आयुर्वेद का चमत्कार नेत्र तर्पण/अक्षी तर्पण
लखनऊ। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली में प्रतिदिन हजारों रोगियों को आयुर्वेद पद्धति के द्वारा विभिन्न असाध्य रोगों से निजात पाने का मार्ग संस्था की डायरेक्टर डॉक्टर तनुजा मनोज नेसरी के नेतृत्व में कुशल डॉक्टरों की टीम द्वारा दिखाया जाता है। इसी क्रम में अपना अनुभव आपसे साझा करती हूं। कई गंभीर बीमारियों का इलाज और कोरोना के बहुत से साइड इफेक्ट के परामर्श हेतु मेरी मुलाकात डॉक्टर अनंत रमन शर्मा से हुई । सिर में दर्द और आंखों की समस्या के लिए उन्होंने मुझे आयुर्वेद की एक नई चिकित्सा पद्धति से परिचित कराया “नेत्र तर्पण”।
आज की भाग दौड़ भरी तकनीकी युक्त जिंदगी में प्रदूषण, डाइट में पोषण की कमी और बढ़ता स्क्रीन टाइम, ये तीनों मिलकर हम सबकी आंखों को कई तरह के नुकसान पहुंचा रही हैं। डॉक्टर अनंत रमन ने बताया नेत्र तर्पण विशेष रूप से आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और रोगों से बचाव के लिए अपनाया जाता है। आंखों में रेटिना संबंधी समस्या, कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम, मस्कुलर डिजेनेरेशन, आंखों के इन्फेक्शन, ड्राय आई सिंड्रोम, ड्रूपी आईलिड आदि कई रोगों में इस थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। आंखों की समस्याओं को दूर करने में आयुर्वेद में कई उपचार व थेरेपीज का जिक्र है पर बहुत ही आसानी से सर्वशुलभ नेत्र चिकित्सा की है एक विधि है। उनके द्वारा भेजे जाने पर मैं अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली में शालाक्य विभाग में कार्यरत सीनियर टेक्नीशियन उदित नारायण आजाद से मिली। उदित नारायण ने इस बारे में बताया कि शालाक्य तंत्र आयुर्वेद की वह शाखा है जो हंसली के ऊपर होने वाले रोगों के निदान और प्रबंधन से संबंधित है। जैसे कि आंख, कान, नाक, गला, सिर और गर्दन के रोगइत्यादि का निदान करते हैं। क्योंकि मुझे यह चिकित्सा पहली बार करनी थी तो इसके बारे में उन्होंने बहुत ही सरलता से पूरी विधि समझाई।नेत्र तर्पण थेरेपी में आंखों को एक तरल पदार्थ से तृप्त करने का काम करते हैं पहली बार सुनने पर थोड़ा अजीब लगता है क्योंकि आंखें बहुत ही संवेदनशील होती हैं। परंतु साधारण शब्दों में अनुभवी टेक्नीशियन उदित ने इस विधि को समझा दिया उन्होंने बताया नेत्र तर्पण मूलतः दो संस्कृत शब्दों से बना है: “नेत्र” का अर्थ है आंखें और “तर्पण” का अर्थ है पुनर्जलीकरण। इस आयुर्वेदिक उपचार में घी का उपयोग किया जाता है, जो कि शुद्ध मक्खन है। घी थकी हुई, तनावग्रस्त, निर्जलित आंखों और अव्यवस्थित दृष्टि के लिए एक उपचारक है। घी में कई औषधियों को मिलाया जाता है जो रोग की प्रकृति के अनुसार अलग-अलग होती हैं। इस औषधीय घी में कई ऐसे एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो थकी हुई व तनावग्रस्त आंखों की अवस्था से निजात दिलाने में सहायक होते हैं।नेत्र तर्पण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आंखों के चारों ओर पाउडर माशा पेस्ट से या विशेष प्रकार के आटे से बने गोलाकार फ्रेम लगाए जाते हैं। फिर गुनगुना औषधीय “घी” (दोष के अनुसार) फ्रेम में डाला जाता है।माशा पेस्ट के फ्रेम के भीतर बंद आँखों पर डाला जाता है। रोगी को बीच-बीच में अपनी आँखें खोलने और बंद करने का निर्देश दिया जाता है ताकि द्रवित घृत के औषधीय गुणों को सोखने की अनुमति मिल सके। बीमारी की गंभीरता के आधार पर यह तय होता है कि घृत को आँखों पर कितनी देर तक रहना चाहिए।नेत्र तर्पण आँखों को ठंडा, चिकना और पुनर्जीवित करता है।नेत्र तर्पण मोतियाबिंद, अनिद्रा, ग्लूकोमा और नेत्रश्लेष्मलाशोथ के प्रारंभिक लक्षणों को ठीक करने में भी मदद करता है।
इस चिकित्सा पद्धति के बारे में पूर्ण रूप से जानकर लगातार होने वाले सर में दर्द आंखों की थकान और आंखों के दर्द के निदान हेतु चिकित्सा की इस पद्धति से अपना उपचार करवाया । ध्यान रखिएगा यह उपचार किसी प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक या टेक्नीशियन द्वारा किया जाना चाहिए।जिसमें लखनऊ के निवासी उदित नारायण आज़ाद जो आयुर्वेदिक संस्थान नई दिल्ली में टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत हैं और कई वर्षों से काम करने का अनुभव और हाथों में अनुभव का जादू के साथ बहुत ही कुशलतापूर्वक नेत्र तर्पण को विधि पूर्वक समझाते हुए घृत के माध्यम से मेरी आंखों का इलाज किया। सबसे पहले नियत समय पर अपने निर्धारित बेड पर रोगी के आते ही एक विशेष प्रकार के पेस्ट से आंखों के चारों तरफ गोल घेरा बना दिया जाता है ताकि घी एक बूंद भी बाहर ना निकल सके इसके बाद गुनगुना घी इस आटे में दीवाल के अंदर डाला जाता है और बड़ी ही शांतिपूर्ण और आराम की स्थिति शरीर को ढीला छोड़ दिया जाता है पलकों को पचास, सौ और इसी प्रकार प्रतिदिन बढ़ते हुए क्रम में खोलने और बंद करने का अभ्यास कराया जाता है।औषधीय मिश्रण और घृत का प्रकार भी वात, पित्त और कफ के अनुसार अलग-अलग होता है। इसके बाद चेहरे और आंखों की मसाज दी जाती है एक विशेष प्रकार का लिक्विड नाक में डाला जाता है जो क्रमशः डाले जाने वाली बूंदों के बढ़ते हुए क्रम में आपकी सभी एलर्जी की समस्याओं का निदान कर देता है। पांच से सात दिनों के इस क्रम को करने के बाद बहुत ठंडी हवा और ठंडे पानी से बचाव किया जाता है। इसके बाद लगातार बढ़ने वाले आंखों के नंबर से , सिर के दर्द से और आंखों के विभिन्न प्रकार के रोगों से आपको निजात मिल जाती है हल्का-फुल्का चश्मा का नंबर तो उतर ही जाता है मायोपिया और पास के नंबर भी कांस्टेंट हो जाते हैं। सुनकर थोड़ा अजीब लगता है पर जब यह चिकित्सा उदित नारायण व टीम के कुशल नेतृत्व में संपन्न हुई तो लगभग मुझे भी उन सभी बीमारियों से निजात मिल गई। कोरोना के बाद से स्वाद और खुशबू की लगातार सर में दर्द और अन्य समस्याएं जो साइड इफेक्ट के रूप में आ गई थी उनसे काफी हद तक निजात मिल गई। आपके साथ भी अगर इस प्रकार की समस्या है तो आयुर्वेद कि इस विशेष शाखा और विशेष पद्धति का लाभ अखिल भारतीय आयुर्वैदिक संस्थान नई दिल्ली में जाकर के प्राप्त कर सकते हैं।