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मकर संक्रांति के देवता सूर्य, शनि, और भगवान विष्णु की आराधना 15 जनवरी को 

प्रो दिग्विजय कुमार शर्मा

मकर संक्रांति का पर्व आते ही भांँति- भांँति के लड्डू, तिलकुटी, लाई, खिचड़ी इत्यादि की तैयारियांँ शुरू हो जाती हैं। किंतु उनमें जो मुख्य आकर्षण होता है वह होता है काला तिल। 
वैसे संक्रांति काल का अर्थ है, एक से दूसरे में जाने का समय। अंग्रेजी में इसे Transition भी कह सकते है। हम सभी 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं , इसलिए हमें इस बार मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र सा लग सकता है। मकर संक्रांति सन 2081 तक 15 जनवरी को ही होगी। जैसा कि सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन "मकर संक्रांति" के रूप में जाना जाता है। ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है। इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह अंतर पूरे 24 घंटे का हो जाता है। सायं 4 बजे के बाद संध्याकाल माना जाता है और भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार संध्या काल के बाद सूर्य से सम्बंधित कोई भी गणना उस दिन न करके अगले दिन से की जाती है। इससे वास्तव में मकर संक्रांति सन 2008 से ही 15 जनवरी को हो गई थी। लेकिन सूर्यास्त के पहले का समय होने के कारण 14 जनवरी को ही मकर संक्रांत मानते आ रहे थे। 2024 में संक्रांति का समय 14 जनवरी की रात्रि को 9:35 का था, अर्थात तब सूर्यास्त हो चुका था, इसलिए 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई जाएगी। वैसे तो 72 साल की रेंज में संक्रांति चक्र एक दिन बढ़ जाता है।पूर्वकाल में जाएं तो सन 275 में मकर संक्रांति  21 दिसम्बर को हुआ करती थी जो कि अब सन 2024 आते-आते 15 जनवरी तक आ गयी है।
सन 1935 से सन 2008 तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को रही और सन 1935 से पहले 72 साल तक यह 13 जनवरी को रही थी। यह जानकार हमें अपने पूर्वजों पर गर्व करना चाहिए कि, 
ब्रह्माण्ड की गणना को सैद्धांतिक रूप में लिपि बद्ध किया।

यह भी जानें कि आख़िर क्यों मकर संक्रांति में काला तिल, काली उड़द की दाल, काला वस्त्र इतना महत्वपूर्ण होता है। इसी के साथ इस दिन भगवान सूर्य देव भगवान शनि देव और विष्णु भगवान की पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे कई पौराणिक कथाएंँ हैं जो निम्न प्रकार हैं।

सूर्य देव और शनि देव की कथा -
शनि देव सूर्य देव तथा रानी छाया के पुत्र हैं। शनि देव का रंग श्याम वर्ण का था जिसकी वज़ह से उनके पिता सूर्यदेव उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे और उनमें कभी भी तालमेल नहीं बैठता था। एक बार सूर्य देव अपने पुत्र शनि तथा उनकी मांँ छाया को अलग-अलग कर दिए, जिस वज़ह से छाया बहुत दुखी हुईं। फलस्वरूप उन्होंने सूर्य देव को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। उनके श्राप के फलस्वरुप सूर्यदेव कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए। तब उनकी दूसरी पत्नी के पुत्र यमराज  ने अपनी तपस्या से सूर्य देव के कुष्ठ रोग को ठीक किया और उन्होंने अपने पिता को समझाया कि उन्हें उनकी मांँ छाया तथा उनके भाई शनिदेव के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए। तब सूर्यदेव को उनके पुत्र यमराज की बात समझ में आ गई। उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया,तब वो अपनी पत्नी छाया और पुत्र शनिदेव के घर गए वहांँ जाकर उन्होंने देखा उनका घर कुंभ जलकर ख़ाक हो गया था। चारों तरफ़ केवल राख बिखरा हुई थी। उनकी ऐसी स्थिति को देखकर सूर्य देव को बड़ा दुख हुआ। जब सूर्यदेव शनिदेव के घर पहुंँचे तो शनिदेव के घर में सिर्फ़ काला तिल बचा हुआ था। अतः शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव का काले तिल से ही स्वागत- सत्कार किया। अपने पुत्र शनि से इस प्रकार आदर, मान- सम्मान पाकर सूर्यदेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी पत्नी तथा पुत्र को दूसरा घर मकर प्रदान किया। और साथ ही साथ उन्होंने यह वरदान भी दिया कि मकर संक्रांति के दिन जब वो मकर राशि में प्रवेश करेंगे तो उनका घर धन-धान्य से भर जाएगा। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया की मकर संक्रांति के दिन जो भी व्यक्ति काले तिल से भगवान शिव की पूजा अर्चना करेंगे उनका घर धन-धान्य से भरा- पूरा रहेगा। तथा उन्हें हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी। इसी पौराणिक कथा के फल स्वरुप मकर संक्रांति के दिन काले तिल, काली उड़द, काला वस्त्र, कालाछाता, कालाकंबल आदि का दान किया जाता है तथा काले तिल से सूर्यदेव की पूजा की जाती है। यह भी कहा जाता है कि जब सूर्य देव ने अपने पुत्र शनि देव का घर जला दिया था तब वे अत्यंत नाराज़ हो गए थे तब शनिदेव हनुमान जी के कहने पर ही सूर्य देव से मिलने गए थे और तभी से पिता पुत्र का संबंध मधुर हो पाया। तब शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव को अपने घर बुलाया। सूर्य देव पहली बार शनि लोक गए थे तब ग्रहों की चाल परिवर्तित हुई थी और शुभ फल की प्राप्ति के योग बने थे। इसी कारण से सूर्य देव के शनिदेव के घर जाने को शुभ माना जाने लगा और इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाने लगा।

भगवान विष्णु की कथा के अनुसार - कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने अनेकानेक दानवों का मस्तक काटकर मंदान पर्वत पर गाड़ दिया था, जिस कारण इस दिन भगवान सूर्य देव, शनि देव के साथ विष्णु भगवान की भी पूजा का विधान है।

इस सनातन पर्व पर आप सभी को मकर संक्रांति की अनेक बधाई भगवान भास्कर की किरणें हमारे जीवन को प्रकाश से उज्ज्वल करे! जय श्रीराम

प्रो दिग्विजय कुमार शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार

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