भगवान श्री कृष्ण जन्मोत्सव (जनमाष्टमी)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्..
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे…
योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं।
आदौ देवकिदेवगर्भजननं गोपीगृहे वर्धनं
मायापूतनजीवितापहरणं गोवर्धनोद्धारणम्।
कंसच्छेदन कौरवादिहननं कुन्तीसुतां पालनं
एतद्भागवतं पुराणकथितं श्रीकृष्ण लीलामृतम्॥
आदि-मध्य-अंत रहित सर्वेश्वर श्रीकृष्ण ने रानी देवकी के गर्भ से जन्म लिया, ब्रज की गोपियों के घर में इनका वर्धन, पालन-पोषण हुआ, गोपियों के संग बढ़े हुये, मायावी पूतना के प्राणों का हरण किया और गोवर्धनगिरि को उठाया। मामा कंस का वध करने वाला, कौरव सेना के संहारक, कुन्ती के अर्जुनादि पांचों पुत्रों की रक्षा और पालन करने वाले श्रीकृष्ण का ऐसा लीलामृत श्रीमद्भागवत पुराण में कहा गया है।
जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव है, जो हिंदू सनातन धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो यह आज शुभ दिन है।
जन्माष्टमी मनाने की परंपरा और तरीके क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधताओं के अनुसार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य तरीके हैं जिनसे यह त्योहार मनाया जाता है।
बहुत से लोग इस दिन व्रत रखते हैं। व्रत का अर्थ है कि पूरे दिन कुछ नहीं खाया जाता है, और कुछ लोग फलाहार भी ले सकते हैं। मध्यरात्रि के समय, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ माना जाता है, विशेष पूजा की जाती है।
भक्त मंदिरों में जाते हैं, खासकर मथुरा और वृंदावन जैसे स्थानों पर, जो कृष्ण के साथ जुड़े हुए हैं। मंदिरों में विशेष आरतियाँ और भजन-कीर्तन होते है।
महाराष्ट्र में, और अब कई अन्य स्थानों पर भी, दही हांडी का खेल खेला जाता है। यह खेल भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की एक लीला को दर्शाता है जहाँ वे मक्खन चुराते थे। एक मिट्टी का बर्तन (हांडी) जिसमें दही, मक्खन, और पैसे होते हैं, ऊंचाई पर लटकाया जाता है, और युवा पुरुष उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में एक झांकी प्रमुखता दे दिखाई जाती है। बालकृष्ण “कान्हा” द्वारा माखन चोरी और अंततः माखन की “मटकी” को तोड़ दिया जाना।
यह कोई बाल – बच्चों का खेल मात्र नहीं है, बच्चों के साथ – साथ साधकों और मुमुक्षुओं के लिए भी इसमें सार संदेश छिपा हुआ है।
यह मटकी या “घट” यह शरीर है। इस शरीर से इंद्रिय जनित कर्मफल के सभी “भोग ऐश्वर्य” के रूप में अर्जित, उपार्जित भौतिक जगत की मूल्यवान वस्तु (माखन) रखी गई है। इस वस्तु के “भोग” के उपरान्त या ऐसा कहें कि बालपन में “बाल”, गृहस्थ जीवन में “त्यागमय भोग” तेनत्यक्तेनभुञ्जीथा के आदर्श अपनाने के बाद वाणप्रस्थ आश्रम में साधक, मुमुक्षुत्व की संकल्पना के बाद इस पंचभूतात्मक घट या देह (काया) का कोई महत्व रह भी नहीं जाता। अस्तु इसे अपने जीवनकाल में ही फोड़ देना, इससे सर्वथा निर्लिप्त हो जाना चाहिए।
बालकों के लिए जहां यह कौतुक, क्रीड़ा, खेल है वहीं साधकों के लिए एक गंभीर शिक्षा। इस प्रकार बाल गोपाल के लिए जहां यह दृश्य “कान्हा” की बाल क्रीड़ा है वहीं साधकों (अर्जुन जैसे साधकों) के लिए “श्रीकृष्ण” रूप में गीता का सारगर्भित उपदेश, वेदान्त ज्ञान भी। यदि हम आज भी इसे मात्र कान्हा की समझ रहे हैं तो बालपन स्वस्थ में हैं, चाहे उम्र हमारी संख्या रूप में कितनी भी बड़ी क्यों न हो गई हो?
यदि हमारी कायिक उम्र प्रौढ़ हो गई है तो हमें भी बालपन, भौतिक ऐषणाओं से निवृत्त होकर, उसे भौतिक संपदा मानते हुए उसके स्वाद, माधुर्य और भौतिक संग्रह का मोह त्यागकर आध्यात्मिक तत्व की प्राप्ति, स्वरूप दर्शन, आत्म दर्शन की खोज में लग जाना चाहिए, संकल्पित होकर, मुमुक्षु बनकर। आखिर कबतक हम बालपन, बाल बुद्धि, बाल विवेक के जीवन यापन करते रहेंगे।
इस प्रकार माखन चोरी और मटकी (घट) को फोड़ने का दृश्य, झांकी हमे कई शिक्षा दे जाता है। यदि इस प्रसंग पर और भी गंभीरता पूर्वक विचार किया जाय तो इससे भी सूक्ष्म अर्थ, निहितार्थ निकलेंगे। जिसकी जितनी गहरी पैठ की क्षमता होगी उसके हाथ उतना ही बहुमूल्य मोती, रत्न, अमूल्य तत्व की प्राप्ति होगी।
कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर मथुरा, वृंदावन, और पूर्वोत्तर भारत में, रास लीला का आयोजन किया जाता है, जो कृष्ण और गोपियों के नृत्य का प्रतिनिधित्व करता है।
कृष्ण भजन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भक्त “हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे” जैसे मंत्रों का जाप करते हैं।
आज के दिन विशेष भोजन तैयार किया जाता है, माखन,मिश्री, पेड़ा, मेवा, मिष्ठान आदि जिसे भोग के रूप में भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
कृष्ण के जन्म और उनके बचपन की कथाएं सुनाई जाती हैं, जो भक्तों को उनके जीवन और शिक्षाओं की याद दिलाती हैं।
जन्माष्टमी केवल एक उत्सव नहीं बल्कि भक्ति, संस्कृति, और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यह त्योहार भगवान कृष्ण के जीवन और उनके उपदेशों को याद करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का अवसर प्रदान करता है।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।’
अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण किया जाता है।
ब्रज का प्रचलित एक लोकगीत –
अनोखौ जायौ ललना मैं वेदन में सुनि आई।
मैं वेदन में सुनि आई, पुरानन में सुनि आई।
मथुरा में याने जनम लियो है, गोकुल में झूल्यौ पलना।
ले वसुदेव चले गोकुल कूँ याके चरन परस गई यमुना।
काहे कौ याकौ बन्यौ है पालनौ, काहे के लागे फुन्दना।
रत्नजटित कौ बन्यौ है पालनौ, रेशम के लागे फुन्दना।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, चिरजीवौ यह ललना।।
आज का यह पर्व संसार के समस्त पर्वों का अधिराज है। इसलिए आज के आनन्द की जय हो..।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः…
प्रोफेसर दिग्विजय कुमार शर्मा डी लिट्
शिक्षाविद, वरिष्ठ साहित्यकार,
पत्रकार, स्तम्भ लेखक
आगरा