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बुध्दि प्रदायणी माँ शारदे का प्रकाटयोत्सव 'बसंत पंचमी'

प्रो. दिग्विजय कुमार शर्मा

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

वसंत पंचमी को माँ सरस्वती का जन्मदिवस कहा जाता है, इसके पीछे एक छोटी सी कहानी है- “हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी तब हर तरफ शांति व्याप्त थी। कहीं कोई ध्वनि नहीं सुनाई पड़ रही थी। उस समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल लेकर धरती पर छिड़का जिससे एक अदभुत शक्ति एवं चतुर्भुज हाथों वाली नारी का अवतार हुआ, जिनके हाथों में वीणा, माला, पुस्तक इत्यादि थी और जब उन्होंने ब्रह्माजी के कहने पर वीणा बजाई तो हर तरफ संसार में ध्वनि फैल गई, तब ब्रह्माजी ने वीणा की देवी को सरस्वती के नाम से पुकारा जो कि ज्ञान और संगीत की भी देवी कहलाती है। इसी कारण इस दिन को माँ सरस्वती के जन्मोत्सव रूप में मनाया जाता है।वागदेवी सरस्वती पृथ्वी पर अवतरित हुईं जब ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्माजी ने जीवों और मनुष्यों की रचना की। और जब उन्होंने सृजित सृष्टि को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि यह निस्तेज है । वातावरण बहुत शांत था तथा उसमें कोई आवाज या वाणी नहीं थी। उस समय, भगवान विष्णु के आदेश पर, ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। धरती पर गिरे जल ने पृथ्वी को कम्पित कर दिया तथा एक चतुर्भुज सुंदर स्त्री एक अद्भुत शक्ति के रूप में प्रकट हुई। उस देवी के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में मुद्रा तथा अन्य दो हाथों में पुस्तक व माला थी। भगवान ने महिला से वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की धुन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, मनुष्यों को वाणी प्राप्त हुई। उस क्षण के बाद, देवी को सरस्वती कहा गया। देवी सरस्वती ने वाणी सहित सभी आत्माओं को ज्ञान और बुद्धि प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि इस पंचमी को सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह घटना माघ महीने की पंचमी को हुई थी। इस देवी के वागेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी जैसे अनेक नाम हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण, उन्हें संगीत की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। वसंत पंचमी के दिन ज्ञान और बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

वसंत' शब्द का अर्थ है बसंत और 'पंचमी' का पांचवें दिन, इसलिये माघ महीने में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है। इस महीने के 5वे दिन यानी पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी शिक्षा के मंदिरों में माँ सरस्वती का पूजन होता है और सभी विद्यार्थी विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं।

हम सभी जानतें है कि हमारे देश भारत में 6 ऋतुएँ होती हैं जिनके नाम क्रमशः वसंत ऋतु , ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु , शरद ऋतु , हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु अर्थात पतझड़ हैं,जिनमें से वसंत ऋतु का मौसम सबसे ज्यादा सुहावना होता है और इसीलिए वसंत ऋतु को ऋतुओ का राजा यानी ऋतुराज भी कहा जाता है क्योंकि इस मौसम में हर जगह धरती पर हरियाली होती है, इसी मौसम में गेहूं और सरसों की खेती की जाती है और ऐसा लगता है कि गेहू के खेतों ने हरे रंग की साड़ी पहनी हो और दूसरी तरफ पीले सरसों के खेत सोने जैसे लगते है मानो हर जगह सोना बिखेर दिया गया हो।

इस दिन को बच्चे के जीवन में एक नई शुरुआत के रूप में भी मनाते है। परंपरागत रूप से बच्चों को इस दिन पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है क्योंकि इस दिन को ज्ञान की देवी की पूजा के साथ एक नई शुररूआत मानी जाती है।
पीले रंग का इस दिन काफी महत्व होता है। बसंत का रंग होने के कारण  पीले रंग को 'बसंती' रंग भी कहा जाता है। यह रंग समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशीर्वाद का प्रतीक है। इस कारण लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग में पारंपरिक व्यंजनों को बनातें है।

लोककथाओं के अनुसार, धन और समृद्धि को लाने के लिए बसंत पंचमी पर सांप को दूध पिलाया जाता है। पतंग उड़ाना जोकि भारत में एक लोकप्रिय खेल है, वसंत पंचमी के त्योहार के साथ जुड़ा हुआ है। खास तौर पर पंजाब में पतंग उड़ाने की परंपरा का काफी महत्व है। लेकिन अब सब जगहों पर पतंगबाजी का आयोजन होता है। वसंत पंचमी के दिन ही होलिका की मूर्ति के साथ लकड़ीयों को इकट्ठा करके एक सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाता है। अगले 40 दिनों के बाद, होली से एक दिन पहले, श्रद्धालु होलिका दहन करते हैं जिसमें छोटी छोटी टहनियाँ और अन्य ज्वलनशील सामग्री भी डालते है।

अधिकांशत: हमारे भारत में कोई भी त्योहार मीठे के बिना अधूरा होता है। बंगाल – माँ सरस्वती को बूंदी के लड्डू और मीठे चावल अर्पित किये  जाते हैं। बिहार – माल पुआ, खीर और बूंदी माँ सरस्वती को अर्पित करते हैं। उत्तर प्रदेश – यहाँ भगवान कृष्ण को केसरिया चावल अर्पित करते हैं। पंजाब – यहाँ मीठे चावल, मक्के की रोटी, सरसों का साग खाया जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था।लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए लोग रतिमदन की पूजा और प्रार्थना हैं। देवी सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी को हुआ था; इसलिए उस दिन उनकी पूजा की जाती है, और इस दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है; इसलिए इस तिथि को 'श्री पंचमी' भी कहा जाता है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है और पूजा की जाती है। बसंत पंचमी पर, वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। ब्राह्मण शास्त्रों के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी देवताओं की प्रतिनिधि हैं। वह विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। इस दिन को देवी के रहस्योद्घाटन का दिन माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती का आह्वान कर कलश की स्थापना की जाती है और उसकी पूजा की जाती है।

बसंत पंचमी से ठंड की अनुभूति कम होने लगती है और मौसम में संतुलन बना रहता है। इसके साथ बसंत पंचमी पर्व के दिन पीले रंग का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। हिन्दू धर्म में इस रंग का महत्व बहुत अधिक है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस रंग को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस रंग को डिप्रेशन दूर करने में सबसे कारगर माना जाता है। साथ यह दिमाग को पूर्णतः सक्रिय रखने में मददगार साबित होता है। इस रंग से आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।

 विज्ञान के दृष्टि से देखें तो पीले रंग का बहुत महत्व है। पीला रंग उत्साह बढ़ाता है और दिमाग को सक्रिय रखता है। यह रंग मन को मजबूत करता है। ये रंग हमारे नर्वस सिस्टम पर असर डालता है, जिससे दिमाग में सेरोटोनिन हॉर्मोन निकलता है। इसके साथ ही साथ पीला रंग मानसिक तनाव  को भी दूर करता है. वही अगर फलों की बात करे तो पीले रंग की सब्जियां और फल कई बीमारियों से बचाने में भी मददगार होते हैं। कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां सरस्वती को समर्पित यह दिन बसंत मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। पौराणिक ग्रंथों में पीले रंग को समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक माना गया है।
माँ शारदे हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें। ।।जय माँ शारदे।।

प्रो. दिग्विजय कुमार शर्मा
शिक्षाविद, साहित्यकार
आगरा

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