
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100वें वर्ष के अवसर पर विज्ञान भवन, दिल्ली में तीन दिवसीय व्याख्यान माला एवं जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम का आयोजन 26 अगस्त से 28 अगस्त की तिथियों में किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख एवं सर संघ चालक माननीय मोहन भागवत जी ने किया। श्री मोहन भागवत जी ने कार्यक्रम के तीसरे दिन जिज्ञासा समाधान सत्र में मीडिया, पत्रकार बन्धुओं एवं कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रबुद्ध जनों और गणमान्य व्यक्तियों के सवालों का जवाब देकर उनकी जिज्ञासाओं को सुलझाने और संशयों को दूर करने का प्रयास किया। मेरा प्रयास होगा कि विभिन्न मुद्दों पर पूछे गए सवालों के संघ प्रमुख द्वारा दिए गए जवाबों से आप सभी को अवगत कराया जाए जिससे आप भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच और दृष्टिकोण को समझ सकें।
विभिन्न जिज्ञासु लोगों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि संघ और भाजपा के बीच कैसा सम्बन्ध है और क्या संघ ही भाजपा को चलाता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि दोनों संगठन विचारधारा के मामले में बहुत निकट हैं और एक दूसरे का सम्मान करते हैं। दोनों के अपने अलग अलग कार्यक्षेत्र हैं और दोनों की अपनी विशेषताएं हैं। हम शाखा लगाने में कुशल हैं तो राजनीतिक दल के नाते वे चुनाव लड़ने और सरकार चलाने में निपुण हैं। हम एक दूसरे को सलाह तो देते हैं परन्तु यह कहना गलत है कि संघ भाजपा को चलाता है। संघ और भाजपा में मतभेद एवं अनबन के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन कोई मनभेद या लड़ाई नहीं है। यह ज़रूरी तो नहीं हैं कि हम हर समय और हर मुद्दे पर एक ही पेज पर हों। उन्होंने खुद सवाल करते हुए पूछा कि यदि संघ भाजपा के सभी निर्णय लेती होती तो क्या अध्यक्ष के चुनाव में इतनी देर होती?
सरकार के साथ समन्वय के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा सभी केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ अच्छा समन्वय रहा है और आज भी है। हम यह समझते हैं कि चाहे कोई भी सरकार शत प्रतिशत हमारे लिए अनुकूल हो, फिर भी सरकार अनेक नियम एवं कानून से बंधी होती है और तदनुसार ही काम करती है। अतः कम किसी से भी अपनी सीमाओं को तोड़ने की अपेक्षा नहीं रखते हैं।
सजायाफ्ता पीएम और सीएम पर सरकार द्वारा लाए गए बिल पर संघ की राय से सम्बन्धित सवाल पर भागवत जी ने कहा कि सभी की तरह संघ भी इस बात का पक्षधर है कि नेताओं को पारदर्शी होना चाहिए और ऐसा दिखना भी चाहिए। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार का कोई भी समर्थन नहीं कर सकता। जहाँ तक बिल पारित होने की बात है, यह संसद का काम है और संसदीय प्रकियाओं का पालन करते हुए ही ऐसा होगा।
जातिगत जनगणना एवं आरक्षण पर संघ के दृष्टिकोण के विषय में पूछे गए सवाल के जवाब में संघ प्रमुख ने बताया कि संघ इस बात का पक्षधर है कि जातिगत गणना एवं आरक्षण के विषय में सरकार को संवेदनशील होना चाहिए। संघ संविधान के द्वारा प्रदत्त आरक्षण का समर्थक है। संघ पंडित दीनदयाल जी के इस विचार पर यकीन करता है और चलता है कि समाज में नीचे रह गए लोगों को अपना हाथ ऊपर उठाने का प्रयास करना होगा और ऊंचे स्तर पर पहुंच गए लोगों को अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें ऊपर लाने में मदद करनी होगी।
काशी और मथुरा मन्दिर पर चल रहे विवाद पर संघ के दृष्टिकोण के विषय में पूछे जाने पर संघ प्रमुख ने कहा कि संघ ने श्री राम जन्मभूमि मन्दिर के लिए चलाए गए आंदोलन का खुलकर समर्थन ही नहीं किया वरन बढ़ चढ़कर भाग लिया। अब संघ प्रत्यक्ष रूप से काशी, मथुरा या किसी भी मन्दिर के लिए चलाए जाने वाले आंदोलन में शामिल नहीं होगा। संघ के स्वयंसेवक अपनी इच्छा से चाहें तो भाग ले सकते हैं।
जनसंख्या नीति और नियंत्रण से जुड़े सवाल पर संघ प्रमुख ने बताया कि किसी भी राष्ट्र या समाज के लिए अपनी आबादी को अस्तित्व में बनाए रखने के लिए शुद्ध प्रजनन दर 2.1 होने की बात जनांकिकी विशेषज्ञों ने बतायी है। हम इसे 3 समझकर यह मानते हैं कि प्रत्येक दम्पति को 3 बच्चे अवश्य करने चाहिए।उन्होंने जोर देकर यह कहा कि देश की विशाल जनसंख्या देखते हुए 3 से अधिक के विषय में सोंचना भी नहीं चाहिए। इसी संदर्भ में संघ प्रमुख ने कहा कि नाजायज घुसपैठ पर रोक लगाना और इस पर सख्ती करना जरूरी है क्योंकि हर देश के पास सीमित संसाधन हैं और उनका भरपूर उपयोग देश के लोगों के लिए ही किया जाना उचित होगा। देश में धर्मातरण की समस्या के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा मानना है कि धर्म एवं पूजा पद्धति निजी आस्था का विषय है और इसमें कोई जोर जबरदस्ती या दबाव नहीं होना चाहिए। किसी भी भय या प्रलोभन के द्वारा धर्मांतरण करवाना गलत एवं गुनाह है और इसे रोकने के लिए सख्त कानून एवं कार्यवाही अपेक्षित है।
शिक्षा प्रणाली एवं शिक्षा से जुड़े कई सवालों के जवाब में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा मात्र जानकारी प्राप्त करना एवं किसी विषय को समझना ही नहीं है। शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति का समग्र विकास करने के साथ उसको संस्कारवान बनाये। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो हमारी परंपराओं और संस्कृति के मूल्यों का संचार करे। हमें गुरुकुल व्यवस्था बहाल करने पर सोचना होगा क्योंकि हमारी ज्ञान परंपरा हमारी विरासत का अभिन्न अंग है। हमें आधुनिक ज्ञान विज्ञान के साथ ऋषियों के द्वारा दिए ज्ञान को भी जानना चाहिए जो कि एकात्मकता का मुख्य स्त्रोत है। संघ प्रमुख ने कहा कि इसी कारण नई शिक्षा नीति में पंचकोशीय तत्वों को शामिल किया गया है जिससे विषय के साथ साथ छात्रों को कला, संगीत, क्रीड़ा एवं योग की समझ भी आ सके।
भाषा विवाद पर पूछे गए सवालों के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि सभी भाषाएं महत्वपूर्ण हैं परन्तु निजी संवाद एवं अभिव्यक्ति के लिए मातृभाषा ही सबसे सहज एवं उपयुक्त है। हमें देश के लिए एक राष्ट्रीय भाषा पर सहमति बनानी होगी जो सर्वाधिक लोगों के द्वारा बोली जाती हो। इससे किसी अन्य भाषा के अपमान का तो सवाल ही नहीं उठता। अंग्रेजी के विषय में उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा के सीखने में कोई बुराई नहीं परन्तु उसे मातृभाषा की जगह बढ़ावा देना उचित नहीं होगा। इसी तरह संस्कृत को अनिवार्य किए जाने के प्रश्न पर संघ प्रमुख ने कहा कि वे किसी भी भाषा को अनिवार्य किए जाने के पक्षधर नहीं हैं क्योंकि इससे विवादों को बल मिलता है। संघ यह अवश्य मानता है कि 12वीं तक के छात्रों को संस्कृत का प्राथमिक ज्ञान दिया जाना चाहिए जिससे वे भारतीय संस्कृति एवं विरासत को आसानी से समझ सकें।
शहरों और सड़कों के नाम बदले जाने पर चल रही राजनीति के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि देश में शहरों या सड़कों के नाम आक्रमणकारियों के नाम पर नहीं होने चाहिए। इसे धर्म से जोड़ना ठीक नहीं होगा। यदि आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों एवं सड़कों के नाम बदलकर ए पी जे अब्दुल कलाम या अब्दुल हमीद के नाम पर रखे जाएं तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। हमें उतनी ही प्रेरणा अशफाक उल्ला खान से मिलती है जितनी कि राम प्रसाद बिस्मिल से।
भारत में मुसलमानों के अधिकार एवं उनकी स्थिति पर उठाए गए सवालों के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा कि संघ मानता है कि भारत सभी का है। मुसलमान शुरू से ही देश के अभिन्न अंग रहे हैं और उनका भी बराबर का हक है। संघ बिना उपासना पद्धति पर विचार के सभी को साथ लेकर चलने की नीति पर यकीन करता है। हम उसे हिन्दू ही नहीं मानते जो मुस्लिम या किसी भी अन्य पंथ या सम्प्रदाय का विरोधी हो।
पर्व एवं त्यौहार में मांस की बिक्री या मांसाहार पर रोक लगाने के विषय पर संघ प्रमुख ने कहा कि सभी को दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। ऐसा होने पर इस विषय में कानून बनाने या रोक लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
अस्पर्शयता एवं छुआछूत के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि हिन्दू धर्म में यह स्वीकार्य नहीं है। 1969 में उड़ुपी में धर्माचार्यों ने यह स्पष्ट तौर पर मत व्यक्त किया था। इसी तरह संघ में महिलाओं की भूमिका के सवाल पर मोहन भागवत जी ने कहा कि महिलाएं संघ की दृष्टि में परस्पर पूरक हैं। संघ में अनेक महिला प्रमुख संगठन उसकी प्रेरणा से ही काम कर रहे हैं जिनकी प्रमुख भी महिलाएं हैं।
तकनीक एवं आधुनिकता की भूमिका के विषय में संघ के दृष्टिकोण को बताते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि तकनीक का कोई विरोध नहीं है परन्तु तकनीक का प्रयोग विवेक सम्मत होना चाहिए और इसका उपयोग जन कल्याणकारी होना चाहिए न कि विनाशकारी। तकनीक का मालिक व्यक्ति को होना चाहिए। तकनीक मानवता पर हावी नहीं होनी चाहिए।
एक प्रश्न के उत्तर में संघ प्रमुख ने कहा कि उनका मानना है कि छात्र एवं छात्राओं को संविधान के मूल तत्वों, नागरिक अधिकारों एवं कर्तव्यों और मार्गदर्शक सिद्धांतों की शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए। संघ की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता एवं भूमिका के प्रश्न पर संघ प्रमुख ने बताया कि संघ देश के भीतर ही सक्रिय है। विदेशों में अनेक हिन्दू संगठन सक्रिय हैं जिनकी विचारधारा एवं कार्यपद्धति संघ के निकट है।
बीते दिनों में सबसे अधिक चर्चा में रहे 75 वर्ष की आयु होने पर अवकाश ग्रहण किए जाने के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा कि उन्होंने इस विषय पर आदरणीय मोरोपन्त जी के विचार साझा करते हुए कहा था कि हमें 75 वर्ष की आयु होने पर मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार रहना चाहिए। उनका मत यह है कि आयु का अवकाशप्राप्त करने से कोई सम्बन्ध नहीं है। आप जिस संगठन के साथ जुड़े हैं और काम कर रहे हैं, वह जब तक आपसे किसी उत्तरदायित्व के निर्वहन की उम्मीद रखता है और आपको वह काम सौंपता है, तब तक आपको काम करना होगा। संघ प्रमुख ने कहा कि उनका भी अवकाश लेने का कोई इरादा नहीं है और यदि संघ इस पद से हटने के बाद भी उनसे कहीं शाखा चलाने के लिए कहेगा तो वह खुशी के साथ ऐसा करेंगे। ऐसा ही विचार सभी लोगों के लिए है जो किसी संगठन के साथ जुड़े हैं।
अन्त में एक सवाल के जवाब में संघ प्रमुख ने बताया कि संघ की विचारधारा तीन प्रमुख तत्वों पर टिकी है। पहला यह है कि संघ भारत को सांस्कृतिक तौर पर हिन्दू राष्ट्र मानता है और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरा हम यह मानते हैं कि व्यक्तिगत परिवर्तन एवं उत्थान से ही समाज का परिवर्तन एवं उत्थान सम्भव है और यही समाज आगे व्यवस्था में परिवर्तन लाता है। तीसरी बात यह है कि संघ के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है और संघ में हिंसा एवं घृणा के लिए कोई स्थान नहीं है। हम सर्वजन हिताय एवं वसुधैव कुटुम्बकं के मूल्यों पर चलते हैं और सभी को अपना मानते हैं।