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पानी पीजै छान और गुरु कीजै जान

डॉ दीपिका उपाध्याय

आगरा।  श्रीगोपालजी धाम, दयालबाग में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का आज तीसरा दिन था। गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित कथा में अजामिल, नरसिंह अवतार, मोहिनी अवतार तथा वामन अवतार कथा के साथ गुरु की महिमा भी विस्तार से समझाई गई।
 ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी की शिष्या डॉ दीपिका उपाध्याय ने जड़भरत तथा राजा रहूगण के संवाद का वर्णन करते हुए संसार की अनिश्चितता तथा मरणधर्मा जीवन का वर्णन किया।
 अजामिल की कथा सुनाते हुए कथावाचक ने बताया कि भगवान अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ते, भक्त भले ही उन्हें भूल जाए।  जीवन भर में अपकर्म में लीन रहने के बाद भी जब अजामिल ने अंतिम समय में जाने अनजाने ही भगवान का नाम ले लिया तो भगवान की कृपा से उसकी बुद्धि निर्मल हो गई। जीवन की अंतिम बेला में उसने न केवल अपने बुरे कर्मों के लिए सच्चा प्रायश्चित किया बल्कि भगवान का भजन करते हुए गंगा किनारे प्राण त्यागे। भगवान ने अजामिल को अपनाकर यह संदेश दिया है कि अंत समय के कष्टों में केवल भगवान का नाम ही काम आता है।
 देवगुरु बृहस्पति के स्थान पर विश्वरूप को गुरु बनाने का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक ने कहा कि मात्र योग्यता के आधार पर ही गुरु नहीं चुनना चाहिए। गुरु हमारा हितैषी भी हो इसका ध्यान रखना चाहिए। वरना वह जल की तरह जीवनदायी होने के स्थान पर विष भी हो सकता है।
 इंद्र- वृत्रासुर युद्ध का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक ने बताया कि स्त्री पुरुष में भेद दृष्टि रखने के कारण ही राजा चित्रकेतु जैसे प्रतापी एवं वैरागी राजा को माता पार्वती का श्राप मिला। शिव- शक्ति की एकता न समझ पाने के कारण ही राजा चित्रकेतु अगले जन्म में वृत्रासुर जैसे भयानक राक्षस हुए।
 भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए कथावाचक ने बताया कि भगवान को सर्वाधिक प्रिय अपना भक्त ही होता है। हिरण्यकशिपु का वध कर भगवान ने यह संदेश दिया कि असुर बुद्धि कितनी ही चतुर क्यों ना हो, भगवान की विवेकवान एवं निर्मल बुद्धि के समक्ष कुछ नहीं। भगवान के समक्ष मनुष्य क्या और असुर क्या? दोनों ही तिनके के समान हैं।
आगे वामन अवतार लीला सुनाते हुए कथावाचक ने कहा कि राजा यदि पुण्य कर्मा हो तो कलयुग भी सतयुग में बदल जाता है। राजा बलि के शासनकाल में ऐसा ही हुआ क्योंकि वे बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे। वे निरंतर यज्ञ आदि करके भगवान तथा ब्राह्मणों को प्रसन्न रखते थे। ऐसे धर्मात्मा राजा को भगवान श्री हरि ने सुतल लोक इसलिए भेजा क्योंकि उनके कोप के कारण देवता पीड़ित थे। देवों की अमरावती नगरी पर बलि के द्वारा विजय प्राप्त कर लेने से भी भगवान अप्रसन्न थे।
 यह प्रसंग स्पष्ट रूप से बताता है कि कोई व्यक्ति कितना ही धर्मात्मा क्यों ना हो, यदि किसी अन्य के अधिकार का हनन करता है तो यह भगवान को अभीष्ट नहीं।
 गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस कथा में निदेशक रवि शर्मा ने बताया कि कल भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस अवसर पर विनीता गौतम, पवित्रा गौतम, वीणा कालरा, संतोष तिवारी, कान्ता शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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