुछ संशोधन करने के़ उद्देश्य से कोई विधेयक लाती है तो वह असंवैधानिक कैसे कहा जा सकता है। इस कानून को मुस्लिम विरोधी कहना कहां तक उचित है जबकि विधेयक लाने का असली उद्देश्य वक्फ की सम्पतियों का पारदर्शी तरीके से उपयोग सुनिश्चित करते हुए उनका लाभ मुस्लिम समाज के ही कमजोर तबके को पहुंचाना है। वक्फ संशोधन विधेयक का लक्ष्य वक्फ में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार पर रोक लगाना और यह सुनिश्चित करना है कि यह अपने मूल लक्ष्यों के प्रति जवाबदेह बने और मुस्लिम समाज के कमजोर और आर्थिक रूप से विपन्न लोगों के उत्थान हेतु इन सम्पतियों का उपयोग करे। यह मुस्लिम समाज को गुमराह करने वाले संगठन आखिर ऐसा क्यों चाहते हैं कि उनकी मनमर्जी और भ्रष्टाचार के विरूद्ध सरकार कोई कदम न उठाए और उन्हें मनमानी करने दे। मेरे विचार में उनकी इस सोच और दुस्साहस का बड़ा कारण उनकी यह विचारधारा है कि अल्पसंख्यक होने के नाते उनको कुछ भी करने का विशेषाधिकार है और सरकार को उस पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने का कोई अधिकार नहीं है। जब भी सरकार कोई ऐसा प्रयास करती है तो यह लोग शरीअत और निजी कानूनों की आड़ लेकर सरकार को ही मुस्लिम विरोधी करार देने में लग जाते हैं और किसी भी सुधारात्मक पहल को सम्पूर्ण मुस्लिम समाज के लिए दमनकारी बताने का दुष्प्रचार करते नहीं देते। सरकार का कोई भी मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए उठाया गया कदम इन्हें दमनकारी और मुसलमानों के निजी कानूनों में दखल ही लगता है चाहे वह तीन तलाक का मसला हो या मदरसों के आधुनिकीकरण और पंजीयन का। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हमारे देश के छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों ने उनकी इस सोच को पल्लवित करने में पिछले 70 वर्षों में अहम भूमिका निभाई है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं। संसद में कानून का विरोध करने वाले यही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल थे जो वोट बैंक के लालच में मुस्लिम समाज की तरक्की के लिए लाए गए किसी भी कानून का विरोध करने के लिए संकल्पबद्ध हैं और कुछ निहित स्वार्थी तत्वों एवं कट्टरपंथी लोगों के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं। आपने किसी भी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के मुंह से आज तक यह नहीं सुना होगा कि वक्फ कानून में किए जाने वाले संशोधन आम मुस्लिम समाज के हित में हैं। इसके विपरीत यह नेता तुष्टीकरण और वोट बैंक के लालच में यह वादा करते भी नहीं चूकते कि उनकी सरकार आने पर वे इस कानून को रद्दी की टोकरी में फेंक देंगे। अनेक कांग्रेस के नेताओं के साथ साथ कुछ दिनों पहले ही पटना में इमारते शरिया के वक्फ कानून के विरोध में आयोजित एक कार्यक्रम में तेजस्वी यादव ने उनकी सरकार बनने पर ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे। हकीकत यह है कि यह छद्म धर्मनिरपेक्ष दल और उनके नेता यह चाहते ही नहीं हैं कि मुस्लिम समाज तरक्की करे और शिक्षित या सम्पन्न हो। मुस्लिम समाज में भाजपा सरकार के लिए भय फैलाने और उसके हर कदम को मुस्लिम विरोधी बताकर ही वे अपने को देश के मुसलमानों का असली हमदर्द साबित करने में लगे रहते हैं जिससे वे मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जा बनाए रख सकें। यह स्थिति देश के साथ साथ मुस्लिम समाज के लिए भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
अभी कुछ दिनों पहले ही उच्चतम न्यायालय ने वक्फ कानून संशोधन विधेयक के विरोध में दायर की गई याचिकाओं पर एक अन्तरिम आदेश पारित किया है। उच्चतम न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक करार देने के अनुरोध को नकारते हुए केन्द्र सरकार को तीन संशोधनों को समाहित करने का निर्देश दिया है। इसमें पहला संशोधन इस प्रावधान के विरुद्ध था जिसमें संशोधित कानून के अन्तर्गत पांच वर्षों से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम को ही वक्फ करने के अधिकार से सम्बन्धित था। सरकार का यह तर्क था कि ऐसे प्रावधान लाने का मात्र एक उद्देश्य है कि सही मायने में मुस्लिम धर्म को मानने वाला व्यक्ति ही वक्फ कर सके। इसके लिए कोई नाजायज दबाव या धोखाधड़ी को रोका जा सके। ज्ञातव्य है कि वक्फ कानून में पहले से ही यह प्रावधान है कि मुस्लिम ही वक्फ कर सकता है।उच्चतम न्यायालय ने अन्तरिम आदेश में कहा कि इसे तय करने का सरकार के पास कोई वैध आधार या नियम नहीं है कि किसे प्रैक्टिसिंग मुस्लिम माना जाएगा। अतः जब तक सरकार नियम नहीं बनाता, इस प्रावधान पर रोक लगाई जाती है। दूसरा संशोधन वक्फ काउंसिल में गैर मुस्लिम सदस्यों से सम्बन्धित है। उच्चतम न्यायालय ने सीमा तय करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या केन्द्रीय वक्फ काउंसिल में 4 और राज्य काउंसिल में 3 से अधिक नहीं हो सकती। उच्चतम न्यायालय ने गैर मुस्लिम लोगों को वक्फ काउंसिल में शामिल करने पर रोक लगाने से मना कर दिया। तीसरा संशोधन जिलाधिकारी को दिए जाने वाले अधिकारों से सम्बन्धित था। याचिका दाखिल करने वालों को यह आपत्ति थी कि संशोधित कानून में जिलाधिकारी को असीमित अधिकार दिए गए हैं जिनका दुरूपयोग सरकार कर सकती है। जिलाधिकारी को किसी विवादित सम्पत्ति की जांच के साथ सरकारी अभिलेखों में भी परिवर्तन का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए जब तक सक्षम न्यायालय द्वारा कोई अन्तिम निर्णय न दे दिया जाम। उच्चतम न्यायालय ने इसे मानते हुए अन्तिम फैसला आने तक जिलाधिकारी को प्रदत्त अतिरिक्त अधिकारों पर रोक लगा दी और न्यायालय के निर्णय आने तक अभिलेखों में कोई फेरबदल न करने के निर्देश सरकार को दिए। उच्चतम न्यायालय ने अन्य संशोधित प्रावधानों पर अपने अन्तरिम आदेश में सहमति जताई। संशोधित वक्फ कानून में एक अन्य विवादित प्रावधान वक्फ बाई यूजर से सम्बन्धित था। न्यायालय ने सरकार के इस स्पष्टीकरण से सहमति जताई कि यह व्यवस्था कानून लागू होने के पूर्व की वक्फ सम्पतियों पर लागू नहीं होगी परन्तु भविष्य में इस आधार पर किसी सम्पत्ति को वक्फ सम्पति घोषित नहीं किया जा सकेगा। इसी तरह उच्चतम न्यायालय ने इस पर भी सहमति जताई कि ए एस आई द्वारा संरक्षित किसी इमारत या सम्पत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता। ऐसी सम्पतियों का मालिकाना हक़ ए एस आई के पास ही रहेगा।
उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित इस अन्तरिम आदेश के आने के बाद दोनों पक्ष जीत का दावा कर रहे थे। याचिका दाखिल करने वाले लोग और कांग्रेस के इमरान मसूद एवं इमरान प्रतापगढ़ी जैसे अनेक नेताओं ने कहा कि न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए उन्हें काफी राहत प्रदान की है। दूसरी तरफ सरकार की तरफ से श्री किरन रिजिजू ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने अन्तरिम आदेश में कानून को वैध एवं संवैधानिक मानते हुए कुछ प्रक्रियागत संशोधन के निर्देश दिए गए हैं जिनका सरकार सम्मान करती है। उन्होंने अन्तिम फैसला आने का इन्तजार करने की बात भी कही। अब आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड ने कुछ दिनों के बाद ही वक्फ कानून संशोधन विधेयक के विरोध में अक्टूबर में दिल्ली में विशाल रैली एवं प्रदर्शन करने की घोषणा की है। शायद इसका कारण उच्चतम न्यायालय के अन्तिम आदेश आने के पूर्व दबाव बनाने का है जिससे भविष्य में कुछ और राहत प्राप्त की जा सके। वैसे आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड ने विधेयक को असंवैधानिक कहते हुए इसे निरस्त करने की मांग पुनः दोहराई है। मेरा मानना है कि सभी पक्षों को उच्चतम न्यायालय के अन्तिम निर्णय का इन्तजार करना चाहिए और समाज में तनाव और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के कदम उठाने से बचना चाहिए।

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