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मुक्तक

पं रामजस त्रिपाठी नारायण

देखो ऐसा दौर आ गया पर का नहिं परवाह यहाँ।
जिधर देखिए दिख जाता है, बंधु -बंधु में दाह यहाँ।
फिर भी मन मत हारो वीरों , सत्य राह को भूलो मत।
जो पुरुषार्थ दिखाता उसको, मिल जाता है वाह यहाँ।।

अपनी बाती तेल सँभालो, दीपक बनकर यदि जलना । 
अँधेरों से लड़-लड़ करके, उजियारा जग यदि करना ।
बिना जले है कौन प्रकाशित, इस जग में हे प्यारे सुन।
सूर्य देव का ध्यान कीजिए, यदि उनके सम है बनना।।

रचनाकार
पं रामजस त्रिपाठी नारायण

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