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भद्राकाल में नहीं बांधनी चाहिए राखी, आखिर क्या होता है भद्रा

वी एन मिश्र

आगरा। कुछ समय से त्योहारों की तिथियों को लेकर संशय की स्थिति पैदा हो रही है। कई त्योहार दो दिन मनाए जा रहे हैं। लोग अपने-अपने हिसाब से इन्हें मना रहे हैं।रक्षाबंधन की तिथि को लेकर भी लोगों में संशय बना हुआ है कि त्योहार 30 अगस्त को या 31 अगस्त को मनाया जाएगा।
श्री मती शंकर देवी इंटर कालेज के संस्कृत प्रवक्ता वी एन मिश्र ने बताया कि भारत में कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन रक्षाबंधन का एक अलग ही महत्व है। हर साल यह त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है, जो मनाया तो सिर्फ एक दिन जाता है,मगर इससे बनने वाला रिश्ता  जीवनभर कायम रहता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाई भी बहन को प्रेम रूपी रक्षा सूत्र बांधकर जीवनभर बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं। 
इस बार रक्षाबंधन की  तिथियों को लेकर संशय की स्थिति पैदा हो रही है। 
संस्कृत प्रवक्ता ने बताया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार, रक्षाबंधन का त्योहार हर वर्ष सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।इस वार भद्राकाल 30 अगस्त को रात 9 बजकर 2 मिनट तक होने के कारण ऐसे में राखी बांधने का शुभ समय 30 अगस्त की रात 9 बजकर 03 मिनट से लेकर 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। यदि बहनें सुबह रक्षाबंधन बांधना चाह रही है तो बुधवार को सुबह भद्रा लगने से पहले 6 बजकर बजे से 9 बजकर 27 मिनट तक बांध सकती है वहीं शाम को भी 5 बजकर 32 मिनट से 6बजकर 32 मिनट तक रक्षाबंधन बांधना शुभ है बता दें पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा आरंभ हो जाएगी जो कि रात 9:02 तक रहेगी। अत: भद्रा को टालकर रात्रि 9:02 के पश्चात् मध्यरात्रि 12:28 तक बहने भाइयों को राखी बांध सकती है। इस समय के बाद ही राखी बांधना ज्यादा उपयुक्त रहेगा। दरअसल, भद्रकाल को अशुभ मुहूर्त है। इसलिए लिए शुभ मुहूर्त में ही बहनों को अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधनी चाहिए। 31 अगस्त की सुबह 7.04 बजे तक पूर्णिमा रहेगी। इसके बाद से भाद्रपद मास शुरू हो जाएगा। इस कारण 30 अगस्त को ही रक्षा बंधन और सावन पूर्णिमा से जुड़े धर्म-कर्म करना ज्यादा शुभ रहेगा।

आखिर क्या होता है भद्रा 

संस्कृत प्रवक्ता के अनुसार भद्रा को शनिदेव महाराज की बहन और क्रूर स्वभाव वाली है। ज्योतिष में भद्रा को एक विशेष काल कहते हैं। भद्राकाल में शुभ कर्म शुरू न करने की सलाह सभी ज्योतिषी देते हैं। शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षा बंधन पर रक्षासूत्र बांधना आदि। सरल शब्दों में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव और छाया की पुत्री भद्रा का स्वरूप बहुत डरावना है। इस कारण सूर्यदेव भद्रा के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहते थे। भद्रा शुभ कर्मों में बाधा डालती थीं, यज्ञों को नहीं होने देती थी। भद्रा के ऐसे स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा था। उस समय ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा था कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे काल यानी समय में कोई शुभ काम करता है तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो, लेकिन जो लोग तुम्हारा काल छोड़कर शुभ काम करते हैं, तुम्हारा सम्मान करते हैं, तुम उनके कामों में बाधा नहीं डालोगी।

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