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भारतीय संत मत: दर्शन एवं सामाजिक उपयोगिता’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है

आगरा

आगरा।  दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, दयालबाग़ आगरा और भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 12-13 अप्रैल 2024 को ‘भारतीय संत मत: दर्शन एवं सामाजिक उपयोगिता’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। यह संगोष्ठी संस्थान के स्कूल ऑफ़ एजुकेशन के सभागार में आयोजित की जाएगी। दयालबाग़ के आध्यात्मिक एवं शैक्षणिक वातावरण में भारतीय संत मत के दार्शनिक एवं सामाजिक पक्षों पर विचार विमर्श करना आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही शुभकारी होगा। संत साहित्य का फ़लक अखिल भारतीय है। उत्तर से दक्षिण तक एवं पूरब से पश्चिम तक संतों की वाणी ने भारतीय समाज में फैली कुरीति, भेदभाव, सांप्रदायिक दुर्भावना, धार्मिक कट्टरता आदि के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया एवं हजारों साल से हाशिये पर पड़ी जातियों को जीने का कारण दे दिया। संत साहित्य का इतिहास ही प्रतिरोध का इतिहास रहा है। नाथ साहित्य से ही निर्गुण संत परंपरा ने समाज में फैली कुरीतियों, अंध-विश्वास, धार्मिक श्रेष्ठता के झगड़े, सामंती व्यवस्था का दिखावा आदि का स्पष्ट एवं मुखर विरोध किया। कबीर एवं उत्तरवर्ती संतों ने इस परंपरा को और आगे बढ़ाया तथा जनता की भाषा में मौखिक परंपरा से जनांदोलन खड़ा कर दिया। कबीर, रैदास, दादू, रज्जब आदि अनेक संत कवियों ने अपनी वाणी से जनता को उद्वेलित कर दिया। उन्होंने जाति-पांति के भेदभाव अथवा वर्णाश्रम को नकार दिया एवं ईश्वर पर ईजारा करने वाली जातियों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने उनके हर तरह के वर्चस्व को नकार दिया, यहाँ तक कि जाति-पाति के भेद को भी नकार दिया। संतो ने कविता को श्रम की संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया। संतों के इसी सामाजिक आंदोलन अथवा आध्यात्मिक संतुष्टि के विभिन्न स्वरूपों पर चर्चा करने के लिए देशभर के विद्वान इस संगोष्ठी में शिरकत करेंगे। देश के अनेक हिस्सों से प्रतिभागी इस संगोष्ठी में अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। केरल, महाराष्ट्र, बंगाल, राजस्थान, बिहार एवं छत्तीसगढ़ से विद्वान एवं विचारक इस संगोष्ठी में शामिल होंगे। दो दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय आयोजन में संत साहित्य के अनेक पहलुओं पर विचार विमर्श किया जाएगा। संगोष्ठी का उद्घाटन केरल के प्रो ए अरविंदाक्षन एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो सुनील बाबुराव कुलकर्णी करेंगे। इस अवसर पर संत साहित्य के मर्मज्ञ और काशी हिंदू विश्वविद्यालय  वाराणसी के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो सदानंद शाही विशिष्ट अतिथि होंगे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रो संतोष भदौरिया, जामिया से प्रो दुर्गा प्रसाद गुप्त, लखनऊ केंद्रीय विश्वविद्यालय से प्रो सर्वेश सिंह आदि कई विद्वान इस संगोष्ठी में अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। दिनांक १२ अप्रैल को सायं ५.०० बजे से सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर आगरा कॉलेज में संगीत विभाग की डॉ रीता देव अपना शास्त्रीय गायन प्रस्तुत करेंगी। रीता देव बनारस घराने की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं, इन्होंने ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी से संगीत की विधिवत शिक्षा ली है। वे इस अवसर पर ठुमरी, दादरा, चैती एवं होरी के गीत प्रस्तुत करेंगी। संगोष्ठी के संयोजक डॉ बृजराज सिंह ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य और समाज में संतों की वाणियाँ आज भी उतना ही महत्व रखती हैं, जितना की पाँच सौ साल पहले। दयालबाग़ में संत साहित्य और उसके दर्शन पर संगोष्ठी आयोजित करके विचार विमर्श करना इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि संतों ने जिस समाज का स्वप्न देखा था, कबीर और रैदास ने जिस बेगमपुरा की कल्पना की थी उसे दयालबाग़ ने संभव कर दिखाया है। दयालबाग़ संतों के विचार और आध्यात्मिक सोच का व्यावहारिक रूप का मॉडल प्रस्तुत करता है, इसलिए यह संगोष्ठी दयालबाग़ परिसर में आयोजित की जा रही है। संत साहित्य में वर्णित प्रेम, जीवन मूल्य, मानव अधिकार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर विद्वान अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा संत साहित्य के आध्यात्मिक और दार्शनिक मान्यताओं पर भी बराबर विचार किया जाएगा। इस अवसर पर अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष प्रो जे के वर्मा, कला संकाय की डीन प्रो संगीता सैनी, हिन्दी विभाग की डॉ रंजना पांडेय, राजनीति विज्ञान विभाग की डॉ मोनिका तिवारी, डॉ कविता रायजादा एवं आयोजन से जुड़े अन्य अध्यापक उपस्थित थे।

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