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प्रदेश में जातिवादी राजनीति फिर ले रही अंगड़ाई, समाजवादी नेता की बयानबाजी नफरत से भरी   

मृत्युंजय दीक्षित 

उत्तर प्रदेश में सभी दलों ने लोकसभा चुनावों की तैयारियां तेज कर दी हैं। जैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों ने आई.एन.डी.आई.ए. नाम से अपना नया महागठबंधन बनाया वैसे ही उत्तर प्रदेश में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों  ही खेमो ने अपनी अपनी धड़ेबंदी और बयानबाज़ी आरम्भ कर दी। 
चुनावी प्रक्रिया के पहले सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दल स्वाभाविक रूप से अपनी अपनी भूमिका का भी निर्धारण करते हैं। इसी प्रक्रिया  में उत्तर प्रदेश की राजनीति में दोनों खेमों की बढ़त को रोकने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बहिन मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाजवदी पार्टी ने अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है और  बहिन मायावती की ओर से बहुत सधे हुए  बयान आ रहे  है। इसके उलट विगत विधानसभा चुनावें मे जो दल समाजवादी पार्टी के खेमे में थे उनमे से अधिकांश भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल हो चुके हैं जबकि कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों  से भाजपा नेतृत्व लगातार संपर्क स्थापित कर उनसे बातचीत कर रहा है । 
प्रदेश में लगभग सभी दल जातिगत आधार पर अपना गणित फिट करने के लिए काम कर रहे हैं जिसमें समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में आई.एन.डी.आई.ए.  गठबंधन जातिगत जनगणना की मांग को लेकर आगे बढ़ रहा है, इस विषय पर समाजवादी नेता लगातार बयानबाजी कर रहे हैं और सपा का बौद्धिक प्रकोष्ठ संगोष्ठियां आयोजित कर वातवारण को गरमाने की सियासत कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी आगामी चुनावों उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए लगातार काम कर  रही है और वह भी दूसरे दलों के ऐसे नेताओ को जिनका अपना एक बड़ा जातिगत आधार है उन्हें पार्टी में शामिल करने का अभियान चला रही है। 
विगत दिनों प्रदेश की राजनीति में दो ऐसे बयान आये हैं जिनसे यह साफ हो गया है कि 2024 लोकसभा चुनावों के लिए  प्रदेश में जातिगत राजनीति पुनर्जीवित की जा रही है। 
समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जो 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर जीते थे और मंत्री बने थे ये  2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी को धोखा देकर अपने कुछ सहयोगियों के साथ सपा में वापस जाकर सपा के टिकट पर लड़े थे और हार गये थे, लोकसभा चुनावों को देखते हुए अपनी राजनैतिक टीआरपी बढ़ाने के लिए बेहद व्याकुल हैं । वह लगातार ओछे और विकृत बयान दे रहे हैं  और उन्हें लग रहा है कि वह ऐसा करके समाजवादी पार्टी के हित में काम कर रहे हैं । 
स्वामी प्रसाद मौर्य ने सर्वप्रथम हिंदू जनमानास के सबसे पवित्र धर्मग्रंथ रामचरित मानस पर ही अभद्र टिप्पणी की फिर  संत समाज का भी अपमान किया। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि निजी हित के लिए मौर्या हिंदू समाज के खिलाफ नफरत उड़ेल रहे  हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानो से हिंदू समाज लगातार आहत हो रहा है। जब रामचरित मानस का प्रकरण थोड़ा ठंडा पड़ने लगा तो उन्होंने हिंदू समाज के सर्वाधिक पवित्र तीर्थों  से एक बदरीनाथ धाम को लेकर ही एक विवादित बयान दे डाला।  सपा नेता के इस बयान से राजनीति गर्मा गयी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस विवाद में कूद पड़े और मौर्या को चेतावनी दे डाली। वहीं बसपा नेत्री मायावती ने भी बदरीनाथ धाम के मुददे पर सपा नेता मौर्य पर तीखा हमला बोला है। 
स्वामी प्रसाद मौर्य घोर जातिवादी व नफरत से भरे नेता हैं जो अपने बयानों को और कड़वा बनाकर वातावरण को खराब करने का प्रयास कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा को चेतावनी जारी कर कह रहे हैं कि भाजपा के लोग साजिश के तहत मंदिर- मस्जिद के मामले को उठाकर हर मस्जिद में मंदिर खोजने की बात करेंगे तो यह परंपरा उन्हें महंगी पड़ेगी अगर हर मंदिर में मस्जिद खोजोगे तो लोग हर मंदिर में बौद्ध मठ खोजना शुरू करेंगे क्योकि इतिहास और साक्ष्य के प्रमाण हैं कि जितने भी हिंदू धर्म के तीर्थस्थल हैं वह सभी बौद्ध मठ पर बने हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस जहर उगलने का कारण यह आभास है कि 2024 तो दूर की बात है अब 2027 में भी उनके राजनैतिक भविष्य का सूर्योदय नहीं होगा।  
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी का कहना है कि सनातन धर्म का अपमान करना सपा और उनके नेताओं की घृणित मानसिकता बन चुकी है। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का हिंदुओं की आस्था के प्रमुख केंद्र बाबा केदारनाथ, बदरीनाथ और श्री जगन्नाथपुरी के विषय में दिया गया बयान न सिर्फ विवादित है अपितु उनकी ओछी मानसिकता व तुच्छ राजनीति का परिचायक है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बयान में ज्ञानवापी सर्वे के विरोध में मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा करते हुए सभी हिंदू मंदिरों के सर्वे की मांग करते हुए दावा किया था कि बदरीनाथ धाम बौद्ध मठ के ऊपर बना है। 
फूलन देवी पर राजनीति का नया दौर - कुख्यात डकैत  फूलन देवी जो जो उप्र के एक छोसे गांव गोरहा के पूर्वा में एक मल्लाह के घर में जन्मी थीं, परिवार के ही कुछ लोगों और फिर गांव के दबंगों ने उन पर अमानवीय अत्याचार किये थे। कालांतर में फूलन ने उनसे अपना बदला लिया और डकैती डालने लगीं। 1994 में सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने उनके ऊपर लगे सभी आरोपों  को पूरी तरह से वापस ले लिया और उनको राजनीति में ले आए। फूलन 11वीं और 13वीं लोकसभा में सांसद बनीं और 25 जुलाई 2001 को फूलन देवी की हत्या हो गई। फूलन की मौत के 22 वर्ष बीतने के बाद जातिगत राजनीति करने के लिए उसको जिंदा करने के प्रयास हो रहे हैं। 
प्रदेश सरकार में शामिल निषाद पार्टी ने फूलन देवी की मौत के 22 वर्ष बीत जाने के बाद उनकी हत्या की सीबीआई जांच की मांग कर डाली है। निषाद पार्टी के नेता डा .संजय निषाद का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री सहित तमाम लोगों को पत्र लिखकर मांग की है कि वीरांगना फूलन देवी मछुआ समाज की ही नहीं अपितु विश्व की महिलाओं के लिए आदर्श रही हैं। उन्होंने समाज को जागरुक करने के लिए अन्याय के खिलाफ मोर्चा खोला। फूलन देवी ने जुल्म, अत्याचार  उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं के सम्मान की रक्षा और उनके हक के लिए सड़क से संसद तक लड़ाई लड़ी है। निषाद पार्टी वीरांगना फूलन देवी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है।
यह बात सही है कि फूलन देवी ने अपने जीवनकाल में बहुत अत्याचार सहे हैं किंतु क्या जातिगत आधार पर उन्हें वीरांगना कहा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि  फूलन देवी की मौत के 22 साल बाद सीबीआई जांच की मांग करना कहां तक उचित है ? यह तथाकथति महज राजनैतिक स्वार्थ और स्टंट की राजनीति नहीं तो और क्या है? क्या फूलन देवी जैसी महिला  को वीरांगना कहना उचित है। जातिवाद की राजनीति के कारण आजकल स्टंटबाजी भी खूब हो रही है । फूलन देवी की आड़ में राजनीति चमकाने के लिए समाजवादी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ ने भी फूलन देवी की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके चित्र पर माल्यार्पण  किया और बयान जारी किया। 
इस तरह की राजनीति भारतीय जनता पार्टी के समक्ष भी राजनैतिक चुनौतियां प्रस्तुत कर रही है। पहली बात यह है कि निषाद पार्टी भाजपा के गठबंधन में शामिल है और भाजपा सामाजिक समरसता को कायम रखने के लिए संकल्पित है। अगर भाजपा कुछ कहती है तो उसे नुकसान हो सकता है या सहयोगी बिदक भी सकता है इसलिए भाजपा ऐसे मुददों से फिलहाल दूरी बनाकर ही चलती है। 
आने वाला चुनाव काल उत्तर प्रदेश में एक नए जातिवादी उबाल का साक्षी हो सकता है अतः राष्ट्रवादियों को एकजुट रखना भाजपा की प्राथमिकता होगी  । 

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