
योगी आदित्यनाथ संन्यासी हैं। सनातन संस्कृति पर उनका ज्ञान व्यापक है। सुदूर पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर और कन्याकुमारी तक। सनातन के लिए पूरे भारत में कार्य करने वाले संतों की भी उन्हें पूरी जानकारी है। इसका अनुभव मुझको भी हुआ था। एक बार मैने उनको अपने आलेखों का संग्रह भेंट किया था। एक लेख में उनके साथ त्रिपुरा के एक सन्यासी का चित्र था। उन्होंने मुझसे पूंछा कि आप इनको जानते है। मैने कहा नहीं। इसके बाद उन्होंने बताया कि इनको गोरक्षपीठ द्वारा वहां मठ स्थापित करने आदि के लिए सहायता प्रदान की गई थी। इससे उनको प्रतिकूल परिस्थियों में भी सनातन धर्म संबंधी कार्य करने में सुविधा मिली थी। इसी प्रकार के अनेक प्रसंग देश के अनेक प्रांतों से संबंधित है। अयोध्या में योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पति कुण्ड स्थल में दक्षिण भारत के प्रमुख संतों श्री पुरंदर दास, श्री त्यागराजा
और श्री अरुणाचल कवि की प्रतिमाओं का अनावरण किया। योगी आदित्यनाथ ने सनातन धर्म के आधार पर इन तीनों संतों के संबंध में विस्तार से धाराप्रवाह बताया। निर्मला सीतारमण दक्षिण भारत से है। उन्हें योगी आदित्यनाथ के ज्ञान को देख कर आश्चर्य हुआ। उन्होंने
कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को दक्षिण भारत के संतों के विषय में अच्छी जानकारी है। उन्होंने बहुत प्रभावी ढंग से इन संतों के योगदान को हमारे सामने रखा है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दक्षिण भारत के तीन पूज्य संतों की प्रतिमा देवताओं के गुरु बृहस्पति के नाम पर बने पवित्र कुण्ड में स्थापित की गई है। हर बृहस्पतिवार को यहां श्रद्धालु आते हैं और स्नान करते हैं। मार्ग शीर्ष की शुक्ल पक्ष की पंचमी पर यहां एक विशेष आयोजन होता है। अब बृहस्पति कुण्ड के साथ ही इन तीन पूज्य संतों की प्रतिमाओं के दर्शन करने का सौभाग्य भी अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को प्राप्त होगा। इन तीन पूज्य संतों ने दक्षिण भारत में श्रीराम भक्ति के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान दिया है। श्री त्यागराजा महास्वामी कर्नाटक संगीत के तीन महानतम संगीतज्ञों में से एक थे। इन्हें, श्यामा शास्त्री और मुत्तुस्वामी दीक्षितर के साथ ‘कर्नाटक संगीत त्रिमूर्ति’ में स्थान प्राप्त है। 18वीं सदी में दक्षिण भारत में श्री त्यागराजा ने तेलुगु भाषा में भगवान श्रीराम के हजारों गीतों की रचना कर श्रीराम भक्ति का प्रचार-प्रसार किया। श्री पुरन्दर दास महास्वामी (1484-1564) को कर्नाटक संगीत का जनक कहा जाता है। उनका जन्म कर्नाटक राज्य के चित्रदुर्ग जिले में हुआ था। एक सफल व्यापारी तथा भगवान विट्ठल के भक्त के रूप में दक्षिण भारत में उन्होंने कन्नड़ भाषा में श्रीराम भक्ति आन्दोलन को बढ़ावा दिया। कीर्तन और पद के माध्यम से उन्होंने जगह-जगह इसका प्रचार किया। कहा जाता है कि श्री पुरन्दर दास जी ने करीब पांच लाख भक्ति गीत और कीर्तन लिखे। इनमें से दो हजार हजार से अधिक गीत आज भी प्रचलित हैं। भगवान श्रीराम भक्ति का गुणगान कर रहे हैं। यहां श्री पुरन्दर दास महास्वामी की प्रतिमा का अनावरण किया गया है। पूज्य श्री अरुणाचल कवि महास्वामी का कालखण्ड 1711-1779 तक था। इन्हें कर्नाटक संगीत में विशेष स्थान प्राप्त है। उनका जन्म तमिलनाडु के वालुकर नामक गाँव में हुआ था। वे प्रारम्भ में संस्कृत और तमिल साहित्य के विद्वान थे, लेकिन बाद में उन्होंने संगीत और अपने भक्ति गीतों के माध्यम से दक्षिण भारत में भगवान श्रीराम के जीवन और गुणों का भावपूर्ण वर्णन किया। यहां श्री अरुणाचल कवि की प्रतिमा का अनावरण भी किया गया है।