
लखनऊ। वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. विक्रम राव अब हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका लेखन और कृतित्व सदैव प्रेरणा देता रहेगा। देश में ऐसे अनेक पत्रकार हुए है,जो अपने कृतित्व से एक संस्था के रूप में प्रतिष्ठित हुए। के विक्रम राव भी पत्रकारों की उसी श्रेणी में शामिल है। वह मूलतः तेलुगु भाषी थे। अंग्रेजी अखबार के पत्रकार रहे। लेकिन हिंदी के भी विद्वान थे। पत्रकारिता में उन्होंने शब्द चयन और शैली पर विशेष ध्यान दिया। यह उनकी पहचान से जुड़ गया। युवा पत्रकारों को भी वह अच्छे लेखन की प्रेरणा देते थे। उनका मार्गदर्शन करते थे। एक समय के बाद भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति उनका रुझान हुआ। इस क्षेत्र में भी उनका अध्याय व्यापक था। उन्होंने ग्यारह पुस्तकों का लेखन भी किया। आईपीएस में चयनित होने के बावजूद उन्होंने पत्रकारिता को अपना कैरियर बनाया। समाज सेवा और सामाजिक कार्यों से भी वह सदैव जुड़े रहे।
आपातकाल के दौरान बड़ौदा डायनामाइट केस में जॉर्ज फर्नांडिस के साथ अभियुक्त बनाए गए थे। वह दशकों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहे। उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज को मजबूती से उठाया और निडर लेखनी के लिए पहचाने जाते थे। उनका जीवन सिद्धांतवादी पत्रकारिता, संघर्षशील विचारों और सामाजिक न्याय के पक्ष में निर्भीक लेखन का प्रतीक रहा। निधन से कुछ घंटे पहले भी उन्होंने एक लेख लिखा था और एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी।
उनको अपने पिता के रामाराव से संघर्ष, प्रभावी पत्रकारिता और श्रेष्ठ लेखन विरासत में मिला था। इस विरासत को उन्होंने गरिमा के साथ आगे बढ़ाया।