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सनातन दिगंबर परम्परा 

मनोज कान्हे 'शिवांश'

भारत अपनी वैभवशाली प्राचीन संस्कृतिक विरासत को सहेजकर आज दुनिया के सामने अग्रणी राष्ट्रों की सूची मे खड़ा है । विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति और विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत आज विकास के नित नवीन आयामों को छू रहा है। इतनी बड़ी आबादी इतना विशाल क्षेत्रफल और इतनी विविधताओं के बाद भी हम सभी भारतीय एक संस्कृतिक सूत्र मे बंधे है जिसका नाम है सनातन परम्परा । हमारे देश मे उपासना के बहुआयामी मार्ग है, हमारी आस्था भिन्न भिन्न है, भाषाएं भिन्न है, किंतु यदि कुछ एक है तो वो यही कि हम सभी वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात समस्त विश्व को अपना मानकर प्राणीमात्र के कल्याण की भावना को ही साथ रखते है, यही हमारे सनातन विचारों की महानता है । हमारे मत भिन्न हो सकते है किंतु हमारे मन एक है ,जिसमें ही भारत बसता है । इतनी भिन्नताओं मे हमारी यही जिम्मेदारी तय की गई है कि हम एक दूसरों की भावनाओं का पूर्ण सम्मान करें। हाल ही मे दिगंबर जैन संतों पर कथा वाचक अनिरुद्ध आचार्य द्वारा की गई टिप्पणी पूर्णतः खेद जनक है और यह हमारे सनातन समाज को बांटने वाला वक्तव्य है । दिगंबर जैन संत कड़े नियमों, कठोर अनुशासन, एवं संसार के हर बंधन को तोड़कर केवल     आत्म शुद्धि और प्राणीमात्र के कल्याण की भावना संजोकर कठिन ताप करने वाले तपस्वी होते है । यदि हम उन्हें धरती पर साक्षात देव तुल्य भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । ऐसे संतों पर अनुचित टिप्पणी पूर्णतः निंदनीय है । समस्त सनातन समाज इस वक्तव्य की घोर निंदा करता है । 

मनोज कान्हे 'शिवांश'
भारतीय राष्ट्रवादी मंच 

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