
एक बार फिर अयोध्या के दीपोत्सव का वैश्विक कीर्तिमान कायम हुआ। छब्बीस लाख से अधिक दीप प्रज्वलित हुए। दुनिया के लिए लिए यह आकर्षण और शोध का विषय बन चुका है। अयोध्या दीपावली की भव्यता विश्व के लोगों का ध्यान आकृष्ट करने लगी है। प्राचीन भारत में ऐसा रहा भी होगा। प्रभु राम लंका विजय के बाद अयोध्या आये थे। तब यह नगरी दीपों से जगमगा उठी थी। विगत वर्षों में यहां की भव्यता व दिव्यता विश्व में आकर्षण का विषय बन गई है। दीपोत्सव में बड़ी संख्या में बाहर के लोग अयोध्या आते हैं। पर्व और त्योहार केवल आयोजन नहीं,बल्कि यह अपनी क्षमता आंकने के अवसर भी हैं। त्रेता युग में जिस प्रकार भगवान श्रीराम रावण वध करके अयोध्या नगरी लौटे थे,ठीक उसी प्रकार अयोध्या दीपोत्सव आयोजन में भी राम जी का आगमन मंचित किया जाता है। पावन सरयू नदी के तट पर दीपों की विशाल कतार से प्रकाश करके स्वागत किया जाता है।
त्रेता में निषाद राज को जब पता चला कि प्रभु राम का आगमन हो रहा है, तब उन्होंने पूरे क्षेत्र को सुसज्जित किया था. सबरी तो प्रति दिन राह को पुष्प को सुसज्जित करती थीं. उन्हें विश्वस था एक दिन प्रभु श्री राम अवश्य आयेंगे. वह कोई तिथि शास्त्र नहीं जानती थी. भक्ति में लीन रहती थी. अंततः उनकी प्रतीक्षा पूर्ण हुई थी. प्रभु राम की वापसी के लिए अयोध्या के लोगों ने चौदह वर्ष प्रतीक्षा की थी. प्रभु के आगमन की सूचना मिलते ही उन्होंने अयोध्या को सुसज्जित करना शुरू कर दिया था. उनके आगमन पर दीपोत्सव मनाया गया। प्रभु राम के वनगमन के बाद भी अयोध्या में चौदह वर्षों तक उदासी का माहौल था। प्रभु राम के वापस लौटने पर यहां के लोगों ने दीपोत्सव मनाया था। इसी के साथ उत्साह रूपी प्रकाश का संचार हुआ था,उदासी का अंधकार तिरोहित हो गया था। अयोध्या दीपोत्सव में त्रेता युग की झलक दिखाई देती है।