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महर्षि पतंजलि एवं उनके योगसूत्रों की आधुनिक युग में उपयोगिता व वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता

डॉ प्रमोद कुमार

भारत की प्राचीनतम दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है योग। योग केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं बल्कि आत्मा, मन और शरीर की समग्र साधना है। इस गहन और व्यापक पद्धति को एक व्यवस्थित स्वरूप देने का श्रेय जाता है महान ऋषि महर्षि पतंजलि को। उन्होंने अपने कालजयी ग्रंथ “योगसूत्र” के माध्यम से योग को वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं व्यवहारिक आधार प्रदान किया। भारत की आध्यात्मिक परंपरा में योग का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह केवल शारीरिक क्रिया न होकर एक गहन आध्यात्मिक और मानसिक अनुशासन है। इस योग को शास्त्रीय स्वरूप प्रदान करने वाले महान ऋषि थे — महर्षि पतंजलि, जिन्हें ‘योग के जनक’ (Father of Yoga) के रूप में जाना जाता है। उन्होंने ‘योगसूत्र’ नामक ग्रंथ के माध्यम से योग को एक व्यवस्थित, वैज्ञानिक और दार्शनिक प्रणाली के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया।
आज, जब आधुनिक विश्व मानसिक तनाव, सामाजिक असंतुलन, शारीरिक बीमारियों और आध्यात्मिक शून्यता से ग्रस्त है, तब महर्षि पतंजलि के योगसूत्र अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध हो रहे हैं। इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि महर्षि पतंजलि के योगसूत्रों का वर्तमान युग में क्या योगदान है और वे क्यों आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने प्राचीन भारत में थे।

महर्षि पतंजलि का परिचय:

महर्षि पतंजलि का जीवनकाल लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। वे बहुप्रतिभाशाली ऋषि थे जिन्होंने योग, आयुर्वेद और संस्कृत व्याकरण — इन तीनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक महान दार्शनिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ “योगसूत्र” है, जो योगदर्शन का मूल आधार माना जाता है। महर्षि पतंजलि एक बहुप्रतिभाशाली विद्वान थे जिन्होंने संस्कृत व्याकरण, आयुर्वेद, और योग — इन तीनों विषयों में अमूल्य योगदान दिया। उनके प्रमुख ग्रंथ:
योगसूत्र — योगदर्शन का मूल ग्रंथ
महाभाष्य — पाणिनि के अष्टाध्यायी पर भाष्य (संस्कृत व्याकरण)
पतंजलि संहिता (कथित) — आयुर्वेद पर

योगसूत्र: संरचना और दर्शन

योगसूत्र योगदर्शन का मूल ग्रंथ है। महर्षि पतंजलि द्वारा रचित ‘योगसूत्र’ योगदर्शन का आधारभूत ग्रंथ है। इसमें कुल 195 सूत्र हैं जिन्हें चार पादों (अध्यायों) में विभाजित किया गया है। योगसूत्र चार पादों (अध्यायों) में विभाजित है:

समाधि पाद — योग के स्वरूप, उद्देश्य और मानसिक नियंत्रण की प्रक्रिया पर केंद्रित। चित्त की वृत्तियों का निरोध और समाधि की व्याख्या। प्रमुख सूत्र: “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” – योग का अर्थ है चित्त की वृत्तियों का निरोध।
साधन पाद — योगाभ्यास की विधियाँ और अष्टांग योग का वर्णन। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार की विवेचना।
विभूति पाद — उच्च अवस्था के योगाभ्यास जैसे धारणा, ध्यान और समाधि पर चर्चा। इनसे प्राप्त होने वाली सिद्धियाँ (विभूतियाँ) बताई गई हैं। ध्यान, धारणा, समाधि और उनसे प्राप्त विभूतियों का वर्णन।
कैवल्य पाद — आत्मा की स्वतंत्रता और मोक्ष की अंतिम अवस्था को व्याख्यायित करता है। आत्मज्ञान और मोक्ष की अंतिम स्थिति।

अष्टांग योग: योगसूत्र की मुख्य धारा

पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया जिसे अष्टांग योग कहा जाता है। क्रम अंग वर्णन:
यम: सामाजिक अनुशासन (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह)
नियम: आत्म-अनुशासन (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान)
आसन: स्थिर और सुखद शारीरिक स्थिति
प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण
प्रत्याहार: इंद्रियों का संयम
धारणा: मन को एक बिंदु पर स्थिर करना
ध्यान: एकाग्र चित्त की निरंतरता
समाधि: आत्मा का ब्रह्म से एकाकार हो जाना
अतः महर्षि पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया जिसे अष्टांग योग कहते हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ये सभी अंग आज भी मानव जीवन को संतुलित, स्वस्थ और आत्मिक रूप से समृद्ध बनाने में सहायक हैं।

पतंजलि के योग का लक्ष्य:

पतंजलि के अनुसार योग का अंतिम लक्ष्य है कैवल्य — आत्मा की पूर्ण स्वतंत्रता। योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि आत्मा को माया और अविद्या के बंधनों से मुक्त कर ब्रह्म के साथ एकात्म करना है।

योगदर्शन के प्रमुख सिद्धांत:

चित्तवृत्तियों का निरोध — चित्त में उत्पन्न होने वाले संकल्प, विकल्प, स्मृति, निद्रा आदि वृत्तियों को नियंत्रित करना।
क्लेश और कर्म सिद्धांत — अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश (क्लेश) और उनके कारण होने वाले कर्मफल का वर्णन।
ईश्वर का विचार — पतंजलि योग में ईश्वर की स्वीकृति है, जिसे “पुरुष विशेष” कहा गया है, जो सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और शुद्ध है।
ज्ञान, ध्यान और मोक्ष — ज्ञान और ध्यान के द्वारा आत्मा के स्वभाव को जानकर मोक्ष प्राप्त करना ही योग का अंतिम उद्देश्य है।

वर्तमान युग की चुनौतियाँ:

मानसिक तनाव और चिंता: शारीरिक अस्वस्थता और जीवनशैली रोग
आध्यात्मिक शून्यता और उद्देश्यहीनता: समाज में नैतिक गिरावट और आत्मसंयम की कमी
इन सभी समस्याओं का समाधान योग और विशेषकर पतंजलि के योगसूत्रों में निहित है।

महर्षि पतंजलि के योगसूत्रों की प्रासंगिकता:

मानसिक स्वास्थ्य में योगदान: ध्यान और प्राणायाम से मस्तिष्क को शांति मिलती है।चित्तवृत्तियों का निरोध मानसिक स्थिरता लाता है। अवसाद, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारियों से मुक्ति मिलती है।
शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान: योगासनों और प्राणायाम से शरीर का रक्त संचार, पाचन, श्वसन और स्नायु प्रणाली सशक्त होती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आधुनिक जीवनशैली रोग जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि पर नियंत्रण होता है।
नैतिक और सामाजिक अनुशासन: यम और नियम का पालन कर व्यक्ति सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह जैसे मूल्यों को अपनाता है। समाज में नैतिकता, संयम और सहयोग की भावना बढ़ती है।
आत्मविकास और आध्यात्मिक उन्नति: ध्यान और समाधि के माध्यम से आत्मा और ब्रह्म का साक्षात्कार संभव होता है। व्यक्ति अपनी चेतना के उच्च स्तर तक पहुंच सकता है।

योगसूत्रों का वैश्विक प्रभाव:

आज दुनिया के लगभग सभी देशों में योग का प्रचार-प्रसार हो रहा है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) की घोषणा ने योग को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाई।
पतंजलि के योगसूत्रों पर आधारित शिक्षण पद्धतियाँ आज अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में प्रचलित हैं। विश्वविद्यालयों और चिकित्सा संस्थानों में योग और ध्यान पर शोध हो रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा और काउंसलिंग में उपयोग: स्कूलों में छात्रों को ध्यान, प्राणायाम और नैतिक शिक्षाओं द्वारा मानसिक संतुलन सिखाया जा रहा है। चिकित्सक योग को एक सहायक चिकित्सा पद्धति के रूप में अपना रहे हैं।

आधुनिक युग में पतंजलि योग का प्रभाव

महर्षि पतंजलि के योगसूत्र आज भी विश्वभर के योग अभ्यासियों, साधकों और वैज्ञानिकों के लिए मूल ग्रंथ हैं। आधुनिक योग गुरुओं जैसे: स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, महर्षि महेश योगी, योग गुरु बाबा रामदेव
इत्यादि योगगुरुओ ने पतंजलि के योगदर्शन को विश्वमंच पर स्थापित करने का कार्य किया।

महर्षि पतंजलि की विरासत
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: योग को केवल आस्था नहीं, एक अनुशासित मनोवैज्ञानिक अभ्यास के रूप में प्रस्तुत किया।
संपूर्ण जीवन शैली: अष्टांग योग केवल साधना नहीं, बल्कि जीवन की समग्र पद्धति है।
विश्व को योगदान: योगसूत्र ने भारत को विश्वगुरु बनने में एक दार्शनिक आधार दिया।

महर्षि पतंजलि द्वारा प्रणीत योगसूत्र न केवल प्राचीन भारतीय दर्शन की एक अमूल्य धरोहर हैं, बल्कि वर्तमान युग में भी यह मानवता के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहे हैं। 21वीं सदी की भागदौड़ भरी, तनावयुक्त और भौतिकतावादी जीवनशैली में योगसूत्रों की प्रासंगिकता अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। महर्षि पतंजलि का योगदर्शन शरीर, मन और आत्मा के समन्वय द्वारा संपूर्ण कल्याण की अवधारणा प्रस्तुत करता है। ‘चित्तवृत्ति निरोधः’ के सिद्धांत पर आधारित योग, मानसिक शांति, आत्म-नियंत्रण और संतुलन की प्राप्ति का साधन बनता है। आज के युग में जहाँ मानसिक विक्षोभ, चिंता, अवसाद, और जीवन की दिशा को लेकर भ्रम फैला हुआ है, पतंजलि के योगसूत्र एक चिरंतन और वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पतंजलि के योगसूत्र ‘अष्टांग योग’ — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि — के माध्यम से एक संतुलित और स्वस्थ जीवन शैली का मार्ग सुझाते हैं। वैश्विक महामारी, शारीरिक दुर्बलता और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि योग ही शारीरिक और मानसिक प्रतिरोधक क्षमता का प्राकृतिक उपाय है।

इतना ही नहीं, योगसूत्रों में निहित नैतिकता (यम-नियम) आज की सामाजिक अव्यवस्थाओं, हिंसा, स्वार्थ और असहिष्णुता से जूझती दुनिया के लिए सांस्कृतिक और नैतिक पुनर्जागरण का आधार बन सकते हैं। महर्षि पतंजलि भारतीय संस्कृति के उन ऋषियों में से हैं जिन्होंने आत्मा और ब्रह्म के बीच की दूरी को पाटने का मार्ग दिखाया। योगसूत्र उनके अद्भुत ज्ञान, अनुशासन और साधना का परिणाम है। आज जब पूरा विश्व योग को अपनाकर मानसिक, शारीरिक और आत्मिक संतुलन की ओर बढ़ रहा है, तब महर्षि पतंजलि का योगदान और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। योग केवल कसरत नहीं, चेतना की यात्रा है और पतंजलि इसके महान मार्गदर्शक। अतः निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि महर्षि पतंजलि के योगसूत्र आज भी सार्वकालिक, सार्वभौमिक और वैज्ञानिक हैं। यह केवल भारतीय संस्कृति की धरोहर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक उत्थान का यथार्थ पथ हैं। वर्तमान युग की जटिलताओं में पतंजलि के योगदर्शन को अपनाना आत्मविकास और विश्वशांति की ओर एक ठोस कदम है।


डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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