उत्तर प्रदेश

अभिभाषण में महाकुंभ

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय संविधान में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अनुरूप संघीय और राज्यों की कार्यपालिका में दो प्रकार के प्रमुख होते है। संघीय शासन में राष्ट्रपति और प्रांतीय शासन में राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होते है। जबकि क्रमशः प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री वास्तविक प्रमुख होते है। संसदीय व्यवस्था का दूसरा लक्षण यह है कि राष्ट्रपति संसद और राज्यपाल संबंधी राज्य के विधानमंडल के अंग भी होते है। विधायी क्षेत्र में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रकार कार्यपालिक और व्यवस्थापिका में राज्यपाल के संवैधानिक अधिकार होते है। इसके अलावा राज्यपाल को स्वविवेक का अधिकार भी संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 176 के अनुसार राज्यपाल राज्यपाल, विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण देते है। अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उपबन्ध किया जाता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि राज्यपाल और विधानमंडल को मिलाकर ही व्यवस्थापिका का गठन होता है। इस रूप में राज्यपाल विधान मण्डल के अधिवेशन आहूत करते है। वह विधानमंडल को संदेश भेज सकते हैं। कार्यपालिका की दृष्टि से राज्यपाल ही मुख्यमंत्री की नियुक्ति करते हैं। मुख्यमंत्री की सलाह वह अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करते है। संवैधानिक भाषा में राज्यपाल को उसके कार्यों में सलाह एवं सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती है। जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है। संसदीय व्यवस्था में मंत्रिपरिषद को राज्यपाल की ही सरकार कहा जाता है। इस आधार पर ही विधानमंडल में राज्यपाल के अभिभाषण को देखना चाहिए। राज्य सरकार संबंधी ही उनके भाषण में शामिल रहते हैं। उन पर सदन में चर्चा होती है। इसके बाद सत्ता पक्ष धन्यवाद प्रस्ताव पारित कराने का प्रयास करता है। उत्तर प्रदेश अब विधानमंडल में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल अभिभाषण का भी इसी आधार पर आकलन होना चाहिए। इस समय भारत ही नहीं पूरी दुनिया में प्रयागराज महाकुंभ सर्वाधिक चर्चित विषय है। अभिभाषण में इसको प्रमुखत मिलना स्वाभाविक था। राज्यपाल ने इसकी भव्य महाकुम्भ कहा। जिसमें स्वच्छता, सुरक्षा तथा सुव्यवस्था के नए मानक गढ़े गए हैं। महाकुम्भ में आस्था एवं आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। अनेकता में एकता है। समता व समरसता का संदेश है। एक भारत श्रेष्ठ भारत की अवधारणा है। अब तक तिरपान करोड़ से अधिक लोगों का स्नान करना असाधारण है।

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