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 दोषपूर्ण कामना का होता है पीड़ादायक परिणाम

डॉ दीपिका उपाध्याय

आगरा।  'किसी भी मनुष्य को कभी भी ईर्ष्या अथवा द्वेष के कारण कोई कामना नहीं करनी चाहिए। ब्रह्मा जी ने शिवजी के विवाह बंधन की कामना द्वेषवश की थी। इसीलिए भगवान ने इस विवाह को चिर स्थाई न रख स्थूल रूप से त्याग दिया। माता सती ने भगवान शिव के अपमान से दुखी होकर पिता दक्ष के यहां प्राण त्याग दिए।' सती विवाह का प्रसंग सुनाते हुए उक्त प्रवचन प्रख्यात कथावाचक  डॉ दीपिका उपाध्याय ने श्रीगोपालजी धाम, दयालबाग में कहे।
गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्रीशिवमहापुराण कथा का आज दूसरा दिन था। सती विवाह का प्रसंग सुनाते हुए कथावाचक ने कहा कि अहंकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। अहंकार के कारण ही प्रजापति दक्ष जगदंबिका को अपनी पुत्री तथा समस्त जगत के कारण भगवान शिव को जामाता समझकर उनका अपमान कर बैठे। इसी कारण से उन्हें न केवल बकरे के मुख से युक्त होना पड़ा बल्कि यज्ञ भी ध्वस्त हो गया।
 शिव भक्त ऋषि क्षुव तथा ऋषि दधीचि की कथा सुनाते हुए कथावाचक ने बताया कि राजा क्षुव के अहंकार तथा बाहुबल को ऋषि दधीचि ने तपोबल से तोड़ा। जब श्री हरि स्वयं राजा क्षुव का पक्ष लेकर दधीचि से युद्ध करने गए तब दधीचि द्वारा फेंकी गई कुशा भी शिव भक्ति के प्रभाव से त्रिशूल में बदल गई। दधीचि के श्राप के कारण ही श्रीहरि दक्ष यज्ञ में रुद्रगणोंसे परास्त हुए थे।
  फाउंडेशन के निदेशक रवि शर्मा ने बताया कि कल माता पार्वती के विवाह की कथा सुनाई जाएगी। वरदान उपाध्याय ने शिवनाम का सुंदर कीर्तन करवाया। कथा में देवेन्द्र गोयल, कुसुम अरोड़ा, पवित्रा गौतम, वीणा कालरा, गुंजन गौतम, कांता शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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