
‘आम आदमी पार्टी’ महज 10 साल के भीतर एक नेशनल पार्टी बनी और अब 13 साल के अंदर वो देश की राजधानी दिल्ली से ही हार गई, जहां से उसे सत्ता पाने का मौका मिला था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार उतनी हैरान करने वाली नहीं है जितनी कि अरविंद केजरीवाल की हार। लेकिन आखिर आम आदमी पार्टी, और खास तौर पर आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल, उनके खासमखास मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और तमाम ऐसे कई नेता, जो कि पार्टी में मजबूत हैसियत रखते थे हार गए?
साल 2025 में हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में भले ही बहुत से लोग इसे अरविंद केजरीवाल की कई कमजोरियों को लेकर उनकी हार की वजह बताकर कोस रहे हों, लेकिन इस हार की अंदरूनी वजहें कुछ और ही हैं। मेरा मानना है कि अरविंद केजरीवाल को निपटाने में शीश महल और शराब घोटाला और नीली वेगनआर को प्रमुख वज़ह माना जा रहा है। उनके तमाम वायदे जुमले साबित हुए। मुफ़्त वाला जुमला भी इस बार भाजपा की आक्रामक रणनीति के सामने टिक नहीं पाया। रही सही कसर कांग्रेस ने पूरी कर दी।
दरअसल कांग्रेस का मानना है कि पार्टी का भविष्य सुरक्षित करने के लिए आम आदमी पार्टी का खात्मा जरूरी है। क्योंकि गोवा, हिमाचल, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में जिस प्रकार से आप का आचरण रहा है उससे कहीं ना कहीं कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है। इसलिए माना जा रहा है कि कांग्रेस ने उसी का बदला केजरीवाल से दिल्ली के विधानसभा चुनाव में लिया है। कांग्रेस का मानना है कि 2030 के चुनाव में कांग्रेस का भाजपा से सीधा मुकाबला होगा जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। इसीलिए लिख रहा हूं कि यह संकल्प सिर्फ भाजपा का ही नहीं था, बल्कि कांग्रेस का भी था।