लेख
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“रीडर रिस्पॉन्स थ्योरी साहित्यिक पाठ के अर्थ निर्माण में पाठक की केंद्रीय भूमिका”
साहित्य मात्र लेखन की कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि लेखक, पाठ और पाठक के मध्य एक जीवंत संवाद है। लंबे समय…
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समाजवादी आस्था का दोहरा मापदंड
श्रावण माह शिव भक्ति का पवित्र माह है जिसमें उत्तर भारत के अनेक राज्यों में पवित्र कांवड़ यात्रा निकलती है।…
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“शिक्षा का बदलता परिदृश्य और जनमानस की असमंजसता: विकसित भारत के राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में निजीकरण और सरकारी व्यवस्था का द्वंद्व”
भारत में शिक्षा केवल ज्ञानार्जन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और राष्ट्र निर्माण का आधार रही है।…
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वन्दे गौ मातरम, गोवंश संरक्षण से बढ़ रही अर्थव्यवस्था
सनातन के ध्वज वाहक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, “वन्दे गौ मातरम” भाव का अनुसरण करते हुए वर्ष 2017 में सरकार…
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जनहित की त्रिमूर्ति: शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर सरकारी नियंत्रण ही विकसित, समृद्ध और अखंड भारत की आधारशिला
विकसित भारत का निर्माण केवल आर्थिक प्रगति या तकनीकी नवाचार से संभव नहीं, बल्कि एक ऐसे समावेशी समाज की संरचना…
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प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक विदेश यात्रा, क्या है संदेश?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 11 वर्ष के कार्यकाल में उनकी अब तक की सबसे लंबी 5 देशों घाना, त्रिनिदाद एंड…
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“स्त्री पैदा नहीं होती, बनायी जाती है” – सिमोन द बोउवार के कथन की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता और महत्व
“स्त्री पैदा नहीं होती, बनायी जाती है” — यह कथन बीसवीं सदी की प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक, लेखिका और स्त्रीवादी विचारक…
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“सनातन (हिन्दू) धर्म में जाति की सत्ता: धार्मिक एकता बनाम सामाजिक विभाजन”
सनातन धर्म, जिसे ‘शाश्वत सत्य’ का वाहक माना जाता है, मूलतः आत्मा की एकता, करुणा, सहिष्णुता और वैश्विक बंधुत्व की…
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“गुण बनाम जाति: गोस्वामी तुलसीदास और संत रैदास के विचारों में सामाजिक न्याय का द्वंद्व”
भारतीय समाज में जाति व्यवस्था ने सदियों से सामाजिक संरचना को दिशा दी है। यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है,…
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“स्वच्छ व स्वस्थ मनयोग और सामाजिक समरसता: विकसित भारत की असली बुनियाद” (नशा, दहेज, छुआछूत, धर्मान्धता, लिंगभेद व वर्गभेद जैसी सामाजिक कुप्रथाओं के विनाश का महायोग)
1. प्रस्तावना: विकसित भारत की अवधारणा और उसकी जमीनी नींव भारत, विविधताओं से भरा एक समृद्ध सांस्कृतिक राष्ट्र है, जो…
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“आधुनिकता की आड़ में अनैतिकता: सिनेपलेस (कैबिन सिनेमा), कैबिन रेस्टोरेंट, हुक्काबार और गली-मोहल्लों में पनपते जिस्मफरोशी के अड्डे समाज व संस्कृति के विनाशक”
आज का भारतीय समाज तीव्रता से आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रहा है, लेकिन इस प्रगति की आड़ में एक…
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