लेख

स्वाभिमानी किसान को कर्ज नहीं, फ़सल के वाजिब दाम दो

के.पी. मलिक

देश का छोटा या बड़ा कैसा भी किसान हो वह परेशान इसलिए है क्योंकि उसको उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिलता। उसे किसी सरकार या साहूकार से ऋण नहीं चाहिए उसको तो अगर उसकी फसल का उचित दाम मिल जाए, तो उसको ऋण लेने की जरूरत ही क्या है? अगर उसको उसकी फसल के सही दाम मिल जाते हैं? अगर इतनी छोटी सी बात एक साधारण किसान और कम पढ़े लिखे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत को समझ में आ सकती है, तो देश के प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री, तमाम कृषि विशेषज्ञों और भारत सरकार के छोटे बड़े सचिवों को क्यों समझ में नहीं आ रही है?
सरकार किसानों को कर्ज क्यों देना चाहती है? बैंक किसान को कर्ज देने के लिए उसके पीछे क्यों पड़ी हुई हैं? क्या इसलिए क्योंकि किसान का कर्ज सबसे सुरक्षित यानि सिक्योर कर्ज माना जाता है क्योंकि अगर किसी कारण किसान अपना कर्ज न चुका सके तो बैंक उसकी खेती की जमीन पर तत्काल कब्जा कर लेती है, उदाहरण के लिए किसान का दुर्भाग्य देखिए कि अगर वह किसी बैंक से एक लाख रुपए का कर्ज लेता है तो
बैंक उसकी पूरी की पूरी जमीन को बंधक रख लेता है। जबकि अगर शहरों में कोई व्यक्ति 20 लाख की कार लेने जाता है तो इस कर्मचारी की सिर्फ 3 महीने की सैलरी स्लिप और आयकर विभाग में जमा रिटर्न की कॉपी लेकर बैंक उसको लाखों रुपया कर दे देते हैं। जबकि इसको असुरक्षित यानि अनसिक्योर कर्ज माना जाता है, सवाल ये है कि किसान के साथ यह दोहरापन क्यों? क्या इस पर सरकार को विचार नहीं करना चाहिए?
दरअसल जैसा कि किसान मसीहा बाबा महेंद्र सिंह टिकैत कहते रहे हैं कि किसान स्वाभिमानी होता है और वह मजबूरी में ही अपनी दुर्दशा की पोल पट्टी खोलकर, छुप छुपाकर कर्ज लेने जाता है, जब उसके सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो वह मजबूरी में साहूकार या बैंक की शरण में कर्ज लेने जाता है, और उनके मकडजाल में ऐसा फंसता है कि उसे मकड़ जाल
से निकलने के लिए या तो अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ता है या जान से हाथ धोना पड़ता है आप लगातार देखते हैं कि बड़ी संख्या में देश के
या तो किसान आत्महत्या कर रहे हैं या बैंक उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और सरकार, मंत्री और नेता तमाशाबीन बने हुए हैं।
बहरहाल अगर किसानों को इस मकडजाल से बचना है तो किसानों को सरकार की योजनाओं और वित्तीय सहायता के बारे में जानकारी रखनी चाहिए, ताकि वे इसका लाभ उठाकर कृषि तकनीक का उपयोग करना चाहिए, जिससे उनकी फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा और उनकी आय में भी वृद्धि होगी। आज किसानों को अपनी आने वाली पीढ़ियों के होनहार नौजवानों को आधुनिक समाज के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा, पारंपरिक खेती को छोड़कर आधुनिक खेती करके अपनी फ़सल को बाज़ार में व्यापारी किसान बनकर बेचना होगा। हमें खेती को व्यापार बनाना होगा तभी वह बच पाएंगे और किसानीयत को जिंदा रख पाएंगे, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब किसान अपनी जमीन गंवाकर पूंजीपतियों के दफ्तर और कारखानों में चौकीदार की नौकरी करेंगे।

अगर किसी कारण किसान अपना कर्ज न चुका सके तो बैंक उसकी खेती की जमीन पर तत्काल कब्जा कर लेती है, उदाहरण के लिए किसान का दुर्भाग्य देखिए कि अगर वह किसी बैंक से एक लाख रुपए का कर्ज लेता है तो बैंक उसकी पूरी की पूरी जमीन को बंधक रख लेता है। जबकि अगर शहरों में कोई व्यक्ति 20 लाख की कार लेने जाता है तो इस कर्मचारी की सिर्फ 3 महीने की सैलरी स्लिप और आयकर विभाग में जमा रिटर्न की कॉपी लेकर बैंक उसको लाखों रुपया कर दे देते हैं। जबकि इसको असुरक्षित यानि अनसिक्योर कर्ज माना जाता है, सवाल ये है कि किसान के साथ यह दोहरापन क्यों? क्या इस पर सरकार को विचार नहीं करना चाहिए?

Share this post to -

Related Articles

Back to top button