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‘अखंड और विकसित भारत’ का सपना साकार हेतु तथागत महात्म्य गौतम बुद्ध के पथ (धम्म) का अनुकरण और अनुसरण द्वारा ही संभव

डॉ. प्रमोद कुमार

भारतवर्ष प्राचीनतम समय में विश्वगुरू के रूप में सुप्रसिद्ध विश्वविख्यात राष्ट्र व देश रहा है। तत्कालीन समय में सम्पूर्ण भारत बौद्ध धम्म के प्रभाव से ओतप्रोत था और भारत की समृद्ध, सशक्त, अखंड और विकसित पताका सम्पूर्ण विश्व में लहरा रही थी। जब सम्पूर्ण भारत बौद्ध धम्म का अनुसरण कर रहा था तब भारत राष्ट्र एक कल्याणकारी व विश्वगुरू के रूप में विख्यात रहा था। बौद्ध संस्कृति और सभ्यता विश्व में स-ह्रदय अपनाई जाने वाली रही है। बौद्ध दर्शन कोई धर्म या ईश्वरी शक्ति का प्रदर्शन नही है बल्कि यह एक मानवकल्याणकारी, परोपकारी और जनहितकारी जीवन पद्धति और जीवन जीने की शैली है।

भारत एक प्राचीन, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और नैतिक परंपराओं से समृद्ध राष्ट्र है। किंतु वर्तमान समय में ‘अखंड और विकसित भारत’ की परिकल्पना अनेक प्रकार की सामाजिक, धार्मिक, जातिगत, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से घिरी हुई है। इस संदर्भ में यह प्रश्न अत्यंत प्रासंगिक है कि हम इस महान उद्देश्य की पूर्ति कैसे कर सकते हैं। इसका उत्तर भारत के ही एक महान तत्त्वज्ञानी, करुणा और अहिंसा के अवतार – महात्मा गौतम बुद्ध के धम्म में निहित है। यदि भारत को अखंड और विकसित राष्ट्र के रूप में सशक्त करना है तो समस्त राष्ट्र को बुद्ध के धम्म का अनुकरण और अनुसरण करना होगा।

1. भारत की समसामयिक स्थिति: विखंडन और विकास का द्वंद्व

आज का भारत भौगोलिक रूप से एकसंध दिखने के बावजूद आंतरिक रूप से अनेक विभाजनों से जूझ रहा है। जातिवाद, सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, आर्थिक असमानता, भाषाई विभाजन, क्षेत्रीयता और भ्रष्टाचार देश की सामाजिक-सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर रहे हैं। दूसरी ओर, आर्थिक और तकनीकी विकास की दौड़ में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है, किंतु यह विकास एकांगी और असमान बना हुआ है। राष्ट्र के समग्र और समन्वित विकास के लिए आवश्यक है कि वह आध्यात्मिक और नैतिक आधार पर एकजुट हो।

2. महात्मा बुद्ध का धम्म: संक्षिप्त परिचय

गौतम बुद्ध का धम्म कोई संकीर्ण धार्मिक प्रणाली नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक नैतिक और बौद्धिक जीवन पद्धति है। इसमें करुणा, अहिंसा, सम्यक दृष्टि, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि का समावेश है। यह जीवन को यथार्थ रूप में देखने, समझने और सुधारने की प्रक्रिया है। यह व्यक्ति को स्वयं के भीतर झाँकने और समाज के प्रति उत्तरदायी बनाने की प्रेरणा देता है।

3. अखंड भारत: भौगोलिक नहीं, भावनात्मक एकता का प्रतीक

‘अखंड भारत’ का अर्थ केवल विभाजन से पूर्व के भौगोलिक क्षेत्र को पुनर्स्थापित करना नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और नैतिक एकता की संकल्पना है। जब तक भारत का प्रत्येक नागरिक जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्रीय पहचान से ऊपर उठकर मानवतावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाता, तब तक भारत ‘अखंड’ नहीं हो सकता। बुद्ध का धम्म ऐसे ही मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित है, जो मनुष्य को मनुष्य के रूप में स्वीकार करता है, न कि जाति या संप्रदाय के रूप में।

4. विकसित भारत: समावेशी, न्यायपूर्ण और नैतिक विकास की अवधारणा

विकसित भारत केवल GDP की वृद्धि या डिजिटल प्रगति से परिभाषित नहीं किया जा सकता। एक सच्चा विकसित भारत वह होगा जिसमें:

हर व्यक्ति को समान अवसर मिले,

सामाजिक और आर्थिक न्याय हो,

शिक्षा और स्वास्थ्य की समता हो,

स्त्री-पुरुष में समानता हो,

नैतिकता और सत्य का वर्चस्व हो।

बुद्ध के धम्म में इन सभी मूल्यों का समावेश है। धम्म हमें आत्मानुशासन, संयम, करुणा और श्रम के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यही एक विकसित राष्ट्र की आधारशिला है।

5. गौतम बुद्ध के विचारों से राष्ट्रनिर्माण के आयाम

(क) जातिविहीन समाज की स्थापना

बुद्ध ने जातिवाद को सामाजिक शोषण का मूल माना और उसकी घोर निंदा की। उन्होंने कहा, “न जात्या ब्राह्मणो होति, न जात्या होति अंबडो।” अर्थात, कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता, उसके कर्म ही उसका मूल्य निर्धारण करते हैं। यदि भारत को अखंड और विकसित बनाना है तो यह जातिगत भेदभाव जड़ से समाप्त करना होगा। बुद्ध का यह दृष्टिकोण एक समरस और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है।

(ख) स्त्री सशक्तिकरण और समानता

बुद्ध ने नारी को समाज में उच्च स्थान दिया और उन्हें भिक्षुणी संघ में प्रवेश दिलाया। यह उस समय की क्रांतिकारी पहल थी जब स्त्रियों को धार्मिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित रखा जाता था। एक समृद्ध और विकसित भारत के लिए स्त्री सशक्तिकरण अनिवार्य है, और इसके लिए बुद्ध का मार्गदर्शन अत्यंत उपयोगी है।

(ग) करुणा और अहिंसा आधारित सामाजिक व्यवस्था

बुद्ध का धम्म करुणा (करुणा), मैत्री (मैत्री), मुदिता (सहर्षा) और उपेक्षा (तटस्थता) पर आधारित है। यह मूल्य व्यक्ति और समाज को अहिंसा, सहिष्णुता और सहयोग की दिशा में प्रेरित करते हैं। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश के लिए यह दृष्टिकोण अत्यंत आवश्यक है।

6. भारतीय संविधान और बुद्ध के सिद्धांतों की समानता

भारत के संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व और न्याय—ये सभी मूल्य बुद्ध के धम्म से प्रेरित प्रतीत होते हैं। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने संविधान का निर्माण किया, स्वयं एक बौद्ध थे और उन्होंने यह स्वीकार किया कि बुद्ध का धम्म ही भारत को एक लोकतांत्रिक और सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण राष्ट्र बना सकता है।

7. धम्म के सामाजिक-आर्थिक लाभ

धम्म न केवल नैतिकता सिखाता है, बल्कि व्यक्ति को श्रम, उद्यम और आत्मनिर्भरता का पाठ भी पढ़ाता है। यह आलस्य और परजीविता से मुक्ति दिलाता है। जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति धम्म के अनुरूप जीवन जीने लगता है तो पूरा समाज आत्मनिर्भर, अनुशासित और संगठित बनता है। ऐसे समाज में सामाजिक अपराध, भ्रष्टाचार, अत्याचार, नशाखोरी, लैंगिक भेदभाव जैसे तत्व स्वतः समाप्त होने लगते हैं।

8. शिक्षा के क्षेत्र में धम्म की भूमिका

बुद्ध ने जीवन को समझने और सुधारने के लिए शिक्षा को अत्यंत आवश्यक माना। उन्होंने ‘अप्प दीपो भव’ (स्वयं दीपक बनो) का संदेश दिया। भारत में यदि धम्म आधारित शिक्षा प्रणाली को अपनाया जाए जिसमें नैतिकता, करुणा, सम्यक दृष्टि और विवेक को प्राथमिकता मिले, तो आज की शिक्षा प्रणाली में जो नैतिक शून्यता है वह दूर हो सकेगी। इससे भारत के युवा न केवल नौकरी पाने वाले नागरिक बनेंगे, बल्कि राष्ट्रनिर्माता भी बनेंगे।

9. पर्यावरण संरक्षण और धम्म

बुद्ध का धम्म केवल मानव केंद्रित नहीं है, बल्कि यह समस्त जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और प्रकृति के प्रति करुणा और सहअस्तित्व की भावना रखता है। आज जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, धम्म की यह दृष्टि भारत को एक पर्यावरणीय रूप से संतुलित और टिकाऊ विकास की दिशा में ले जा सकती है।

10. राजनीतिक दृष्टिकोण से धम्म की प्रासंगिकता

राजनीति यदि बुद्ध के धम्म से संचालित हो तो उसमें लोभ, सत्ता की लिप्सा और हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होगा। धम्म आधारित राजनीति का केंद्र नैतिकता, जनसेवा, सहिष्णुता और पारदर्शिता होता है। इससे राजनीति में भ्रष्टाचार, जातिवाद और अपराधीकरण समाप्त होंगे। भारत को ऐसे ही राजनीतिक दर्शन की आवश्यकता है।

11. राष्ट्रीय एकता और धम्म

धम्म व्यक्ति को अपनी पहचान से ऊपर उठकर मानवता से जोड़ता है। वह ‘मैं’ और ‘तू’ के द्वैत को समाप्त कर समता, मैत्री और करुणा की भावना विकसित करता है। यही भावना राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्रीयता और एकता की चेतना जागृत करती है। भारत यदि धम्म मार्ग पर चले तो देश में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और आर्थिक न्याय स्वतः स्थापित हो सकते हैं।

‘अखंड और विकसित भारत’ का सपना तभी साकार हो सकता है जब राष्ट्र बुद्ध के धम्म का अनुकरण और अनुसरण करे। बुद्ध का धम्म कोई कालातीत विचार नहीं, बल्कि आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 2500 वर्ष पूर्व था। यह न केवल आत्मिक शांति का मार्ग है, बल्कि राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और आर्थिक न्याय का भी आधार है। भारत को केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी विकसित बनाना है, और इसके लिए बुद्ध का मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। यही मार्ग भारत को अखंडता और समृद्धि की ओर ले जा सकता है। एक भारत- श्रेष्ठ भारत, सशक्त भारत- अखंड भारत और विकसित भारत- समृद्ध भारत बनाने हेतु हम सभी भारतवासियों को तथागत महात्म्य गौतम बौद्ध के विचारों और उनके बताए हुए मार्ग (धम्म) का अनुकरण और अनुसरण के द्वारा ही सपना साकार संभव है। जब भारत में सभी भारतवासी बौद्ध के विचारों को आत्मसात और उनके धम्म के पथ का अनुकरण और अनुसरण करेंगे तभी भारत एक अखंड, विकसित, समृद्ध और विश्वगुरू राष्ट्र के रूप में पुनःस्थापित होगा।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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