गोरक्षा का करने कार्य, निकल पड़े स्वयं शंकराचार्य
‘गौ माता राष्ट्र माता”गाय हमारी माता है, भारत भाग्य विधाता है’
कोई 6 माह पूर्व इन्हीं नारों गगन गुँजाता, गोवर्धन में गिरिराज जी की परिक्रमा करता एक दल दिल्ली की ओर जा रहा था। वे पैदल यात्री चाहे गांव से होकर गुजरते, चाहे राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलते, पर राहगीरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। कोई 70- 80 स्त्री- पुरुष और युवक रहे होंगे। प्रायः ग्रामीण परिवेश के अथवा कस्बे के जान पड़ रहे थे, पर उनके आगे- आगे भगवा वस्त्रधारी एक संन्यासी नंगे पैर तपते राजमार्ग पर चल रहे थे। लंबा कद, ललछौंहा वर्ण, कंठ में रुद्राक्ष की मालायें थीं, चंदन लगा मस्तक भगवा वस्त्र से ढंका था। गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा दिलाने के लिए यह पदयात्रा हो रही थी। अगुवाई कर रहे थे ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती।
सबने सोचा था कि इस पदयात्रा के साथ ही यह आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा। पर जिस आंदोलन के पुरोधा स्वयं शंकराचार्य हों, तिस पर भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, वह सहजता से कहां संपन्न होगा? अब सूचना आ रही है कि 22 सितंबर से शंकराचार्य जी ने गोरक्षा को लेकर पूरे देश का भ्रमण करना प्रारंभ कर दिया है। 36 दिनों में 36 राज्यों की राजधानियों में जाएंगे। कुल 24,663 किलोमीटर की सड़क मार्ग की यात्रा करेंगे। चलिए अच्छा है, देश को एक और आंदोलनकारी शंकराचार्य मिल गए हैं। जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति को अब एक संवैधानिक मार्ग मिलने जा रहा है।
परंतु कुछ प्रश्न है जिन पर इस गोरक्षा आंदोलन के समर्थकों को विचार करना चाहिए। गाय के कारण देश में सबसे ज्यादा समस्या किसानों के सामने खड़ी होती है। अन्नदाता जिस फसल को अत्यंत श्रम करके, धन लगाकर खड़ी करता है, उसे गोवंश पलक झपकते ही उजाड़ देता है। खड़ी फसलों को रौंद देना, गोवंशों का उसे खा जाना किसानों के लिए नासूर बन चुका है। समस्या इतनी बढ़ चुकी है कि आज किसान गाय का नाम तक सुनने को तैयार नहीं।
इसके लिए उत्तरदायी कौन है? उसके मूल में हमारी लोभी मानसिकता है। गोपालक दूध दुहाई लेते हैं और खाने के नाम पर गाय को घर से बाहर निकाल देते हैं। अब भूखी गाय खेत न खाये तो क्या करे?
स्वतंत्रता के समय देश में जो हजारों एकड़ गोचर भूमि छोड़ी गई थी, उसके अधिकांश हिस्से पर या तो हमने निर्माण कर डाला या खेती कर ली। अब ऐसे में गाय का क्या दोष? दोष तो गोपालकों का है जो दूध देना बंद करते ही गाय को बाहर छोड़ देते हैं। यह दोष हमारे समाज का है जो गाय को न रोटी खिलाना जानता है ना ही चारा देना।
गाय की इस दुर्दशा के कारण ही शंकराचार्य जी गोरक्षा आंदोलन कर रहे हैं। गाय को राष्ट्र माता का दर्जा मिल जाने से संभवतः उसे इस प्रकार बेसहारा छोड़ देने पर रोक लगे। जिस प्रकार राष्ट्रीय पक्षी घोषित होने से मोर के, राष्ट्रीय पशु घोषित होने के बाद से चीते के संरक्षण की कवायद शुरू हुई है, उसी प्रकार गाय के भी राष्ट्र माता घोषित हो जाने पर उसके बेसहारा घूमने की समस्या समाप्त होगी। बस इसी भावना को लेकर शंकराचार्य गोध्वज-स्थापना यात्रा प्रारंभ कर रहे हैं।
गाय की रक्षा समाज का दायित्व है। कितना दुखद है कि समाज को उसका दायित्व याद दिलाने के लिए सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु को आंदोलन करना पड़ रहा है। यह निश्चित ही अत्यंत शोचनीय विषय है। समाज के प्रबुद्ध वर्ग विशेष कर समाजशास्त्रियों को इस विषय में गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है क्योंकि जो समाज अपने दायित्व को भुला देता है उसका पतन दूर नहीं होता।