
आज चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है प्रकृति पूरे रौद्र रूप में है मानो अपने ऊपर हुए अत्याचार का एक एक हिसाब कर रही हो, अब क्या सच्चाई है ये या तो प्रकृति समझ सकती है या फिर मनुष्य परन्तु इस आपदा का क्या निदान है ये केवल और केवल मनुष्य के हाथ में है। आपदा एक अप्रत्याशित और विनाशकारी घटना है, जो प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से होती है, जिससे समुदाय के सामान्य कामकाज में गंभीर व्यवधान उत्पन्न होता है और बड़े पैमाने पर जान-माल, संपत्ति तथा पर्यावरण का नुकसान होता है. आपदाएं मानव, भौतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान का कारण बनती हैं, जिसकी भरपाई प्रभावित समुदाय अपने संसाधनों से करने में सक्षम नहीं होता है।
अब जब आपदा इतनी भयावह होती है तो मनुष्य ऐसे कार्य क्या सोच कर करता है जिससे किसी को भी किसी तरह से नुकसान होता हो, प्राकृतिक आपदा मानव जनित आपदा की तरह नहीं होता जो तुरन्त घटित होता हो यह एक लंबी प्रक्रिया होती है जो कुछ समयावधि के बाद असर दिखाती है, अगर हम पेड़ काट रहे हैं और लगातार काटे जा रहे हैं तो उससे जुड़े जीतने भी तत्व होगे वो सभी प्रभावित होंगे और जब प्रभावित होंगे – प्रतिक्रिया देंगे तो वहां के वातावरण पर असर पड़ना लाजिमी है, परिणाम स्वरूप वातावरण में रह रहे मनुष्य जीव जन्तु नदी नाले पहाड़ सभी प्रभावित होंगे-वही हो रहा है। हम जंगलों को काटे जा रहे हैं, नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं, पहाड़ों को खोखला कर रहे हैं, वायुमंडल में विषैले धुएँ का उत्सर्जन कर रहे हैं, चारों तरफ असंतुलन पैदा कर रहे हैं।
जहां एक ओर आपदा हमें चेतावनी देती है कि हमारी जीवनशैली गलत दिशा में जा रही है वहीं वह हमें अवसर भी देती है कि पुराने ढर्रे को बदल कर नई शुरुआत करने का, हर आपदा के पीछे छिपा संदेश यही है – “रुको, सोचो और सही दिशा में कदम बढ़ाओ।”
* बाढ़ हमें जल प्रबंधन और नदियों की सफाई का महत्व याद दिलाती है।
* भूकंप हमें टिकाऊ और सुरक्षित निर्माण तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
* सूखा हमें जल-संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की अनिवार्यता समझाता है।
* महामारी हमें स्वास्थ्य, स्वच्छता और सामाजिक संवेदनशीलता का महत्व सिखाती है।
* तकनीकी और वैज्ञानिक नवाचारों की प्रेरणा मिलती है।
* समाज में सहयोग, संवेदना और एकजुटता की भावना बढ़ती है।
* हम अपने बच्चों को पर्यावरण और संसाधनों के संरक्षण का महत्व सिखा सकते हैं।
आपदा केवल एक त्रासदी नहीं है। यह हमें हमारे कर्मों का दर्पण दिखाती है। यह चेतावनी भी है और अवसर भी, चेतावनी इसलिए कि हम अपने लालच और गलतियों से सबक लें। अवसर इसलिए कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित, संतुलित और सुखद भविष्य बना सकें। उनसे सीख कर अपने और समाज के जीवन को संवार सके।