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जगदंबे का सप्तम स्वरूप

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

नवदुर्गा के सभी स्वरूपों की क्रमशः आराधना आध्यात्मिक ऊर्जा का संवर्धन करती है। साधक का अंतर्मन आलोकित होता है। सप्तम स्वरूप में देवी कालरात्रि की उपासना होती है। इनको काली का रूप भी माना जाता है। इनकी उत्पत्ति देवी पार्वती से हुई है-
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
देवी भागवत पुराण के अनुसार मां कालरात्रि  शुभ फल प्रदान करती है। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। इनकी श्‍वास से अग्नि निकलती है। मां के बाल बिखरे हुए हैं इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति चमकती है। इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की भांति हैं। जिनसे विद्युत की भांति किरणें निकलती रहती हैं। चार हाथ हैं। वज खडग्,लौह अस्त्र धारण करती है। दो हांथ अभय व वरदान मुद्रा में है। उनका वाहन वाहन गर्दभ है। देवी का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है…
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा,वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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