उत्तर प्रदेशलखनऊ

भारतीय अर्थव्यवस्था की नई उड़ान

राकेश कुमार मिश्र

लखनऊ। विद्यांत हिंदू पीजी कालेज में अर्थशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक राकेश कुमार मिश्र ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष 2025-26 में नई ऊचाइयों को छू रही है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था की जीडीपी में वृद्धि के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे काफी उत्साहप्रद हैं और भविष्य की बेहतरीन सकारात्मक दिशा की ओर संकेत देते हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही थी जो दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत अंकित की गई। जी डी पी में होने वाली इस वृद्धि ने रिजर्व बैंक आफ इंडिया सहित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसियों के भारतीय अर्थव्यवस्था की जी डी पी वृद्धि के अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। मूडी, क्रिसिल जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 2025-26 में 6.2 से 6.3 प्रतिशत जी डी पी वृद्धि का अनुमान लगाया था। प्रथम दो तिमाही के रूझान आने के बाद इन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने अपने अनुमानों में संशोधन करके भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी वृद्धि दर वर्ष 2025-26 में 7.0 प्रतिशत या अधिक रहने की भविष्यवाणी की है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया का तो यह मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान वित्तीय वर्ष में 7.5 प्रतिशत या उससे अधिक की जीडीपी वृद्धि दर्ज कर सकती है। वर्तमान समय में विश्व में बढ़ते तनाव और बदलती भू राजनीतिक परिस्थितियों के साथ साथ उभरती अनिश्चितताओं के बीच यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है और भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी मजबूती का भी संकेत है।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने पहली तिमाही में जब 7.8 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की तो इस अप्रत्याशित वृद्धि को अधिकांश आर्थिक विशेषज्ञों एवं क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने अधिक गम्भीरता से नहीं लिया और अधिकांश का यह मानना था कि यह जीडीपी वृद्धि किन्हीं अस्थाई या सामयिक कारणों का परिणाम हो सकती है। यही कारण था कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि के अनुमानों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया और 6.3 से 6.5 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि पर ही जोर देते रहे। दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर ने इन विशेषज्ञों एवं एजेंसियों को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि उनकी सोच भारतीय अर्थव्यवस्था के विषय में गलत थी और अर्थव्यवस्था में होने वाली उच्च वृद्धि दर किसी सामयिक अस्थाई कारणों का नतीजा नहीं थी वरन अनेकों सुधारात्मक कदमों के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों और मजबूती का परिणाम थी। वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में हासिल 8.0 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप और देश में नेता विपक्ष राहुल गांधी को भी एक करारा तमाचा है जिन्होंने कुछ समय पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत अर्थव्यवस्था कहने में भी संकोच नहीं किया था। भारतीय अर्थव्यवस्था की दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस अवधि में आई है जब भारतीय निर्यातों पर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर एक नई चुनौती खड़ी कर दी थी। यह इस बात का संकेत है कि भारत आंतरिक तौर पर इतना सशक्त है कि वह किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम है और ऐसी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए उसके पास अनेकों विकल्प होने के साथ साथ देश की 140 करोड़ आबादी का भी भरपूर सहयोग है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है जो 2024-25 की दूसरी तिमाही ( जुलाई – सितम्बर) में 5.6 प्रतिशत थी। तबसे निरन्तर इसमें वृद्धि दर्ज की गई है। 2024-25 की तीसरी और चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि क्रमशः 6.4 और 7.4 रही थी। 2025-26 की पहली दो तिमाहियों में यह बढ़कर 7.8 और 8.2 प्रतिशत पर पहुंच गई। स्पष्ट है कि यह सतत वृद्धि विकासोन्मुख नीतियों एवं और अर्थव्यवस्था में सुधारों के लिए उठाए कदमों का नतीजा है। अधोसंरचना के विकास पर विशेष बल एवं भरपूर निवेश, सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि, प्रत्यक्ष कर ढांचे में महत्वपूर्ण सुधार, जी एस टी लागू करके अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में व्यापक सुधार ,बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिए उठाए गए कदमों और मंहगाई दर पर नियंत्रण जैसे प्रयासों का ही लाभ आज भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊँची वृद्धि दर एवं विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में हमारे सामने आया है। दूसरी तिमाही में प्राप्त 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर में मेन्युफेक्चरिंग क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है जिसकी वृद्धि दर 9.1प्रतिशत रही। 2024-25 की दूसरी तिमाही में मेन्युफेक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत थी। निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 2025-26 की दूसरी तिमाही में 7.2 प्रतिशत रही जो 2024-25 की समान अवधि में 8.4 थी। इसी तरह सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर भी 9.2 प्रतिशत रही है जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 7.4 प्रतिशत थी। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर भी 3.5 प्रतिशत दर्ज की गई, यद्यपि यह 2024-25 की दूसरी तिमाही के 4.1 प्रतिशत से कुछ कम है। इसी तरह विद्युत क्षेत्र में 4.4 की वृद्धि इस वर्ष की दूसरी तिमाही में रही जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 3.0 प्रतिशत थी। 2025-26 की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की 8.2 वृद्धि दर रहने में सबसे बड़ा उत्तरदायी कारण निजी उपभोग व्यय में महत्वपूर्ण निरन्तर वृद्धि है। आयकर में व्यापक छूट एवं आयकर की नई कर प्रणाली ने सामान्य लोगों की व्यय योग्य आय में काफी वृद्धि की है क्योंकि उन पर कर भार में महत्वपूर्ण कमी आई है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के फलस्वरूप भी लोगों की क्रयशक्ति में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री श्री धर्मकीर्ति जोशी ने भी इस बात पर जोर दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आई इस उछाल का मुख्य संचालक निजी उपभोग मांग में निरन्तर वृद्धि है। पूर्ति पक्ष की तरफ से मैन्युफैक्चरिंग, निर्माण और सेवा क्षेत्र ने इसमें महती भूमिका अदा की है।
यदि वित्तीय वर्ष 2025-26 की आने वाली छमाही में वृद्धि दर के विषय में बात की जाय, तो यह कहा जा सकता है कि आने वाली दो तिमाहियों में भी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ऊँची ही रहने की उम्मीद है।इस उम्मीद के पीछे महत्वपूर्ण तार्किक कारण हैं। 22 सितम्बर 2025 से जीएसटी में की गई व्यापक कटौती एवं राहत के कारण अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त मांग उत्पन्न होने से इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी झलक त्यौहार के मौसम में सामान्य एवं मध्यम आय वर्ग के उपभोक्ताओं द्वारा भारी खरीद के रूप में दिखाई पड़ी है।जीएसटी की दरों में सुधार एवं व्यापक कटौती के द्वारा लोगों को दी गई राहत का मांग पर सकारात्मक असर आगे भविष्य में भी दिखाई देगा। यह अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ऊँची बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा। हमें यह भी याद रखना होगा कि मंहगाई दर में निरन्तर कमी भी भविष्य में वृद्धि दर पर सकारात्मक असर डालेगा। पिछले दो महीने अक्टूबर और नवंबर में खुदरा एवं थोक मंहगाई दर काफी नीची रही है। खुदरा मंहगाई दर अक्टूबर में लगभग 1.5 प्रतिशत एवं नवंबर में 0.26 प्रतिशत ही रही। स्वाभाविक है कि इससे लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी है और सकल उपभोग मांग में भी वृद्धि हुई है। अभी दिसम्बर में रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने रेपो रेट में 0,25 अंकों की कटौती की है। मंहगाई दर पर नियंत्रण के कारण ही ऐसा सम्भव हुआ है इससे एक तरफ जहां ऋण सस्ता होगा एवं निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ जनता को ई एम आई में कमी आने से भी राहत मिलेगी और उसकी क्रयशक्ति बढ़ेगी। अभी कुछ दिनों पहले ही सरकार ने चार श्रम संहिताएं लागू की हैं जिनकी मांग लम्बे समय से की जा रही थी। यह श्रम संहिताएं श्रमिकों के वेतन, कार्य दशाएं, सामाजिक सुरक्षा एवं औद्योगिक विवाद के विषयों से सम्बन्धित हैं। इनका भी सकारात्मक असर निकट भविष्य में औद्योगिक क्षेत्र पर देखने को मिलेगा। यह सभी कारण भविष्य में भी भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊँची वृद्धि दर बनाए रखने में मददगार ही नहीं होंगे वरन महती भूमिका अदा करेंगे।
भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने उम्मीद जताई है कि 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.0 प्रतिशत या अधिक की दर से ही वृद्धि करेगी और 4 ट्रिलियन डॉलर की सीमा पार कर जाएगी। ऐसा ही अनुमान क्रिसिल ने भी व्यक्त किया है। उनका मत है कि दूसरी छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था को अमेरिकी टैरिफ के कारण होने वाली निर्यातों में कमी की चुनौती का सामना अधिक करना होगा अतः वृद्धि दर पर उसका कुछ नकारात्मक असर दिख सकता है। यद्यपि स्टेट बैंक आफ इंडिया एवं रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था की 2025-26 की वृद्धि दर 7.5 या 7.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई है। इनका मानना है कि अमेरिकी टैरिफ की चुनौती की भरपाई जीएसटी में व्यापक सुधार और वैकल्पिक व्यवस्था के द्वारा की जा सकती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कि आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने 6.3से6.8 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान रखा था। पिछली दो तिमाही के नतीजे और भविष्य के संकेत यह विश्वास दिलाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बजटीय अनुमानों से बहुत बेहतर प्रदर्शन करने की दिशा में अग्रसर है।

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