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“21वीं सदी में साक्षरता व सामाजिक न्याय: जीवन कौशल, रोजगारोन्मुखी शिक्षा एवं समतामूलक समाज की अनिवार्यता”

डॉ प्रमोद कुमार

21वीं सदी में दुनिया तेजी से बदल रही है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्रांति ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। ऐसे दौर में साक्षरता मात्र पढ़ने-लिखने की योग्यता भर नहीं रह गई, बल्कि यह जीवन कौशल, रोजगारोन्मुखी शिक्षा और सामाजिक न्याय से गहराई से जुड़ चुकी है। किसी भी समाज की प्रगति अब इस बात पर निर्भर करती है कि वहाँ कितने लोग न केवल साक्षर हैं, बल्कि वे कितने आजीविका योग्य, सामाजिक रूप से जागरूक और न्यायपूर्ण सोच रखते हैं। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में, जहाँ गरीबी, जातिगत असमानता, लैंगिक भेदभाव और संसाधनों का असमान वितरण गहरे स्तर तक मौजूद है, वहाँ साक्षरता का लक्ष्य केवल अक्षरज्ञान देना नहीं है, बल्कि ऐसा समतामूलक समाज निर्मित करना है जो सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करा सके।

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस : शिक्षा और प्रगति का वैश्विक उत्सव

साक्षरता किसी भी समाज के विकास और प्रगति की आधारशिला है। जब कोई व्यक्ति पढ़ने-लिखने में सक्षम हो जाता है, तब उसके सामने ज्ञान के द्वार खुल जाते हैं। वह न केवल अपने जीवन की दिशा तय कर सकता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के उत्थान में भी योगदान दे सकता है। इसी महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष 8 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य विश्वभर में शिक्षा और साक्षरता के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना तथा निरक्षरता जैसी सामाजिक समस्या को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाना है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा वर्ष 1966 में की गई। पहली बार यह दिवस 1967 में मनाया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य साक्षरता को एक मौलिक मानवाधिकार और सतत विकास के प्रमुख साधन के रूप में स्थापित करना था। समय के साथ इस दिवस ने वैश्विक अभियान का रूप ले लिया और आज यह दिन दुनिया के लगभग सभी देशों में किसी-न-किसी रूप में मनाया जाता है।

साक्षरता का महत्व:

साक्षरता केवल अक्षरज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को जीवन जीने का कौशल, समझदारी, विवेक और आत्मनिर्भरता प्रदान करती है जैसे-
1. व्यक्तिगत सशक्तिकरण
2. सामाजिक समानता
3. आर्थिक विकास
4. लोकतांत्रिक मूल्य
5. नैतिक एवं सांस्कृतिक जागरूकता

भारत में साक्षरता की स्थिति:

भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए साक्षरता का विशेष महत्व है।
वर्ष 1951 में भारत की साक्षरता दर मात्र 18.33% थी।
2011 की जनगणना के अनुसार यह दर बढ़कर लगभग 74% हो चुकी थी।
वर्तमान में भारत में साक्षरता दर में निरंतर वृद्धि हो रही है, लेकिन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों, पुरुष और महिला, तथा विभिन्न सामाजिक वर्गों में अभी भी बड़ा अंतर मौजूद है।

वैश्विक दृष्टिकोण:

यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग साक्षरता को सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) से जोड़ते हैं।
विशेषकर चौथा लक्ष्य (Quality Education) कहता है कि 2030 तक सभी को समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले तथा जीवनपर्यंत सीखने के अवसर प्राप्त हों।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई गैर-सरकारी संगठन (NGOs), शैक्षणिक संस्थान और समुदायिक संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं।

साक्षरता दिवस का महत्व:

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह दिन हमें निरक्षरता के खिलाफ संघर्ष और शिक्षा के प्रसार का संकल्प दोहराने का अवसर देता है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षा केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक प्रगति का आधार है।
यह अवसर है कि हम उन क्षेत्रों की पहचान करें जहाँ अब भी शिक्षा की किरण नहीं पहुँची है और मिलकर प्रयास करें कि हर व्यक्ति साक्षर बने।

1. 21वीं सदी के परिप्रेक्ष्य में साक्षरता की बदलती परिभाषा:

साक्षरता का परंपरागत अर्थ था – पढ़ना, लिखना और गिनना आना। लेकिन आज इसका अर्थ कहीं अधिक व्यापक हो गया है।
पारंपरिक साक्षरता – केवल अक्षर ज्ञान।
कार्यात्मक साक्षरता – दैनिक जीवन से जुड़ी जानकारी (पत्र पढ़ना, बिल समझना, गणना करना)।
डिजिटल साक्षरता – इंटरनेट, मोबाइल, कंप्यूटर और तकनीक का उपयोग।
सामाजिक साक्षरता – नागरिक अधिकारों, कर्तव्यों और सामाजिक न्याय की समझ।
आर्थिक साक्षरता – वित्तीय प्रबंधन, उद्यमिता और रोजगार के अवसरों की पहचान।
21वीं सदी की साक्षरता व्यक्ति को केवल पढ़ने-लिखने तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे सक्रिय नागरिक, सक्षम श्रमिक और न्यायप्रिय इंसान बनाने की दिशा में कार्य करती है।

2. साक्षरता और सामाजिक न्याय का अंतर्संबंध:

सामाजिक न्याय का अर्थ है—समाज में समान अवसर, अधिकार और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण। यदि समाज में शिक्षा और साक्षरता की कमी है, तो असमानता गहराती है।
जातिगत भेदभाव: शिक्षा से वंचित वर्ग अधिक शोषण का शिकार होता है।
लैंगिक असमानता: लड़कियों की अशिक्षा परिवार और समाज दोनों को पिछड़ा बनाती है।
आर्थिक विषमता: रोजगारोन्मुखी शिक्षा की कमी गरीबों को गरीबी से बाहर आने का अवसर नहीं देती।
इसलिए कहा जाता है कि साक्षरता सामाजिक न्याय का आधार है। जहाँ शिक्षा होगी, वहीं अधिकारों के प्रति जागरूकता होगी और शोषण के विरुद्ध आवाज उठेगी।

3. जीवन कौशल (Life Skills) और साक्षरता का संबंध:

21वीं सदी में सफलता का पैमाना केवल डिग्री नहीं, बल्कि जीवन कौशल भी है।

मुख्य जीवन कौशल:
1. संचार कौशल – अभिव्यक्ति और संवाद की क्षमता।
2. समीक्षात्मक चिंतन – सही-गलत का मूल्यांकन।
3. समस्या समाधान – कठिन परिस्थितियों से निपटने की योग्यता।
4. नेतृत्व एवं टीम वर्क – सामूहिक प्रयासों में नेतृत्व करना।
5. अनुकूलनशीलता – बदलते परिवेश में खुद को ढालना।
6. डिजिटल दक्षता – तकनीक के साथ काम करने की क्षमता।
यदि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित है तो वह अधूरी है। जीवन कौशल को शिक्षा से जोड़कर ही व्यक्ति को सक्षम नागरिक बनाया जा सकता है।

4. रोजगारोन्मुखी शिक्षा की आवश्यकता:

भारत में लाखों युवा स्नातक बन रहे हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश बेरोजगार हैं। कारण यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली रोजगारोन्मुखी नहीं है।

समस्या: सैद्धांतिक ज्ञान अधिक, व्यावहारिक ज्ञान और कौशल कम।
परिणाम: डिग्रीधारी बेरोजगार।

उपाय:
व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (Vocational Training)
उद्यमिता (Entrepreneurship) को बढ़ावा
उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच तालमेल
डिजिटल शिक्षा और तकनीकी दक्षता का प्रसार
रोजगारोन्मुखी शिक्षा ही वह साधन है जो साक्षरता को आर्थिक सशक्तिकरण से जोड़ सकती है।

5. समतामूलक समाज की अनिवार्यता:

साक्षरता और शिक्षा का अंतिम लक्ष्य केवल व्यक्तिगत प्रगति नहीं, बल्कि समाज की समानता और न्याय है।
जाति व्यवस्था का विघटन: शिक्षा ही वह हथियार है जो जातिगत असमानता को तोड़ सकती है।
लैंगिक समानता: जब बेटा-बेटी दोनों समान रूप से पढ़ेंगे तो परिवार और समाज दोनों मजबूत होंगे।
आर्थिक समानता: रोजगारोन्मुखी शिक्षा से गरीब और अमीर के बीच की खाई घटेगी।
सामाजिक समरसता: साक्षरता से आपसी भाईचारा और लोकतांत्रिक चेतना का विकास होगा।
एक समतामूलक समाज तभी संभव है जब शिक्षा सबके लिए समान रूप से उपलब्ध और सुलभ हो।

6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में साक्षरता:

संयुक्त राष्ट्र (UNESCO) के अनुसार साक्षरता सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने का मुख्य साधन है।
SDG 4: सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा।
SDG 5: लैंगिक समानता।
SDG 8: रोजगार और आर्थिक विकास।
SDG 10: असमानता में कमी।
भारत को इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपनी शिक्षा नीतियों में साक्षरता, कौशल और सामाजिक न्याय को एकीकृत करना होगा।

7. भारत की शिक्षा नीति और साक्षरता:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) ने इस दिशा में कई पहलें की हैं:
बहुविषयक शिक्षा प्रणाली
कौशल आधारित पाठ्यक्रम
डिजिटल शिक्षा का विस्तार
बाल्यावस्था से ही शिक्षा पर जोर
शिक्षा में समानता और समावेशन
यदि इसे सही ढंग से लागू किया जाए तो भारत 21वीं सदी की साक्षरता और सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ी छलांग लगा सकता है।

8. चुनौतियाँ:

ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी अधूरी साक्षरता।
डिजिटल खाई – शहर और गाँव के बीच तकनीकी अंतर।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी।
लैंगिक भेदभाव और बाल विवाह।
शिक्षा का निजीकरण और महंगी फीस, जिससे गरीब वंचित रह जाते हैं।

9. समाधान:

1. सर्वजन साक्षरता अभियान – सभी आयु वर्गों के लिए।
2. डिजिटल पहुँच – सस्ती इंटरनेट और डिवाइस सुविधा।
3. रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम – व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाना।
4. समान अवसर – लड़कियों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर विशेष ध्यान।
5. जनभागीदारी – शिक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी।

21वीं सदी में साक्षरता का अर्थ केवल अक्षरज्ञान नहीं, बल्कि जीवन कौशल, रोजगारोन्मुखी शिक्षा और सामाजिक न्याय है। साक्षरता तभी सार्थक होगी जब वह व्यक्ति को न केवल पढ़ने-लिखने योग्य बनाए, बल्कि उसे आजीविका कमाने, समाज में न्याय स्थापित करने और समानता को बढ़ावा देने योग्य भी बनाए। साक्षरता किसी राष्ट्र की रीढ़ होती है। निरक्षरता समाज में अज्ञान, अंधविश्वास और गरीबी को जन्म देती है, जबकि साक्षरता व्यक्ति को आत्मनिर्भर और समाज को प्रगतिशील बनाती है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें यही प्रेरणा देता है कि हम “सबको शिक्षा, सबको अवसर” के सिद्धांत को अपनाएँ और ऐसा समाज बनाएं जहाँ किसी भी व्यक्ति को केवल इसलिए पीछे न रहना पड़े क्योंकि वह पढ़ना-लिखना नहीं जानता हो।

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि शिक्षा केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन को जीने का तरीका सिखाती है। यदि समाज का हर व्यक्ति साक्षर होगा, तभी वास्तविक समानता, न्याय और विकास संभव है। भारत को यदि एक समतामूलक, न्यायपूर्ण और विकसित राष्ट्र बनना है तो हमें शिक्षा और साक्षरता को केवल नीति का हिस्सा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संस्कृति और जनआंदोलन बनाना होगा।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा

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