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श्रीमद्भगवद्गीता प्रवचन का हुआ पूर्ण विश्राम

डीके श्रीवास्तव

आगरा। 'जहां भगवान श्री कृष्ण है, जहां गांडीवधारी महात्मा अर्जुन है, वहां श्री, विजय एवं अचल नीति है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को भगवान के चरणों में अर्पित कर दे। श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य को उसके स्वाभाविक कर्म करने का आदेश देती है। इससे वह कर्म फल बंधन में नहीं बंधता।'
 गीता प्रवचन श्रृंखला को पूर्ण विश्राम देते हुए कथावाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने उक्त प्रवचन कहे। बाग फरजाना में इंजीनियर अजय किशोर द्वारा गीता प्रवचन श्रृंखला का आयोजन किया गया था। विगत एक माह से चल रही इस प्रवचन श्रंखला का आज मंगलवार प्रातः पूर्ण विश्राम हुआ।
 प्रवचनकर्ता डॉ दीपिका उपाध्याय ने गीता के अठारहवें अध्याय की चर्चा करते हुए कहा कि पंच तत्वों से बने मनुष्य को परमात्मा के अधीन ही रहना चाहिए क्योंकि अहंकार के वशीभूत किए गए उसके कार्य तीन कोटि में आते हैं- सात्विक, राजसी एवं तामसी। जो मनुष्य अपने कर्तव्यों को ईश्वर को समर्पित करके शास्त्रों के अनुरूप चलता है, वह सात्विक कहलाता है। जो मनुष्य अत्यंत श्रम कर फल पाने के आकांक्षा से कभी शास्त्रानुकूल तो कभी मनमाना कार्य करता है वह राजसी प्रवृत्ति का है तथा जो मनुष्य आलसी, घमंडी, शास्त्रानुकूल आचरण न करने वाला तथा प्रत्येक कार्य को लंबे समय तक टालने वाला होता है, वह तामसी व्यक्ति कहलाता है। ऐसे मनुष्य स्वयं भी दुख पाते हैं, अपना परलोक भी बिगाड़ते हैं और अपने परिवेश के लोगों को भी दुख देते हैं। इसलिए मनुष्य को सदैव सात्विक बुद्धि से कार्य करना चाहिए जिससे वह जन्म मरण के चक्र से छूटकर परमात्मा में विलीन हो जाए। श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य की समस्त चिताओं, तनाव, हताशा एवं जिज्ञासाओं का समुचित समाधान देती हैं। मनुष्य को इसका अध्ययन, श्रवण, मनन आदि करना चाहिए।
 भगवान के नाम संकीर्तन तथा भोग वितरण के साथ प्रवचन का पूर्ण विश्राम हुआ।

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