डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के सेठ पदमचंद जैन संस्थान में “सेवा पखवाड़ा 2025” संपन्न हुआ

आगरा। डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के सेठ पदमचंद जैन संस्थान में “सेवा पखवाड़ा 2025” के अंतर्गत आयोजित संत समागम में छात्रों और शिक्षकों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम 23 सितम्बर 2025 को संपन्न हुआ। संचालन प्रो. संतोष बिहारी ने किया।
कार्यक्रम में विद्वान और संतों ने भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्र निर्माण में साधना की भूमिका पर अपने विचार साझा किए। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर आशु रानी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि लक्ष्य और साधना के साथ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन करें, लेकिन भगवद गीता का अध्ययन विशेष रूप से ध्यान से करें, क्योंकि यह जीवन को सहजता प्रदान करने की कुंजी है। प्रो. आशु रानी ने श्री कृष्ण के विचार उद्धृत करते हुए कहा कि असफलता मिलने पर यदि व्यक्ति प्रयास करना बंद कर देता है तो वह कभी सफल नहीं हो सकता, और सफलता के मिलने पर भी सतत लगन और विनम्रता ही कर्मयोगी बनने का मार्ग है।
इस अवसर पर इस्कॉन मंदिर से पधारे श्री अरविंद स्वरूप दास जी ने कहा कि भारतीयों की स्मृति विश्व में सबसे तेज है।मंत्र मेडिटेशन और ईश्वर के नाम का निरंतर स्मरण भारतीयों की स्मृति को तेज बनाता है। उन्होंने श्री शील प्रतिपाद जी महाराज का उदाहरण देते हुए बताया कि महाराज जी ने केवल मंत्र साधना की सहायता से अमेरिका के युवाओं को ड्रग्स की लत से मुक्ति दिलाई। संतों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संत का स्वभाव दूसरों के हित में कार्य करना होता है। संत आपके जीवन का निर्माण करते हैं, इसीलिए सभी शास्त्रों में साधु का संग करने का निर्देश दिया गया है।
मनकामेश्वर मंदिर के महंत श्री योगेश पुरी जी ने भारतीय ज्ञान परंपरा और शिक्षा की महत्ता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत शब्द में भा का अर्थ है ज्ञान और रत का अर्थ है निरन्तर लगा हुआ, अर्थात जो निरन्तर जान अर्जन और सृजन में लगा हुआ है, वही भारत है। यह ज्ञान की भूमि है और यहां जन्मे राम जैसे व्यक्तित्व इसी परंपरा का प्रमाण हैं। उन्होंने छात्रों को राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका याद दिलाई और कहा कि राष्ट्र निर्माण से पहले स्वयं का निर्माण आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा, दीक्षा, दान और चिकित्सा—सनातन धर्म के चार स्तंभ—का पालन करना आवश्यक है।
कार्यक्रम में गुरुद्वारा गुरु के ताल के जत्थेदार श्री अमरीक सिंह जी ने कहा कि वाहेगुरु केवल शब्द नहीं बल्कि एक अवस्था है।उन्होंने “सत श्री अकाल” के अर्थ की व्याख्या करते हुए बताया कि संत वही है जो काल अथवा समय से परे हो जाता है। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि गोविन्द सिंह जी ने एक ग्रन्थ की रचना की जिसमें गीता और रामायण की भी तर्जनी है।गुरुओं का संदेश स्पष्ट है—कृत करो, नाम जपो और मानवता की सेवा करो।”
कार्यक्रम में गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत की कथा के माध्यम से उन्होंने बताया कि किस प्रकार औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर अत्याचार ढाए और धर्म की रक्षा हेतु गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपनी शहादत दी। उनके साथ उनके साथियों ने भी अपार यातनाएँ सहते हुए बलिदान दिया। जत्थेदार अमरीक सिंह जी ने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा, *“बच्चों को अपना इतिहास अवश्य जानना चाहिए। हमारे माथे का तिलक गुरु का रक्त है और जनेऊ उनकी अंतरियाँ हैं। हमें अपने गुरुओं के प्रति सदैव नमन करना चाहिए। गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत न केवल सिख पंथ बल्कि संपूर्ण मानवता की धरोहर है। उनका जीवन और बलिदान हमें सदैव धर्म, साहस और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
इस अवसर पर प्रो. शरद उपाध्याय, प्रो. संजय चौधरी, प्रो. बी. डी शुक्ला, प्रो. बृजेश रावत, प्रो. बिंदु शेखर शर्मा, अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो भूपेंद्र स्वरूप शर्मा, डॉ के के पचौरी, डॉ योगेन्द्र कुमार शर्मा, डॉ स्वाती माथुर, डॉ श्वेता चौधरी, डॉ जागृति असीजा, डॉ सीमा सिंह, डॉ श्वेता गुप्ता, दीपक कुलश्रेष्ठ, अर्पिता दुबे, निशांत चौहान एवं इस्कॉन की अदिति गौरांग की भी उपस्थिति रही।