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मणिपुर हिंसा और कांग्रेस की राजनीति 

मृत्युंजय दीक्षित 

पूर्वोत्तर का राज्य मणिपुर, हाईकोर्ट का एक निर्णय आने के बाद से विगत 77 दिनो से हिंसा की चपेट में है। गृहमंत्री अमित शाह के चार दिवसीय दौरे के दौरान शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए किए गए प्रयासों के फलस्वरूप राज्य तीव्रता के साथ सामान्य जीवन की दिशा में अग्रसर हो रहा था। इधर संसद के मानसून सत्र की तैयारियां भी चल रही थीं और संसद का मानसून सत्र प्रारम्भ होने के ठीक एक दिन पहले रात्रि में मणिपुर का एक दुखद और वीभत्स वीडियो कांग्रेस तथा उसके नेताओं के ट्विटर  हैंडिल से जारी किया गया जिसमें दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनकी परेड करायी जा रही है और उनके साथ गैंगरेप की बात भी कही जा रही है। 
कांग्रेस द्वारा वायरल किए गए इस विडियो की अमानवीय घटना को देश के किसी भी भाग में किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता और स्वयं प्रधानमंत्री जी ने सामने आकर दोषियों को कठिनतम दंड दिलाने की बात कही है।
ज्ञातव्य है यह वीडियो मई माह के आरंभिक दिनों का है जिसे कांग्रेस ने संसद का सत्र प्रारंभ होने से पहले वायरल किया। स्वाभाविक रूप से  कांग्रेस का उद्देश्य केवल हंगामा खड़ा करके सदन के सत्र को बाधित करना  था, मणिपुर या पीड़ित से उसका कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस के लोग ये बहुत अच्छी तरह जानते थे कि इस वीडियो के सामने आने पर पुनः हिंसा भड़क सकती है और कुछ अन्य लोगों को जान-माल की हानि उठानी पड़ सकती है फिर भी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उसने ऐसा किया। 
मणिपुर हिंसा की चर्चा करते समय यह ध्यान रखा जाना भी आवश्यक है कि मणिपुर की भौगोलिक, राजनैतिक, सामाजिक स्थितियां जटिल हैं, लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, समस्याएँ दशकों पुरानी है अतः उनके पूर्ण समाधान के लिए धैर्य और गंभीरता के साथ उनकी एक एक गाँठ को खोलने का प्रयास करना होगा । केंद्र में मोदी जी की सरकार आने के पश्चात सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत में जिस प्रकार शांति बनाए रखने के प्रयास किए जा रहे हैं उनको देखकर ये अनुमान लगाना सहज है कि वर्तमान सरकार पूर्वोत्तर को लेकर सजग है।
आज ऐसे ऐसे लोग जो लोग मणिपुर ही नहीं अपितु पूर्वोत्तर राज्यों के नाम उनकी राजधानी और अन्य शहरों के नाम तक नहीं जानते, मणिपुर की घटनाओं पर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को आघात पहुंचाने के लिए संसद ठप करने का प्रयास  कर रहे हैं। यही कारण है कि वीडियो जारी किए जाने के समय को लेकर विपक्ष की मंशा पर संदेह हो रहा है। यदि इस घटना का वीडियो उनके पास था तो पीड़ित को न्याय दिलाने का विचार तीन माह बाद क्यों आया वो भी संसद का सत्र प्रारंभ होने की पूर्व संध्या पर।
केंद्र सरकार मणिपुर की घटनाओं को कतई हलके में नहीं ले रही है स्वयं गृह मंत्री वहां चार दिन निवास करके आए हैं किंतु मोदी विरोधी गैंग ने मणिपुर को संसद ठप करने का बहाना बना लिया है। स्वयं सरकार में रहते कांग्रेस ने कभी पूर्वोत्तर पर उचित ध्यान नहीं नहीं दिया और समस्याओं को गंभीर होने दिया। 
आज पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकारें हैं जिसके कारण वहां ईसाई व मुस्लिम संस्थाओं द्वारा स्थानीय हिंदू समाज का धर्मांतरण करना कठिन हो गया है और धर्मांतरण कराने वाले विपक्ष पोषित अराजक तत्व ये स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। 
विगत वर्षों में पूर्वोत्तर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी हुई है, वे पूर्वोत्तर के 50 से अधिक दौरे कर चुके हैं। यह भी एक कारण है कि विपक्ष मणिपुर की घटनाओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। 
वास्तव में भारत के विकास का विरोधी कांग्रेसी, वामपंथी, लिबरल गैंग मणिपुर के सहारे देशभर में अराजकता का वातावरण तैयार करना चाहता है। यह गिरोह मणिपुर के सहारे भारत के लोकतंत्र एवं भारतीय व्यवस्था को वैश्विक कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहा है । ये हंगामेबाज गैंग मणिपुर को प्रायोगिक तौर पर लेकर पूर्वोत्त्तर के अन्य राज्यों में भी  मणिपुर जैसी स्थितियां उत्पन्न करने का षड्यंत्र कर सकता है अतः सभी को सावधान रहने की आवश्यकता है ।
मणिपुर घटना पर हंगामा करने वाले तथाकथित विरोधी दल और उनके पिछलग्गू बुद्धिजीवी राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और बंगाल में घट रही भयानक घटनाओं पर आँखें मूँद कर आगे बढ़ जाते हैं आखिर क्यों? राजस्थान में बाड़मेर की दलित महिला से दरिंदगी की जाती है और उसे दुष्कर्म के बाद जिंदा जला दिया जाता है। राजस्थान में कन्हैयालाल नाम के एक गरीब दर्जी का सिर तन से जुदा कर दिया जाता है तब ये सब के सब गहरी निद्रा में चले जाते हैं। पालघर में हिंदू साधु संतों को कार से उतारकर उन्मादी भीड़ उन्हें मार डालती है तब इनके मुंह में दही जमा रहता है । अमरावती का उमेश कोल्हे कांड इनको व्यथित नहीं करता । रामनवमी पर  जगह- जगह जुलूसों पर अकारण पत्थरबाजी व हिंसा की जाती है तब ये अपने होठ सिल कर बैठते हैं। इनको न्याय या शांति से नहीं अपनी राजनीति से लेना देना है ।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी मणिपुर जा रहे थे, मोहब्बत की दुकान खोलने। उन्होंने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहां पर भी मणिपुर की झूठी और गलत तस्वीर प्रस्तुत करने का प्रयास किया था। राहुल गांधी की हरकतों का ही परिणाम है कि अमेरिका का एक राजदूत  मणिपुर में हस्तक्षेप करने की धमकी देता है और  यूरोपियन यूनियन की संसद में मणिपुर की घटनाओं की निंदा करने के लिए प्रस्ताव आ जाता है। कैसे लोग हैं ये? कैसा राजनैतिक दल है ये? 
कांग्रेस के साथ साथ ऐसे कई राजनैतिक दल जिनका एक भी विधायक तो क्या पूर्वोत्तर में एक कार्यकर्ता तक नहीं है वो भी  मणिपुर की तथाकथित घटना को लेकर ओछी बयानबाजी करके देश में  प्रधानमंत्री मोदी विरोधी के विरुद्ध वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इनका दोहरा चरित्र तो इनके ममता बनर्जी के साथ गठबंधन करने से ही स्पष्ट हो जाता है जिनके राज्य में टीएमसी के 40 कार्यकर्ताओं ने एक महिला की सरेआम पिटाई की और उसे निर्वस्त्र कर दिया। इसी प्रकार बंगाल के ही मालदा मे दो महिलाओं को चोरी करने के आरोप में सार्वजनिक रूप से पिटाई करके उनके कपड़े फाड़ दिए गए किंतु संभवतः विरोधी दल उन्हें महिला नहीं मानते क्योंकि वो भाजपा शासित राज्य नहीं है । 
सच तो यह है कि मणिपर की घटना विपक्ष के लिए हंगामा करने का बहाना भर है उनका एकमात्र लक्ष्य भारत के विकास को बाधित कर सत्ता पर अपना अधिकार पाना है
महिलाओं के अपमान को अपने राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करने का हथियार बनाने का जो घृणित प्रयास कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी दलों ने प्रारंभ किया है वह भर्त्सना के योग्य है। यदि इसका रंचमात्र लाभ भी इन दलों को मिल जाता है तो ये भारत की स्त्रियों का दुर्भाग्य होगा। 

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