एपीजे अब्दुल कलाम: सादगी, मानवतावादी, देशप्रेमी, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता का उत्तमपुरुष चरित्र”
डॉ प्रमोद कुमार

भारत भूमि ऐसे महान सपूतों से समृद्ध रही है जिन्होंने अपनी प्रतिभा, सादगी, मानवता और कर्मनिष्ठा से न केवल देश का गौरव बढ़ाया, बल्कि संपूर्ण विश्व को प्रेरित किया। ऐसे ही एक दिव्य पुरुष थे — डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, जिन्हें स्नेहपूर्वक “मिसाइल मैन” और “जनता का राष्ट्रपति” कहा जाता है। उनका जीवन भारतीय संस्कृति की उन ऊँचाइयों का प्रतीक है जहाँ सादगी, मानवतावाद, देशप्रेम, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता का अद्भुत समन्वय मिलता है। डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के छोटे से द्वीप रामेश्वरम में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुलाब्दीन एक नाव चालक थे और माता आशियम्मा गृहिणी। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को जीवित रखा। उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में स्नातक और मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने डीआरडीओ और इसरो में वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया, जहाँ उनके नेतृत्व में भारत ने स्ल्व-3 रॉकेट और अग्नि, पृथ्वी जैसी मिसाइलों का सफल प्रक्षेपण किया।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और शिक्षा, विज्ञान तथा युवा सशक्तिकरण को जीवन का ध्येय बनाया। उनका पूरा जीवन सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रसेवा से परिपूर्ण रहा। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्ची महानता पद, धन या प्रसिद्धि में नहीं, बल्कि मानवता और कर्मयोग में है। डॉ. कलाम का जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि सीमित संसाधनों में भी व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और परिश्रम से असंभव को संभव बना सकता है। वे वास्तव में भारत के उत्तमपुरुष थे — जिन्होंने अपने जीवन से यह सिखाया कि सादगी और आत्मनिर्भरता ही सच्चे विकास का मार्ग हैं।
इसलिए हम गर्व से कह सकते है कि भारतवर्ष की धरती सदा से ऐसे महापुरुषों की जन्मभूमि रही है जिन्होंने अपनी योग्यता, तप, त्याग, सादगी और मानवीय संवेदनाओं के बल पर देश को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उन्हीं महान आत्माओं में एक नाम सदा अमर रहेगा — डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। वह केवल वैज्ञानिक नहीं थे, बल्कि एक शिक्षक, दार्शनिक, विचारक, राष्ट्रनिर्माता और सच्चे कर्मयोगी थे। उनका जीवन भारतीय संस्कृति के उन मूल तत्वों का प्रतीक है, जिसमें सादगी, मानवता, देशप्रेम, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता का अद्भुत समन्वय मिलता है। डॉ. कलाम ने यह सिद्ध किया कि व्यक्ति चाहे कितनी भी साधारण परिस्थितियों में जन्म ले, यदि उसके भीतर ईमानदारी, कर्मनिष्ठा और लक्ष्य के प्रति दृढ़ता हो, तो वह राष्ट्र को दिशा दे सकता है।
1. डॉ. कलाम का प्रारंभिक जीवन: संघर्ष से उत्कर्ष तक
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ। उनका पूरा नाम था अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम। उनका परिवार धार्मिक और अनुशासित था, किंतु आर्थिक दृष्टि से अत्यंत साधारण।
उनके पिता जैनुलाब्दीन एक नाव चालक थे और माता आशियम्मा एक गृहिणी। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी कलाम ने कभी गरीबी को अपने सपनों पर हावी नहीं होने दिया। वे बचपन में अख़बार बाँटकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालते थे। कलाम का बचपन भौतिक रूप से सीमित था, किंतु मानसिक रूप से अत्यंत समृद्ध। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रामेश्वरम के स्थानीय स्कूल से प्राप्त की और फिर सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।
यह वही समय था जब भारत स्वतंत्रता के बाद आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ रहा था, और कलाम का जीवन इसी सपने से जुड़ गया — भारत को वैज्ञानिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना।
2. वैज्ञानिक जीवन की यात्रा: आकाश से अंतरिक्ष तक
1958 में डॉ. कलाम ने डी.आर.डी.ओ. (DRDO) में वैज्ञानिक के रूप में कार्य प्रारंभ किया। 1969 में उन्हें इसरो (ISRO) भेजा गया, जहाँ वे भारत के पहले उपग्रह प्रक्षेपण यान SLV-3 के परियोजना निदेशक बने।
1980 में भारत ने रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया — यह डॉ. कलाम के नेतृत्व की अद्वितीय उपलब्धि थी।
इसके बाद उनका योगदान भारत की रक्षा प्रणाली के आधुनिकीकरण में अभूतपूर्व रहा। उन्होंने अग्नि, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल, और नाग जैसी मिसाइल परियोजनाओं को सफलतापूर्वक विकसित किया, जिसके कारण उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” कहा गया।
उनकी तकनीकी प्रतिभा और संगठनात्मक क्षमता ने भारत को स्वदेशी तकनीक के बल पर अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। वे सदैव इस बात पर बल देते थे कि “राष्ट्र की सुरक्षा और वैज्ञानिक विकास आत्मनिर्भरता की नींव हैं।”
3. राष्ट्रपति काल: जनता के राष्ट्रपति का जीवन दर्शन
डॉ. कलाम को वर्ष 2002 में भारत का 11वाँ राष्ट्रपति चुना गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जब एक वैज्ञानिक और शिक्षक ने राजनीति की सर्वोच्च कुर्सी संभाली।
उनका राष्ट्रपति कार्यकाल (2002–2007) भारत के इतिहास में सबसे लोकप्रिय और प्रेरणादायक काल माना जाता है।
वे कभी भी औपचारिकता के बंधनों में नहीं बंधे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को जनता और विद्यार्थियों के लिए खुला रखा। वे सदैव छात्रों, शिक्षकों और आम नागरिकों से संवाद करते रहे।
उन्हें “People’s President (जनता का राष्ट्रपति)” कहा गया क्योंकि वे हर वर्ग से जुड़े रहे, बिना किसी भेदभाव के।
उन्होंने राजनीति में रहते हुए भी राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया, सत्ता का साधन नहीं।
4. सादगी: जीवन का मूल तत्व
सादगी डॉ. कलाम के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान थी।
राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपनी आदतें नहीं बदलीं — उनका पहनावा सामान्य, आहार सादा और जीवन अनुशासित रहा। वे राष्ट्रपति भवन के वैभव से दूर साधारणता में विश्वास करते थे। कई बार उन्होंने कहा “सरल जीवन और उच्च विचार ही मनुष्य को महान बनाते हैं।”
वे किसी पद, भोग या संपत्ति से प्रभावित नहीं हुए। उनके लिए सादगी केवल बाहरी रूप नहीं थी, बल्कि आंतरिक शुचिता का प्रतीक थी। उनकी सादगी ने यह सिखाया कि महानता का अर्थ वैभव नहीं, बल्कि विनम्रता और आत्मनियंत्रण है।
5. मानवतावादी दृष्टिकोण: प्रेम और संवेदना की मूर्ति
डॉ. कलाम का हृदय अत्यंत संवेदनशील था। वे जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर किसी में भेद नहीं करते थे।
उनके अनुसार “मानवता सबसे बड़ा धर्म है, और हर धर्म का सार यही है कि मनुष्य दूसरे के दुख में सहभागी बने।” वे सदैव बच्चों और युवाओं के संपर्क में रहते थे। जब भी वे किसी विद्यालय या विश्वविद्यालय में जाते, विद्यार्थियों से सीधे संवाद करते, उन्हें आत्मविश्वास और प्रेरणा देते। उन्होंने कहा था “यदि आप देश को बदलना चाहते हैं, तो पहले उसके बच्चों को शिक्षित और प्रेरित कीजिए।”
उनकी मानवीय दृष्टि केवल शिक्षा तक सीमित नहीं थी; वे पर्यावरण, ग्रामीण विकास, नैतिकता, शांति और विश्व-भाईचारे के भी प्रबल समर्थक थे। वे मानते थे कि सच्ची प्रगति तभी संभव है जब विकास के केंद्र में मनुष्य और उसकी गरिमा हो।
6. देशप्रेम: राष्ट्र ही परिवार
डॉ. कलाम के जीवन का प्रत्येक कार्य राष्ट्र के प्रति समर्पित था। वे स्वयं कहते थे “मैं भारत के विकास के लिए जिया, भारत के लिए काम किया और भारत के लिए ही मरना चाहता हूँ।”
उनका “India 2020” दृष्टिकोण केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय घोषणापत्र था जिसमें उन्होंने भारत को विकसित, आत्मनिर्भर और नैतिक राष्ट्र के रूप में देखने का सपना दिखाया। उनके अनुसार, देशप्रेम का अर्थ केवल देशभक्ति के नारे नहीं, बल्कि ईमानदार कार्य, समर्पण और जिम्मेदारी से है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया “अपने देश को महान बनाना है तो पहले अपने काम को महान बनाइए।”
7. चरित्र निर्माण: शिक्षा का असली उद्देश्य
डॉ. कलाम शिक्षा को केवल रोजगार प्राप्त करने का माध्यम नहीं मानते थे। उनके अनुसार “शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है।”
वे कहते थे कि यदि शिक्षक ईमानदार, समर्पित और चरित्रवान होंगे, तो राष्ट्र स्वतः सशक्त बन जाएगा। वे बच्चों में तीन गुणों को विकसित करने पर बल देते थे —
1. जिज्ञासा (Curiosity)
2. रचनात्मकता (Creativity)
3. कर्तव्यनिष्ठा (Commitment)
उनका यह विश्वास था कि एक शिक्षित, नैतिक और आत्मानुशासित युवा ही राष्ट्र का भविष्य है। उनकी पुस्तक “Ignited Minds” इसी विचार की परिणति है — जहाँ उन्होंने कहा कि हर युवा के भीतर एक “ज्वलंत मन” है जिसे सही दिशा और प्रेरणा की आवश्यकता है।
8. आत्मनिर्भरता: आत्मविश्वास से विकसित भारत
डॉ. कलाम ने अपने वैज्ञानिक और प्रशासनिक जीवन में आत्मनिर्भर भारत के विचार को केंद्र में रखा। उनका कहना था कि राष्ट्र तभी सम्मानित होगा जब वह अपनी तकनीक,
संसाधन और ज्ञान पर भरोसा करेगा। उन्होंने “Vision 2020” में लिखा “भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना ही होगा।”
उन्होंने ‘PURA’ (Providing Urban Amenities to Rural Areas) की अवधारणा दी — जिसका उद्देश्य था कि ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी सुविधाओं से जोड़ा जाए ताकि विकास संतुलित और समावेशी हो।
वे मानते थे कि आत्मनिर्भरता का आधार स्वदेशी सोच और स्थानीय नवाचार है, न कि विदेशी आयातों पर निर्भरता।
9. शिक्षक के रूप में कलाम: जीवन पर्यंत शिक्षा का प्रवाह
राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी डॉ. कलाम ने अपने जीवन का अंतिम अध्याय शिक्षण को समर्पित किया। वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs), भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIMs) और अनेक विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों से संवाद करते रहे।
उनका यह कहना प्रसिद्ध है “यदि मैं शिक्षक नहीं बन पाता, तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता।”
27 जुलाई 2015 को जब वे आईआईएम शिलॉन्ग में “Creating a Liveable Planet Earth” पर व्याख्यान दे रहे थे, तभी मंच पर ही उनका हृदयाघात से निधन हो गया।
उन्होंने मृत्यु तक वही किया जो वे सबसे अधिक प्रेम करते थे — शिक्षा देना।
10. डॉ. कलाम के प्रमुख विचार और जीवन मूल्य
1. सपनों की शक्ति —
“सपना वो नहीं जो आप नींद में देखते हैं, सपना वो है जो आपको नींद नहीं आने देता।”
वे युवाओं को हमेशा बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने का साहस रखने के लिए प्रेरित करते थे।
2. कर्मयोग —
वे कर्म को पूजा मानते थे। उनका कहना था — “भगवान हर उस व्यक्ति की मदद करता है जो अपने काम से प्रेम करता है।”
3. विश्वास और ईमानदारी —
“यदि चार चीज़ें आपके पास हैं — ईमानदारी, मेहनत, अनुशासन और सकारात्मक सोच — तो आप किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।”
4. विज्ञान और अध्यात्म का संगम —
वे विज्ञान को भौतिक विकास का और अध्यात्म को नैतिक विकास का साधन मानते थे।
उनके अनुसार, “विज्ञान हमें शक्ति देता है, अध्यात्म हमें दिशा देता है।”
11. प्रेरणादायक पुस्तकें और साहित्यिक योगदान
डॉ. कलाम ने कई पुस्तकें लिखीं जो आज भी युवाओं और शिक्षकों के लिए दिशा-सूचक हैं।
Wings of Fire – उनकी आत्मकथा, जो बताती है कि एक साधारण बालक कैसे मिसाइल मैन बना।
Ignited Minds – युवाओं की क्षमता और सृजनात्मकता पर आधारित।
India 2020 – भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का रोडमैप।
My Journey – उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों का संग्रह।
Inspiring Thoughts, The Life Tree, Mission India आदि ग्रंथ भी समान रूप से प्रेरणादायक हैं।
इन पुस्तकों में कलाम ने जीवन के प्रत्येक पहलू — नैतिकता, शिक्षा, आत्मविश्वास, विज्ञान, नेतृत्व और आध्यात्मिकता — को समाहित किया है।
12. राष्ट्रनिर्माण में डॉ. कलाम की विरासत
डॉ. कलाम का योगदान केवल विज्ञान या राजनीति तक सीमित नहीं था; उन्होंने भारत को नई आत्मा दी।
उनकी प्रेरणा से करोड़ों युवाओं ने शिक्षा, शोध, और नवाचार के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा पाई। भारत की वैज्ञानिक प्रगति, रक्षा शक्ति, तकनीकी आत्मनिर्भरता और नैतिक नेतृत्व — इन सबमें उनकी छाप अमिट है। उनकी सोच ने यह स्पष्ट किया कि “राष्ट्र का भविष्य युवाओं के हाथों में है, और युवा तभी मजबूत होंगे जब वे चरित्रवान होंगे।”
13. आधुनिक भारत के संदर्भ में कलाम का आदर्श
आज जब विश्व उपभोक्तावाद, असमानता और नैतिक पतन से जूझ रहा है, डॉ. कलाम के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि विकास का अर्थ केवल आर्थिक वृद्धि नहीं, बल्कि नैतिक और मानवीय उत्थान भी है। उनका जीवन यह संदेश देता है कि आधुनिकता और अध्यात्म का समन्वय ही सच्ची प्रगति का मार्ग है। यदि भारत को “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य तक पहुँचना है, तो हमें कलाम के आदर्शों — सादगी, मानवता, देशप्रेम, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता — को जीवन में उतारना होगा।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन भारतीय संस्कृति के उस आदर्श का जीवंत उदाहरण है, जिसमें सादगी, मानवता, देशभक्ति, चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता का अद्भुत संगम दिखाई देता है। उन्होंने अपने कर्म, विचार और आचरण से यह सिद्ध किया कि महानता बाहरी वैभव में नहीं, बल्कि आंतरिक शुचिता और कर्तव्यनिष्ठा में निहित है। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर उन्होंने कठिन परिश्रम, दृढ़ निश्चय और ईमानदारी के बल पर भारत को अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। वे वैज्ञानिक थे, परंतु उनके भीतर मानवता की गहराई और शिक्षक का स्नेह सदैव जीवित रहा। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन भारतीयता का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने अपने आचरण से यह सिद्ध किया कि महानता पद, धन या प्रसिद्धि से नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी, मानवता और कर्मनिष्ठा से प्राप्त होती है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक वैज्ञानिक थे, पर उनके भीतर एक संत का हृदय था; वे राष्ट्रपति थे, पर स्वयं को शिक्षक मानते थे; वे नेता थे, पर राजनीति से परे मानवता के प्रतीक थे। उनकी सादगी ने यह सिखाया कि जीवन का सौंदर्य सादे जीवन में और ऊँचे विचारों में बसता है। उनका मानवतावाद धर्म, जाति या भाषा की सीमाओं से परे था; उनके लिए हर भारतीय, हर बच्चा, हर युवा भारत की आशा था। उन्होंने देशप्रेम को कर्म का पर्याय बनाया और युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने सपनों को राष्ट्रनिर्माण से जोड़ें। डॉ. कलाम का जीवन संदेश देता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और आत्मनिर्भरता है। आज जब समाज भौतिकता और स्वार्थ के जाल में उलझा हुआ है, डॉ. कलाम के आदर्श हमें पुनः याद दिलाते हैं कि सच्चा विकास मानवीय मूल्यों के संरक्षण से ही संभव है। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि हर व्यक्ति अपने कर्म, ईमानदारी और संकल्प से राष्ट्र के लिए उपयोगी बन सकता है। वे सचमुच भारत के ऐसे उत्तमपुरुष थे जिन्होंने जीवन के हर क्षण को राष्ट्र और मानवता के लिए समर्पित किया — और इसीलिए वे सदैव अमर रहेंगे।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा