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श्रवण कीर्तन मनन से दृढ़ होती है शिव भक्ति

डॉ. दीपिका उपाध्याय

आगरा। दिनांक 30 जुलाई 2022 को श्रावण मास के शुभ अवसर पर नगला डीम के लोधेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में श्री शिव महापुराण कथा प्रारंभ हुई। सुप्रसिद्ध भागवत कीर्तिकार डॉ. दीपिका उपाध्याय ने कथा का शुभारंभ किया। कलश स्थापना, देव पूजन तथा श्री शिव महापुराण के पूजन के साथ कथा प्रारंभ हुई। इस पुण्य अवसर पर भागवत कीर्ति कार डॉ. दीपिका उपाध्याय ने बताया कि सावन मास की रिमझिम फुहारों के माध्यम से प्रकृति भी स्वयं भगवान शिव का अभिषेक करती है। चातुर्मास में भगवान विष्णु के योग निद्रा में चले जाने के कारण सृष्टि के पालन का दायित्व भगवान शिव संभालते हैं। ऐसे में चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की भक्ति विशेष फलदाई होती है। श्री शिव महापुराण का महत्त्व सुनाते हुए डॉ. दीपिका उपाध्याय ने बताया कि पतित से पतित व्यक्ति भी इस के श्रवण से पवित्र हो जाता है। चंचुला जैसी व्यभिचारिणी स्त्री और देवराज जैसा पतित ब्राह्मण भी श्री शिव महापुराण के श्रवण से मोक्ष को प्राप्त हो गया।

 भगवान शिव की भक्ति में श्रवण, कीर्तन और मनन का विशेष महत्व है। भगवान शिव के सुंदर नामों का बार-बार कीर्तन करना, भगवान शिव की लीलाओं का सतत चिंतन करना ही मनन है। श्रवण, कीर्तन, मनन करने वाले भक्तों को कभी यमदूत नहीं सताते। भगवान शिव का भक्त धरती पर सुख भोग कर मनुष्य साक्षात शिवलोक का दर्शन करता है।

 शिवलिंग की कथा सुनाते हुए डॉ. दीपिका उपाध्याय ने बताया कि ब्रह्मा जी और श्री हरि के बीच विवाद हो गया कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है, तो भगवान शिव ज्योतिर्मय लिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों को उनकी सीमा का अनुभव कर आकर उन्होंने दोनों को शिव पंचाक्षरी का उपदेश दिया। इस प्रकार भगवान शिव सृष्टि के प्रथम गुरु ठहरते हैं। वह दिन जब शिवलिंग प्रथम बार धरती पर अवतरित हुआ उसे शिवरात्रि के नाम से मनाया जाता है।

 भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बड़ा ही शक्तिशाली है। जो किसी योग्य एवं सक्षम गुरु से पंचाक्षरी मंत्र प्राप्त करता है तथा उसे श्रद्धा भाव से जपता है वह शिवलोक का वास प्राप्त करता है। शिव मंत्र को जपने की पूर्ण सफलता तभी है जब रुद्राक्ष एवं भस्म धारण किया है। 

 इस अवसर पर मंच संचालन की व्यवस्था डा. राहुल शर्मा ने संभाली एवं प्रीतम सिंह, होतीलाल, गोरेलाल, अशोक, राजेश राजपूत, वीरेंद्र राजपूत, मुरारीलाल, जितेंद्र, हरिशंकर, मुन्नालाल, राजू आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

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