फातिमा शेख एक महान नारीवादी, समाज सेविका और पहली मुस्लिम शिक्षिका के साथ-साथ दलितों-पिछड़ों और महिलाओं की उद्धारक
डॉ प्रमोद कुमार
भारत की एक ऐसी महिला जिसने शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जी हां हम बात कर रहे हैं फातिमा शेख जो एक महान नारीवादी समाज सेविका और व्याख्यात शिक्षिका थीं, जिन्होंने भारत में पहला महिला स्कूल खोला और वह पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका बनी और जिन्होंने महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया। फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ और उनके परिवार ने शिक्षा को बहुत महत्व दिया था। फातिमा शेख ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर प्राप्त की थी। उन्होंने उर्दू, फारसी और अरबी भाषाओं में महारत हासिल की थी। इसके अलावा, उन्होंने घर पर ही संगीत और नृत्य की शिक्षा भी प्राप्त की थी।
आजादी के समय जब समाज सुधार का कार्य चल रहा था उस समय सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फूले इन दोनों के सहयोग से उन्होंने समाज सुधार में अपनी विशेष भूमिका निभाई । जिस घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले रहती थीं, उस घर में मियां उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख रहती थीं। एसा बताया जाता है की दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए अपने काम के परिणामस्वरूप, फुले के पिता ने उनके परिवार को घर से निकाल दिया। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले की मुलाकात एक टीचर ट्रेनिंग संस्था में हुई थी जिसे अमेरिकी मिशनरी सिंथिया फेरर संचालित करती थी। इसी दौरान दोनों की मुलाकात हुई और एक दूसरे के साथ विचारों के आदानप्रदान के जरिए दोनों में काफी गहरी मित्रता भी हो गई जिसके बाद दोनों ने मिलकर समाज में पिछड़ी महिलाओं को उनके शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया गया। फातिमा शेख को भारत की पहली महिला शिक्षिका और पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका कहा जाता है और उनके योगदान के लिए केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व में अन्य स्थानों पर भी उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है और उनका उदाहरण भी दिया जाता है। फातिमाशेख जी खुद मुस्लिम संप्रदाय से संबंध रखती थी इसलिए वो मुस्लिम समाज में महिलाओं के साथ हो रहे उत्पीडन और उनके शिक्षा के अधिकारों का हनन के बारे में अच्छे से जानती थी हालांकि उन्होंने समाज में पिछडी महिलाओं की शिक्षा विकास के लिए किसी जाति धर्म या अन्य भावना के आधार पर प्रयास नहीं किए बल्कि समान रूप से सभी महिलाओं के शिक्षा के अधिकार को देने के लिए प्रयास किया जिनमें दलित वर्ग मुस्लिम वर्ग और अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाएं शामिल थी।आधुनिक भारत में पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक के रूप में, उन्होंने स्कूलों में दलित बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। उन्होंने सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के साथ दलितों
में शिक्षा के प्रसार में काम किया। फातिमा शेख ने 1848 में पुणे में एक स्कूल खोला, जो भारत का पहला महिला स्कूल था। इस स्कूल में उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए काम किया और उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रयास किया। फातिमा शेख जी ने सन 1848 ईस्वी में स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना की उन्होंने इस पुस्तकालय की स्थापना अपने और अपने भाई उस्मान के घर में ही की, जिसको उस समय भारत का पहला ऐसा विद्यालय माना गया जहां लड़कियों को शिक्षा दी गई। सावित्रीबाई फुले ने कुल 5 स्कूलों की स्थापना की थी जिन सभी में फातिमा शेख ने बच्चों को शिक्षा देकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी इतना ही नहीं 1851 में फातिमा शेख ने 2 विद्यालयों की स्थापना में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।फातिमा शेख ने अपने स्कूल में महिलाओं को विभिन्न विषयों में शिक्षित किया था, जिनमें उर्दू, फारसी, अरबी, गणित, विज्ञान और संगीत शामिल थे। उन्होंने अपने छात्रों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रयास किया और उन्हे अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। फातिमा शेख की शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान को गूगल डूडल ने भी सम्मानित किया है। उनके 191वें जन्मदिन पर गूगल डूडल ने उनकी तस्वीर प्रकाशित की थी फातिमा शेख ने शिक्षा में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए काम किया और उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रयास किया। फातिमा शेख की विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है। उन्होंने महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए बहुत काम किया और उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रयास किया। फातिमा शेख की कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में हमारा योगदान समाज को सुधारने में बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। फातिमा शेख जैसी महिलाएं हमारे समाज के लिए और हमारे समाज की महिलाओं के लिए एक आदर्श है जिससे हमारे समाज की महिलाओं को सीख लेनी चाहिए और निडर होकर निस्वार्थ भाव से समाज के निर्माण और उत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। उनकी विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है और हमें समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती है।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा