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‘यादें’ जज्बातों के रंग से रंगी ग़ज़लें

-स्व. रामकुमार आत्रेय

"देखनी है तो इसकी उमर देखें, गलतियां नहीं इसका हुनर देखें। दबे पैर सोये जज्बात जगाकर, सौरभ की यादों का असर देखें।।"

मात्र 16 साल की उम्रके पड़ाव पर साल 2005 में कक्षा ग्यारह में पढ़ते हुए डॉ सत्यवान सौरभ ने अपनी पहली पुस्तक ‘यादें’ लिखी थी। जो नई दिल्ली के प्रबोध प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। प्रख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर और रामकुमार आत्रेय की नज़र में सत्यवान सौरभ उस समय इतनी अल्पायु में गजल संग्रह के रचनाकार होने का गौरव प्राप्त करने वाले संभावित प्रथम रचनाकार रहें होंगे। अब 18 साल बाद ‘यादें’ का दूसरा संस्करण 2023 में आया है। प्रस्तुत लेख स्वर्गीय रामकुमार आत्रेय द्वारा लिखी गई ‘यादें’ की समीक्षा है जो साल 2005 में लिखी गई।

 

सत्यवान सौरभ एक ऐसी प्रतिभा का नाम है जिसके पांव पालने में दिखाई देने लगे हैं। यहां मैं पालने शब्द का उपयोग जानबूझकर कर रहा हूं। क्योंकि सौरभ अभी सिर्फ 16 वर्षों 3 माह के ही तो हैं। अभी वरिष्ठ विद्यालय की कक्षा 10 जमा 2 के छात्र हैं और गजलें कहने लगे हैं। सिर्फ कहते ही नहीं पत्र-पत्रिकाओं में ससम्मान प्रकाशित भी होते हैं। ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानी प्रतिभा की पहचान व्यक्ति के आरंभिक चरण से ही अपना प्रदर्शन करना शुरू कर देती है। प्रतिभावान व्यक्ति लम्बे समय तक किसी भी भीड़ से गुम नहीं रह सकता। उसमें छुपी उसकी प्रतिभा एक न एक दिन उसे शोहरत के पथ पर अग्रसर कर ही देती है। यह बात गाँव बड़वा के उभरते कवि, शायर सत्यवान ‘सौरभ’ पर बिल्कुल सटीक बैठती है। छात्रकाल से ही लेखन के क्षेत्र में रूचि रखने वाले इस अदने से कच्ची उम्र के शायर ने अपनी ग़ज़लनुमा कविताओं के माध्यम से ख्यालों-जज्बातों की दुनिया को किसी नई नवेली दुल्हन की तरह इस कदर सँवारा है कि ग़ज़लों में कहीं भी इनकी उम्र का आभास नहीं होता। यादें उनकी गजलों का पहला संकलन है। इस संकलन में अपनी बात में सौरभ गजल के प्रभाव के विषय में खुद कहते हैं-

 

न बहार, न आसमान न जमीन होती है शायरी,

जज्बातों के रंगों से रंगीन होती है शायरी।

कल्पनाओं से लबरेज कविता सी नहीं होती,

जिंदगी के आंगन में अहसासे जमीन होती है शायरी।।

 

ठीक कह रहे हैं सौरभ। यह पंक्तियां जज्बातों का एक नमूना है। जज्बात और तर्क का रिश्ता बहुत दूर का होता है। सौरभ आयु के ऐसे पड़ाव पर है जहां जज्बातों का उफनता हुआ समुद्र होता है। इस उफनते हुए समुद्र को वे गजल के सफीन के सारे पार करना चाहते हैं। उस सफीने को सजाये हुए है यादों की रंग बिरंगी झालरों से। यादों में सिर्फ मुहब्बत। उफ़ इतना दर्द! इतनी तड़प! गजल शब्द का अर्थ भी तो मुहब्बत की बात होता है। एक बात अवश्य है कि वह यादें सुखद नहीं है। हर स्थान पर टूटे दिल का इकतारा बजता हुआ सुनाई देता है-

 

सौरभ खवाबों से हकीकत की ओर आकर तो देख,

कहीं झूठ तेरी मोहब्बत का आशियाना तो नहीं।

रखना चाहते थे जो हम जलाकर जीवन भर,

वह प्यार का दीपक वो बुझाकर चल दिए।।

 

सौरभ के लिए जो सबसे प्रिय था वह खुशबू की तरह था। तभी तो उसे लगता है कि जैसे उसने गजल सिर्फ उसी को आधार बना कर लिख डाली हो-

एक-एक शब्द में समाई है तेरी ही खुशबू,

तुझ पर ही यह ग़ज़ल लिखी हो जैसे।

 

शायर गजल कह रहा और खत की बात बीच में न आए ऐसा हो ही नहीं सकता। सौरभ भी अपनी प्रियतमा को चुनौती देते हुए कहते हैं-

 

जला डालोगे मेरे खत तो क्या हुआ,

मन से मेरी तस्वीर न हटा पाओगे।

 

यादों के बीच से गुजरते हुए लगता है कि सौरभ इस आग के दरिया को तैर कर पार निकल आए हैं। बिना डूबे, बिना जले। लेकिन ऐसा संभव ही नहीं है। उनकी देह नहीं डूबी, डूबा है उनका दिल। उनकी देह नहीं जली, जला है उनका दिल। जो स्थूल आंखों से दिखाई देना संभव नहीं। तभी तो वह किसी जुनूनी की तरह घोषणा करते हैं-

 

दिल नहीं पत्थर है वह हर दिल,

जो किसी पे मरता नहीं है।

 

यह मोहब्बत की विरासत है जो उनकी हर गजल में छिपी बैठी है। मोहब्बत और गजल का जुनून सौरभ के सिर पर इस कदर तक सवार है कि उसे अपने ख्वाब भी उन्हीं से सजे दिखाई देते हैं-

 

सो जाता हूं जब अतीत में गोते लगाकर रातों को,

चुपके-चुपके आकर पास मेरे ख्वाबों को सजाती है।

 

एक बात यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि जज्बात जब अपने उफान पर होते हैं तब बहर तथा पैमाने जैसे कायदे-कानून की सीमा में मुश्किल से ही बंध पाते हैं। इसलिए पाठकों को ग़ज़ल छंद की गहराई में न जाकर जज्बातों की रोशनी में इन रचनाओं का आनंद उठाना चाहिए। शायद सौरभ को पहले से ही ऐसा संदेह रहा है इसलिए वह कहते हैं-

 

समझ न पाए वो मेरे गीत गजलों की बानगी,

दिल का हर भाव शायरी के जरिए बतलाता रहा मैं।

 

यह बड़े ही हर्ष का विषय है की सत्यवान सौरभ ने अपने प्रथम गजल संग्रह ‘यादें’ के माध्यम से युवाओं के दिलों के तारों को छेड़ने का प्रयास किया है। जीवन की अनुभूति को सरल भाषा शैली में लिखकर श्री सौरभ ने अपने होने की गजलकारों में दस्तक दे दी है। उम्र, तजुर्बे जैसी तमाम धारणाओं को प्रस्तुत गजल संग्रह आईना दिखाता साबित हो रहा है। सौरभ की दीवानगी इसका जुनून एक-एक ग़ज़ल में सिर चढ़कर बोलता प्रतीत होता है। हालांकि यह सौरभ का साहित्य जगत में प्रथम पदार्पण है लेकिन निष्ठा और मेहनत के साथ यदि सौरभ प्रयासरत रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सत्यवान सौरभ किसी परिचय का मोहताज़ नहीं होगा। ख़ूने जिगर से लिखी तमाम ग़ज़लें एक ओर जहाँ सत्यवान ‘सौरभ’ कि पीठ थपथपाती है वहीं दूसरी ओर अन्य नवोदित कलमकारों को भी लेखन के क्षेत्र में उत्साहित करती है। सत्यवान ‘सौरभ’ के प्रथम ग़ज़ल संग्रह ‘यादें’ के लिए मैं इन्हें ढेरों शुभकामनाएं देता हूँ औऱ इसके काव्यमयी उज्ज्वल भविष्य की कामना करने के साथ-साथ यही कहूंगा-

 

"देखनी है तो इसकी उमर देखें

गलतियां नहीं इसका हुनर देखें।

दबे पैर सोये जज्बात जगाकर,

सौरभ की यादों का असर देखें।।"

 

अच्छा होता है यदि प्रकाशक प्रूफ की मामूली गलतियों की तरफ भी ध्यान देते तो सोने पर सुहागा होता। आशा है पाठकों को यादें पसंद आएगी।

 

- स्व. रामकुमार आत्रेय

108, आज़ाद नगर, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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