फिलिस्तीन को स्वतंत्रता के लिए हिंसात्मक युद्ध के बजाय गांधीवाद का रास्ता अपनाना चाहिए
Israel Hamas Conflict Mahatma Gandhi: प्रिंस तुर्की अल-फैसल ने कहा कि फौजी कार्रवाईयों से दुनिया की किसी समस्या का हल नहीं निकला है। इसमें सिर्फ नुकसान होता है। ऐसे में इजरायल अपनी कार्रवाई रोके। वहीं फिलीस्तीन के लोग भारत की आजादी के आंदोलन से सीखें कि किस तरह हिंसा के बिना भी बड़े-बड़े साम्राज्यों को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है।
इतिहास से हम क्या सीखते हैं ?
किताबों और कक्षाओं में हमेशा से यह एक प्रारम्भिक प्रश्न रहा है।
जवाब कुछ ऐसा रहा है कि इतिहास से हम सीखते हैं कि हमारे पूर्वजों से जो-जो गलतियां हुई, उसे हम भविष्य में न दुहराएं।
इतिहास से हम सीखते हैं कि हमारे पूर्वजों ने क्या-क्या अच्छा किया, उन मार्गों का हम अनुसरण करें।
इस प्रकार इतिहास की पढ़ाई हमें उज्ज्वल विकास की तरफ ले जाने में सहायक होती है।
किन्तु आज के प्रसंग में क्या वास्तव में इतिहास अपनी इस भूमिका निभा पाने में सफल है ?
शायद नहीं।
आज इतिहास का दुरूपयोग समाज में द्वेष, घृणा एवं बदले की भावना को जगाने के लिए किया जा रहा है, हिंसा एवं युद्ध को भड़काने के लिए किया जा रहा है।
इतिहास पढ़-पढ़कर सभी लोग यह बताने-समझाने में जुटे पड़े हुए हैं कि पूर्व के वर्षों में किस-किस के पूर्वजों ने क्या-क्या भूलें की थीं, और उस आधार पर आज उन-उन के वंशजों से कैसे-कैसे बदला लिया जाना चाहिए ?
उन अध्यायों में रूचि लेने को कोई भी तैयार नहीं है कि पूर्व के वर्षों में कब-कब और कैसे-कैसे समाज में शांति, सद्भाव और उत्सव का वातावरण निर्मित किया गया ताकि उससे सीख लेकर भविष्य में भी ऐसा माहौल बनाया जा सके।
आज के समय में इतिहास का सकारात्मक उपयोग कम और नकारात्मक दुरूपयोग ज्यादा किया जा रहा है। इससे बेहतर होता कि समस्त इतिहास को ही भुला दिया जाता।
इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध को सभी देश देख रहे हैं, युद्ध में अपने-अपने अनुसार समर्थन-विरोध भी कर रहे हैं, पर युद्ध रोकने को लेकर दुनिया भर के देश कोई बड़ी मुहिम चलाने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं।
शांति एवं सद्भाव में देशों के प्रमुखों की रूचि नहीं रह गई है। लड़ाई का माहौल बना रहे - वे इसमें ज्यादा रूचि लेते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में गांधी आज भी प्रासंगिक हैं और इसलिए गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार जरूरी है।
सोचिये कि आज अगर गांधी जी जिन्दा होते तो इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के इस काल में वे क्या कर रहे होते ? रूस और यूक्रेन युद्ध के समय वे क्या करते ? कहां-कहां जाकर किस-किस प्रकार से युद्ध शांति का प्रयास करते ? युद्ध रोकने के लिए अपनी जान को भी जोखिम में डालने से नहीं चूकते।
फिलिस्तीनियों के संघर्ष और स्वतंत्रता के लिए भी गांधीवाद एक बड़ा मार्ग बन सकता था या अब भी बन सकता है, पर हिंसापूर्ण युद्ध शायद ही सही मायनों में उनकी स्वतंत्रता की राहें खोल सके, यह बात फिलिस्तीन समर्थकों को समझनी चाहिए।
भारत 200 साल तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। किंतु आजादी के बाद भारत और इंग्लैंड कभी एक-दूसरे के दुश्मन नहीं रहे। यह कैसे संभव हुआ ?
हिसाब से तो आजादी के बाद कम-से-कम 200 साल तक भारत को अंग्रेजों का दुश्मन होना ही चाहिए था। मतलब 2147 ईस्वी तक समस्त भारतीयों को अपने-अपने मन में अंग्रेजों के प्रति दुश्मनी का भाव ढोते रहना चाहिए था, तभी वे सच्चे भारतीय माने जाते और इस पक्ष में पर्याप्त तर्क भी दिए जा सकते थे, अंग्रेजों के जुल्म याद कराये जा सकते थे।
पर क्या आजादी के बाद कोई ऐसा वाक्या मिलता है जिससे लगे कि भारत के लोग अंग्रेजों के प्रति दुश्मनी का भाव पालकर बैठे हुए हैं ?
- नहीं।
अपवादस्वरूप ऐसा कोई वाक्या मिल सकता है, पर आम तौर पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ।
आजादी के बाद समस्त भारतीय अपने-अपने काम, विकास और सुधार के मिशन में लग गए।
यह वृहत गुणवत्तापूर्ण परिणाम गांधी जी के दिखाए गए मार्ग पर चलकर आजादी पाने की वजह से ही संभव हो सका, वरना अगर भारत हिंसा की राह पर चलकर आजाद हो भी गया होता तो आज भी भारतीयों और अंग्रेजों के मन में एक-दूसरे के खिलाफ द्वेष और हिंसा के भाव पल ही रहे होते।
फिलिस्तीन को भी गांधी जी के दिखाए गए रास्ते - सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह - पर चलने की जरूरत है, न कि हिंसा के रास्ते पर।
आजकल सोशल मीडिया पर एक कहावत बहुत वायरल है कि युद्ध खुद एक समस्या है, यह दूसरी समस्याओं का समाधान क्या करेगी !
इसलिए फिलिस्तीन को हिंसा और युद्ध छोड़कर गांधी जी के बताए रास्तों पर चलना चाहिए, अन्यथा अगर फिलिस्तीन-समर्थक युद्ध जीत भी गए तो भी भविष्य में वहां शांतिपूर्ण समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनकी आने वाली पीढ़ियां भी अशांति का माहौल झेलती ही रहेंगी।
इस आलेख के अंत में समस्त देशों से गुजारिश है कि इजराइल एवं फिलिस्तीन समर्थकों के इस युद्ध को रोकने का प्रयास शीघ्र से शीघ्र करें।
अन्यथा राहत इंदौरी जी की एक शायरी आज बहुत ही प्रासंगिक है कि "लगेगी आज तो आयेंगे घर कई जद में, यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।"
सभी देश इसी धरती पर हैं, और आज कई देशों ने ऐसे-ऐसे हथियार बना लिए हैं कि वे एक बार चल जाएं तो पृथ्वी का न जाने कितना हिस्सा बर्बाद हो जाए।
इसलिए इजरायल और फिलिस्तीन समर्थकों के इस युद्ध को ऐसे देखना कि वह जमीं के उतने ही भाग तक सीमित है - यह गलत है। किसी भी देश की थोड़ी सी नासमझी का परिणाम पूरे विश्व को भुगतना पड़ सकता है, इसलिए भी इस युद्ध को रोकने के लिए तुरन्त प्रभावी प्रयास किए जाने चाहिए।
- धनंजय कुमार सिन्हा
संस्थापक, अमन समिति