अथ श्री सूर्य चालीसा
पं रामजस त्रिपाठी नारायण
दोहा-
सकल विश्व ब्रह्माण्ड पति, सूर्य देव भगवान।
कश्यप नंदन प्राण प्रिय, अदिति पुत्र प्रतिमान।।
दिनकर ज्योतिर्मान प्रभु, मैं बालक अनजान।
मन की बाधा मेटकर, दे दो अंतर्ज्ञान।।
चौपाई -
सूर्यदेव हे! पिता हमारे ।
भक्तों के तुम प्राण पियारे।।
तेरी ऊर्जा से सब संभव।
तुझसे ही जल थल नभ उद्भव।।
तुम से ही यह जगत हरा है ।
तुमसे ही यह जलधि भरा है ॥
तुमसे वाष्प बने सागर में ।
तुमसे घन बरसें नागर में ॥
ताप सदा तेरी सुखदाई।
दुख रोगों को देत भगाई।।
मध्य दिवस में प्रभु की महिमा।
सप्त रश्मियों की है गरिमा।।
जिससे हिम पिघले गिरिवर पर।
सुरसरि सरिता बहे धरा पर।।
जिससे जग हरियाली सुंदर ।
जिससे भाटा ज्वार समुंदर ॥
सूर्य देव हे! प्राण प्रदाता ।
बीज वनस्पति हरित विधाता।।
तुमसे ऋतुओं का परिवर्तन ।
तुमसे जग में हो अनुवर्तन ॥
तुम ही प्रभु प्रत्यक्ष देव हो।
ज्योत ज्योत्सना स्वयं एव हो।।
धरती का उद्धार तुम्ही से।
शत्रु मध्य में त्राण तुम्हीं से।।
गायत्री से तुमको ध्याऊं।
सप्त रश्मियों के गुण गाऊं।।
सप्त रश्मिया सप्त तार हैं।
सर्जन क्षमता निरंकार हैं।।
सप्तदीप नव खंड प्रणेता।
तुमसे हीं उपजें नचिकेता।।
जड़ चेतन के हो तुम स्वामी।
सप्त रश्मियों के अनुगामी।।
सुबह- सुबह जो तुम्हें निहारे ।
अपने कारज आप सँवारे॥
गीले बदन अर्घ्य जो देता।
सप्त रश्मि से शुभ को लेता।।
गायत्री जप मनस् भावना।
पूरण होती सकल कामना।।
तुम्हरे दर्शन से फल मिलता।
जगजीवन में सद्गुण खिलता।।
गाते वेद शास्त्र रवि महिमा।
सूर्य देव से जग की गरिमा।।
कृपा भानु की राज्य दिलाए।
ऋतु वसंत में पुष्प खिलाए।।
तुम प्रत्यक्ष देव जगती के।
हरते सकल शोक परती के।।
तुम अनंत ऊर्जा संवाहक।
रोगों के हित बनते दाहक।।
अग्नि तत्व तुमसे है स्वामी ।
प्रतिरोधक क्षमता अनुगामी ॥
सारे जग के रोग निवारक ।
तुम ही मूल आदि हो कारक ॥
तुम हो जग के भाग्य विधाता।
तिमिर विनाशक जग सुखदाता।।
ग्रह मंडल के केंद्र बसे तुम।
सबके उर्जा केंद्र बने तुम।।
लगा रहे ग्रह तेरा चक्कर।
जैसे गोपी रास अनंतर।।
आभा तेरी जगमग करती ।
मैल सभी जीवन का हरती।।
मैं हूँ कामी कुटिल कुगामी।
मन के रोग मिटाओ स्वामी ।।
स्वच्छ करो मन को हे देवा।
जगती की करवाओ सेवा।।
जो जन द्वादश नाम पुकारें।
जीवन के रण कभी न हारें ॥
मित्राय नमः सूर्याय नमः
प्रभु ।
रवये संग खगाय नमः प्रभु ॥
भास्कर आदित्याय नमः प्रभु ।
पूष्णे हे! अर्काय नमः प्रभु ।।
मरीचये हे दिवा दिवाकर ।
देव सवित्रे प्रभा प्रभाकर ॥
हिरण्यगर्भ हे! भानु गुसाई ।
कर कल्याण पिता की नाई ॥
जग का कर कल्याण विधाता।
करुणाकर हे!सब गुण दाता॥
मेरे मन को हर्षित कर दो ।
जगती के सारे गुण भर दो।।
निर्मल कर दो मेरा तन- मन।
खिल जाए मधुवन सम जीवन ॥
पतझड़ बीत वसंत सुहाए।
सुखद रश्मि से आत्म नहाए।।
जीवन में तव होय बसेरा।
सात्विकता का होय सबेरा ।।
दोहा -
विनय कर रहा राम जस, छूटे जग परिमाण।
आया प्रभु तेरी शरण, करिए मम कल्याण।।