“विकसित भारत की दिशा में वैवाहिक जीवन: दिलों का मिलन, न कि सामाजिक बाध्यता” (प्रेम, समर्पण और समझ पर केंद्रित)
डॉ प्रमोद कुमार

भारतवर्ष में वैवाहिक संस्था सदियों से समाज की मूल आधारशिला रही है। विवाह न केवल दो व्यक्तियों का मेल है, बल्कि दो परिवारों, परंपराओं और जीवन दृष्टियों का संगम भी है। किंतु विकसित भारत की ओर बढ़ते इस संक्रमण काल में विवाह की परिभाषा, उद्देश्य और स्वरूप में व्यापक परिवर्तन देखा जा रहा है। जहां पहले विवाह सामाजिक बाध्यता और रीति-रिवाजों के पालन का परिणाम था, वहीं अब यह दो सच्चे दिलों, विचारों और भावनाओं के मेल का माध्यम बनता जा रहा है।
इस लेख में हम वैवाहिक जीवन को तीन प्रमुख तत्वों — प्रेम, समर्पण और समझ — के आलोक में देखने का प्रयास करेंगे और यह विश्लेषण करेंगे कि ये तत्व विकसित भारत के वैवाहिक ढांचे को किस प्रकार नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
1. पारंपरिक भारत में वैवाहिक जीवन: सामाजिक अनुबंध का स्वरूप
1.1 सामाजिक स्वीकार्यता का दायरा
परंपरागत रूप से विवाह को सामाजिक संस्था के रूप में देखा गया जिसमें जाति, धर्म, वर्ग और परिवार की सहमति ही अंतिम मानी जाती थी। प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता गौण थे।
1.2 दहेज, जातिवाद और लैंगिक असमानता की जड़ें
बहुतेरे विवाह बिना व्यक्तिगत समझ के होते थे, जिसमें स्त्री की भूमिका केवल गृहिणी या संतान जनक के रूप में सीमित मानी जाती थी। इसमें प्रेम और आत्मिक बंधन की कोई निश्चित भूमिका नहीं होती थी।
2. बदलते भारत की वैवाहिक सोच
2.1 शिक्षा और जागरूकता का प्रभाव
नई पीढ़ी शिक्षित है, स्वतंत्र सोच रखती है और विवाह को एक समझौते की बजाय जीवन की साझेदारी के रूप में देखती है। अब विवाह दो व्यक्तियों के बीच पारस्परिक समर्पण का प्रमाण है।
2.2 स्त्री सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता
अब महिलाएं आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र हैं, और वे अपने जीवनसाथी के चयन में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। विवाह में उनकी सहमति और इच्छाएं अधिक महत्व रखने लगी हैं।
3. प्रेम: वैवाहिक जीवन की आत्मा
3.1 प्रेम का स्वरूप
प्रेम केवल भावनात्मक आकर्षण नहीं, बल्कि गहरी आत्मीयता है जो विश्वास, सहयोग और सम्मान के साथ विकसित होती है। विकसित भारत में प्रेम को विवाह की नींव माना जा रहा है।
3.2 प्रेम और स्वतंत्रता का सामंजस्य
आज का युवा वर्ग यह जानता है कि प्रेम में बंधन नहीं, बल्कि स्वतंत्रता होती है। जब दोनों पक्षों को खुलकर अपनी बात कहने, जीने और निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है, तभी प्रेम पनपता है।
3.3 अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाहों में प्रेम की भूमिका
विकसित भारत की दिशा में सबसे बड़ा संकेत यह है कि युवा अब जाति-धर्म से परे जाकर प्रेम को प्राथमिकता दे रहे हैं।
4. समर्पण: वैवाहिक जीवन का स्थायित्व
4.1 समर्पण का तात्पर्य
समर्पण का अर्थ है निस्वार्थ भाव से एक-दूसरे की भलाई और सुख के लिए प्रयत्नशील रहना। यह केवल जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक भावात्मक कर्तव्य है।
4.2 समर्पण बनाम स्वार्थ
जब वैवाहिक जीवन में केवल अपने अधिकारों की मांग होती है, तब वह संबंध टूटने लगता है। समर्पण का अभाव ही तलाक और वैवाहिक विघटन का प्रमुख कारण बनता है।
4.3 समर्पण और आत्मसम्मान में संतुलन
समर्पण का अर्थ गुलामी नहीं है। विकसित भारत में अब यह समझ पनप रही है कि आत्मसम्मान के साथ समर्पण किया जा सकता है।
5. समझ: वैवाहिक जीवन की रीढ़
5.1 समझ की आवश्यकता
हर व्यक्ति भिन्न होता है — उसकी परवरिश, सोच, भावनाएं और अपेक्षाएं। वैवाहिक जीवन में इन विविधताओं को समझना और स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है।
5.2 संवाद और धैर्य
जहां संवाद खुला हो, वहां गलतफहमियों की गुंजाइश नहीं रहती। धैर्य और सुनने की कला ही रिश्तों को मजबूत करती है।
5.3 संघर्ष का समाधान: समझदारी से नहीं, जीत-हार से नहीं
विकसित भारत के वैवाहिक जीवन में लड़ाई या बहस का अर्थ अब ‘कौन सही’ नहीं बल्कि ‘हम कैसे ठीक रहें’ होता जा रहा है।
6. विकसित भारत में विवाह का नया मॉडल
6.1 साथी नहीं, सहयोगी
पति-पत्नी अब केवल सामाजिक भूमिका नहीं निभा रहे, वे एक-दूसरे के जीवन के सहयात्री और सहयोगी बन रहे हैं।
6.2 लिंगभेद की दीवारें टूटती हुईं
घरेलू कार्यों में सहभागिता, निर्णय प्रक्रिया में समान भागीदारी, और आर्थिक स्वतंत्रता को लेकर एक नई लहर आई है।
6.3 विवाह से पहले समझ और चयन की प्रक्रिया
लव मैरिज, लिव-इन संबंध, और मैरिज काउंसलिंग जैसे नए विकल्प समाज में धीरे-धीरे स्वीकार्य हो रहे हैं।
7. वैवाहिक जीवन की चुनौतियाँ: मानसिक और सामाजिक
7.1 सामाजिक अपेक्षाएं और हस्तक्षेप
अब भी कई बार परिवार या समाज वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करता है जिससे संबंध प्रभावित होते हैं।
7.2 मानसिक स्वास्थ्य और वैवाहिक तनाव
डिप्रेशन, चिंता, और आत्महत्या जैसे गंभीर विषय वैवाहिक असंतोष से जुड़ते जा रहे हैं। प्रेम और समझ की कमी इसका मूल कारण है।
7.3 विवाह में ‘स्व’ की पहचान
कई बार विवाह में एक व्यक्ति अपनी पहचान खो देता है। विकसित भारत में यह चेतना आई है कि विवाह में दोनों की व्यक्तिगत अस्मिता सुरक्षित रहनी चाहिए।
8. सफल वैवाहिक जीवन के मूल मंत्र: प्रेम, समर्पण और समझ
8.1 प्रेम से उत्पन्न होती है सहानुभूति
जब प्रेम होता है, तब अपने साथी की पीड़ा हमारी पीड़ा बनती है।
8.2 समर्पण से आता है विश्वास
समर्पण वह नींव है जिस पर विश्वास की इमारत खड़ी होती है।
8.3 समझ से टिकता है संबंध
हर रिश्ता समय-समय पर कठिनाइयों से गुजरता है। केवल समझ और धैर्य से ही वह बंधन बना रह सकता है।
9. मीडिया और फिल्मों की भूमिका
9.1 प्रेम और विवाह की आदर्श छवियाँ
फिल्मों और वेब सीरीज में अब विवाह को समता, प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है।
9.2 सामाजिक चेतना और मानसिकता में बदलाव
इन माध्यमों ने युवा वर्ग को पारंपरिक सोच से अलग सोचने की प्रेरणा दी है।
10. आधुनिक उदाहरण: प्रेम, समर्पण और समझ की जीवंत मिसालें
10.1 विराट कोहली और अनुष्का शर्मा: समता और समर्थन का उदाहरण
विराट कोहली (क्रिकेटर) और अनुष्का शर्मा (अभिनेत्री) की जोड़ी आधुनिक वैवाहिक जीवन का आदर्श रूप बन चुकी है। यह दंपति एक-दूसरे के करियर और भावनात्मक स्वास्थ्य को समान महत्व देते हैं। विराट ने कई बार सार्वजनिक रूप से अनुष्का के समर्थन और प्रेरणा को अपने जीवन की सबसे बड़ी ताकत बताया है। जब विराट ने पितृत्व अवकाश लिया और एक महत्वपूर्ण मैच को छोड़कर अनुष्का के साथ उनकी डिलीवरी के समय उपस्थित रहे, तो यह भारतीय पुरुषों के लिए एक नई वैवाहिक समझदारी और समर्पण का उदाहरण बना।
10. 2 साक्षी मलिक और सत्यव्रत कादियान: खेल और संबंध का संतुलन
ओलंपिक पदक विजेता पहलवान साक्षी मलिक और उनके पति सत्यव्रत भी खुद एक पहलवान हैं। दोनों ने न केवल एक-दूसरे के करियर को समर्थन दिया, बल्कि वैवाहिक जीवन और प्रशिक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा। वे यह समझते हैं कि सफलता केवल एक व्यक्ति की नहीं होती, बल्कि उसमें साथी का भी योगदान रहता है। यह जोड़ी उस प्रकार के समर्पण और समझ की मिसाल है, जो विकसित भारत के वैवाहिक दृष्टिकोण का परिचायक है।
10. 3 देवगन-दंपति (अजय देवगन और काजोल): व्यक्तिगत अंतर को स्वीकारने का उदाहरण
अजय देवगन और काजोल दो भिन्न व्यक्तित्वों के उदाहरण हैं — एक गंभीर और शांत, दूसरा हंसमुख और मुखर। फिर भी वर्षों से यह जोड़ी एक सफल वैवाहिक जीवन जी रही है क्योंकि उन्होंने एक-दूसरे के स्वभाव को समझा, स्वीकार किया और सम्मान दिया। यह रिश्तों में “समझ” की असली व अनूठी पहल व मिसाल है।
10. 4 मिलिंद सोमन और अंकिता कोंवर: उम्र और समाज से परे प्रेम का उदाहरण
मिलिंद सोमन और अंकिता कोंवर की शादी ने समाज की पारंपरिक सोच को चुनौती दी। दोनों के बीच उम्र का बड़ा अंतर होते हुए भी उन्होंने प्रेम और समानता को प्राथमिकता दी। उनकी शादी में यह दिखता है कि जब दो दिल जुड़ते हैं तो सामाजिक अपेक्षाएं गौण हो जाती हैं। वे पर्यावरण, स्वास्थ्य और योग जैसे जीवन मूल्यों को साझा करते हैं, जो एक आधुनिक दांपत्य संबंध में साझा दृष्टिकोण और समर्पण का संकेत है।
10. 5 टीना डाबी (आईएएस) और प्रदीप गवांडे (आईएएस) दूसरी शादी और सामाजिक बाध्यता से परे निर्णय
टीना डाबी, जिन्होंने अपने पहले विवाह से अलग होने के बाद दूसरी शादी की, और डॉ. प्रदीप गवांडे के साथ जीवन की नई शुरुआत की। उन्होंने सामाजिक दबाव और आलोचनाओं के बावजूद व्यक्तिगत खुशी और आत्म-सम्मान को महत्व दिया। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि आज का भारत, विशेषकर शहरी और शिक्षित तबका, अब विवाह को “अनिवार्य सामाजिक बंधन” नहीं बल्कि “व्यक्तिगत संतुलन” और सार्थक जीवनसाथी के रूप में देखने लगा है।
10. 6 सोशल मीडिया युग की नई पीढ़ी: खुला संवाद और समझ
आज के समय में कई युवा दंपति यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स के माध्यम से अपने वैवाहिक अनुभव साझा करते हैं, जैसे कि (गौरव तनेजा और ऋतु राठी) दोनों ही व्यस्त पेशेवर जीवन के बावजूद एक-दूसरे के लिए समय निकालते हैं। वे सार्वजनिक रूप से यह बताते हैं कि पारिवारिक जीवन को संतुलित करने के लिए संवाद, समझ और समर्थन कितना ज़रूरी है।
10. 7 LGBTQ+ समुदाय और समलैंगिक विवाह की स्वीकृति
भारत में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने के बाद कई समलैंगिक जोड़ों ने अपने रिश्तों को सार्वजनिक किया। भले ही अभी तक समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता नहीं मिली है, लेकिन अनेक जोड़ों ने समाज की रूढ़ियों से ऊपर उठकर अपने प्रेम और समर्पण को स्वीकारा है। उदाहरण: सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय दबंग हैदराबाद के ये दो युवा पुरुष पहली बार भारत में LGBTQ+ यूनियन सेरेमनी करने वाले चर्चित जोड़े बने। उनका साहस और आपसी प्रेम यह दर्शाता है कि विवाह से अधिक महत्वपूर्ण है — एक-दूसरे के लिए समर्पित होना।
10. 8 करियर-उन्मुख दंपति: कार्य-जीवन संतुलन का आधुनिक दृष्टिकोण
आज कई युगल जो वैवाहिक जीवन और अपने करियर दोनों को समान रूप से प्राथमिकता दे रहे हैं, यह साबित करते हैं कि शादी केवल गृहस्थ जीवन तक सीमित नहीं। जैसे कि: IAS जोड़े: कई प्रशासनिक अधिकारी जैसे पति-पत्नी (समिता सभरवाल और अकून सभरवाल) मिलकर समाजसेवा और पारिवारिक जीवन दोनों में सफल उदाहरण पेश कर रहे हैं।
10. 9 आम लोगों की प्रेरणादायक कहानियाँ (सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हुईं)
एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक बुजुर्ग दंपति — 80 वर्षीय पति अपनी पत्नी को भोजन खिलाते हैं। यह सादगीभरा दृश्य इंटरनेट पर वायरल हो गया और लोगों को सिखाया कि समर्पण उम्र नहीं देखता। एक महिला जो अपने पति के लकवाग्रस्त होने के बाद भी 10 साल से उनकी देखभाल कर रही है, समाज में ‘व्रत’, ‘करवा चौथ’ की जगह सच्चे समर्पण का उदाहरण बन चुकी है।
11. निष्कर्ष: विकसित भारत के वैवाहिक जीवन की नई परिभाषा
विकसित भारत में विवाह अब सामाजिक अनुबंध मात्र नहीं रहा। यह दो हृदयों, दो आत्माओं और दो स्वतंत्र व्यक्तित्वों का संगम है जो प्रेम, समर्पण और समझ की बुनियाद पर टिका होता है। यह वह रिश्ता है जिसमें अधिकारों की नहीं, कर्तव्यों की चिंता होती है; जहां बंधन नहीं, बल्कि साथ चलने की भावना होती है।
इन आधुनिक उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि आज के भारत में विवाह केवल ‘कुंडली मिलान’ या ‘जाति अनुसार जोड़ा तय’ करने का साधन नहीं रह गया है, बल्कि यह प्रेम, समर्पण और समझ के आधार पर टिका जीवन का पवित्र अनुबंध बन चुका है । विकसित भारत की दिशा में यह परिवर्तन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जब वैवाहिक जीवन में मानसिक संतुलन, परस्पर सम्मान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समावेश होता है, तभी परिवार और समाज स्वस्थ बनते हैं।
यदि भारत को सचमुच विकसित बनाना है तो वैवाहिक जीवन को भी उसी दृष्टिकोण से देखना होगा — जिसमें जाति, वर्ग, लिंग और सामाजिक दबाव की बाध्यता न होकर केवल प्रेम, समर्पण और समझ का स्थान हो। तभी नवाचार और विकसित भारत लक्ष्य-2047 के उद्देश्यों की पूर्ति होगी और भारत राष्ट्र एक कल्याणकारी एवम मानवतावादी राज्य के रूप में विख्यात व उदयीमान रहेगा और साथ ही साथ एक भारत श्रेष्ठ भारत, अखण्ड भारत समृद्ध भारत व सशक्त भारत विकसित भारत का नवनिर्माण का सपना साकार होगा।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा