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कारगिल युद्ध से आक्रोशित मन से उपजे कुछ भाव..

प्रवीण त्रिपाठी

मन में धधक उठी है ज्वाला, 
 दुश्मन तूने क्या कर डाला। 
 रँगा रक्त में पुनः तिरंगा। 
 उद्वेलित सब को कर डाला। 

 गलत राह तूने है पकड़ी। 
 गर्दन व्यर्थ दम्भ में अकड़ी। 
 गर्दन वही मरोड़ेंगे हम। 
 धूल धूसरित होगी पगड़ी। 
 छलका आज सब्र का प्याला।1 
मन में धधक उठी है ज्वाला... 

 हिम्मत तुझ में तनिक नहीं है। 
 ताकत तुझमें अधिक नहीं है। 
 कायरता से हमले करता। 
 सही राह का पथिक नहीं है। 
 माँगों को सूनी कर डाला।2 
मन में धधक उठी है ज्वाला...
 
 बड़ी बड़ी डींगें तू भरता। 
 पर समक्ष आने से डरता। 
 हश्र पता क्या होगा तेरा। 
 आतंकी तब पैदा करता। 
 और नहीं तू बचने वाला।3 
मन में धधक उठी है ज्वाला...

 बच्चा बच्चा कसम खा रहा। 
 बदले को बेताब हो रहा। 
 शपथ ले रहीं माता-बहनें। 
 तेरा बचना कठिन हो रहा। 
 काल गाल में जाने वाला।4 
मन में धधक उठी है ज्वाला...

 चौतरफा हमला अब होगा। 
 आक्रमण अर्थतंत्र पर होगा। 
 लिये कटोरा घूमेगा तू। 
 सबसे जब प्रतिबंधित होगा। 
 नहीं मिलेगा एक निवाला।5 
मन में धधक उठी है ज्वाला...

 बैरी की करतूतें काली। 
 वार नहीं जाएगा खाली। 
 उनकी छाती छलनी होगी। 
 कर देंगे बंदूकें खाली। 
 मौत बनाये उन्हें निवाला।6 
 मन में धधक उठी है ज्वाला...

 जितने बम हैं पास तुम्हारे। 
 ज्यादा उससे पास हमारे। 
 थोड़ी हानि हमें भी होगी। 
 कोई युद्ध नहीं हम हारे। 
 ईश्वर अपना है रखवाला।7 
मन में धधक उठी है ज्वाला...

 फिर से तांडव होने वाला। 
 तभी बुझेगी मन की ज्वाला।

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