सरदार पटेल के स्वप्न की दृष्टि और वर्तमान नीतियाँ: एक भारत, श्रेष्ठ भारत एवं अखण्ड व विकसित भारत के आदर्श की प्राप्ति
डॉ प्रमोद कुमार

सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन दुर्लभ महामानवों में से थे जिन्होंने राजनीतिक दृष्टि के साथ-साथ संगठन, एकता और प्रशासन के क्षेत्र में असाधारण दक्षता प्रदर्शित की। वे न केवल भारत के लौहपुरुष थे, बल्कि भारत की अखण्डता, संघीय संरचना और प्रशासनिक सुदृढ़ता के शिल्पकार भी थे। उनकी दृष्टि में ‘एक भारत’ का अर्थ मात्र भौगोलिक एकता नहीं था, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और नैतिक एकता भी थी। उन्होंने जिस ‘अखण्ड भारत’ का स्वप्न देखा था, वह केवल सीमाओं का संरक्षण नहीं, बल्कि नागरिकों के बीच भावनात्मक एकत्व, विश्वास और विकास के समान अवसरों पर आधारित था।
स्वतंत्र भारत के निर्माण के समय 562 रियासतों को एक राष्ट्र के सूत्र में पिरोना एक असंभव कार्य प्रतीत होता था, किंतु सरदार पटेल की दूरदर्शिता, दृढ़ इच्छाशक्ति और कूटनीतिक निपुणता ने उसे संभव बना दिया। उन्होंने लौह-संकल्प के साथ यह सिद्ध किया कि राजनीतिक एकता के बिना राष्ट्र का अस्तित्व अधूरा है। किन्तु पटेल का स्वप्न केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं था — उनका सपना था एक ऐसा भारत जो सांस्कृतिक रूप से अखण्ड, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, और सामाजिक रूप से समरस हो। वे जानते थे कि केवल संविधानिक ढाँचा राष्ट्र को मजबूत नहीं बनाता, बल्कि उसके पीछे नागरिकों की नैतिक चेतना, समरसता और नीतिपरक शासन व्यवस्था आवश्यक होती है। आज जब भारत सरकार “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” और “विकसित भारत 2047” जैसे अभियानों की दिशा में अग्रसर है, तो यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या यह प्रयास सरदार पटेल की उस मूल दृष्टि के अनुरूप हैं या फिर उनके स्वप्न को मात्र प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। अखण्डता का अर्थ केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं, बल्कि विचारों, मूल्यों, संस्कृति और विकास की समान धारा को प्रवाहित करना है।
वर्तमान शासन की नीतियों पर यदि दृष्टि डालें तो भारत ने विगत कुछ वर्षों में राष्ट्रीय एकता और विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। “एक भारत श्रेष्ठ भारत” कार्यक्रम राज्यों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देने का प्रयास है, जो सरदार पटेल की उस भावनात्मक एकता की अवधारणा से मेल खाता है, जिसमें भारत को विविधता में एकता का उदाहरण माना गया था। इस पहल के अंतर्गत विभिन्न राज्यों को ‘सांस्कृतिक साझेदार’ के रूप में जोड़ा गया है ताकि नागरिकों में पारस्परिक सम्मान और समझ विकसित हो सके। यह विचार पटेल की उस मान्यता का विस्तार है जिसमें वे मानते थे कि भारत की विविधता ही उसकी शक्ति है, और उस विविधता को एक राष्ट्रीय पहचान में रूपांतरित करना ही सच्ची अखण्डता है।
आर्थिक दृष्टि से देखें तो “विकसित भारत” का लक्ष्य भी सरदार पटेल की आत्मनिर्भरता और ग्रामीण सशक्तिकरण की सोच को आगे बढ़ाने वाला है। पटेल स्वयं किसानों के नेता थे, जिन्होंने बारडोली सत्याग्रह में किसान समुदाय की एकजुटता से अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। उनकी दृष्टि में भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता का आधार कृषि, श्रम और स्थानीय उद्योगों में निहित था। वर्तमान में भारत सरकार “आत्मनिर्भर भारत”, “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसी नीतियों के माध्यम से स्वदेशी उत्पादन, नवाचार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित कर रही है। यह दिशा निस्संदेह पटेल के आर्थिक दृष्टिकोण की समकालीन अभिव्यक्ति है। किंतु यह भी सत्य है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता तभी संभव है जब विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे।
पटेल की दृष्टि में विकास का अर्थ केवल GDP की वृद्धि नहीं था, बल्कि हर नागरिक को समान अवसर, शिक्षा, रोजगार और सम्मान का अधिकार देना था। वर्तमान नीतियाँ, विशेषकर ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण, डिजिटल समावेशन, और कौशल विकास मिशन, इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। तथापि, इन योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में कई स्तरों पर चुनौतियाँ हैं— जैसे- नौकरशाही की जड़ता, राजनीतिक स्वार्थ, क्षेत्रीय असमानताएँ, और नीति क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी। ये वही तत्व हैं जिनसे पटेल सदैव सावधान रहने की बात कहते थे, क्योंकि उनके अनुसार राष्ट्र की एकता तब तक सुरक्षित नहीं जब तक शासन-प्रशासन उत्तरदायी, पारदर्शी और नैतिक न हो।
सरदार पटेल के स्वप्न का एक प्रमुख आयाम सामाजिक समरसता था। वे जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव को राष्ट्र की एकता के लिए विष मानते थे। वर्तमान भारत में जहाँ एक ओर संविधानिक समानता के सिद्धांतों को लागू करने के प्रयास जारी हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक तनाव, धार्मिक असहिष्णुता और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी चुनौतियाँ इस समरसता को प्रभावित कर रही हैं। “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की अवधारणा तभी सार्थक हो सकती है जब नीति और समाज दोनों मिलकर उस मानवीय एकता को पुनर्स्थापित करें जो पटेल की दृष्टि का केंद्र थी।
सरकार की विदेश नीति के संदर्भ में भी पटेल की दृष्टि प्रेरणास्रोत है। उन्होंने कहा था कि एक मजबूत और संगठित भारत ही विश्व मंच पर सम्मान पा सकता है। आज भारत की वैश्विक स्थिति सशक्त हुई है — अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में नेतृत्वकारी भूमिका, रक्षा-सामरिक साझेदारी, और वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनना — यह सब उस आत्मविश्वासी भारत की झलक है जिसकी नींव पटेल ने रखी थी। फिर भी, यह विकास तभी टिकाऊ होगा जब आंतरिक स्तर पर न्याय, समानता और सामाजिक सुरक्षा की भावना सुदृढ़ होगी। विकसित भारत का सपना केवल तकनीकी, औद्योगिक या आर्थिक प्रगति तक सीमित नहीं रह सकता। यह उस नैतिक और नागरिक चेतना से जुड़ा है जिसे पटेल भारतीय चरित्र की आत्मा मानते थे। उन्होंने प्रशासनिक सेवा को राष्ट्र सेवा का माध्यम कहा था, न कि सत्ता का साधन। आज जब नौकरशाही और राजनीति के बीच दूरी बढ़ रही है, तब यह आवश्यक है कि शासन तंत्र पटेल की नीतिपरकता, दक्षता और सेवा-भाव से प्रेरणा ले।
वर्तमान भारत में अवसंरचनात्मक विकास के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिले हैं— राजमार्ग, रेल, डिजिटल नेटवर्क, रक्षा क्षमता, ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रम— ये सब अखण्ड और विकसित भारत के भौतिक प्रतीक हैं। किन्तु यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि इस विकास की प्रक्रिया में पर्यावरण, मानवता और नैतिकता की अनदेखी न हो। सरदार पटेल मानते थे कि विकास तभी सार्थक है जब वह जनकल्याण के साथ जुड़ा हो। आज की नीतियों में यदि यह तत्व कमजोर पड़ता है, तो विकास अपने मूल उद्देश्य से भटक सकता है। अखंड भारत के स्वप्न की समीक्षा में यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि पटेल की दृष्टि में “अखंडता” का अर्थ राजनीतिक विस्तारवाद नहीं था। वे सांस्कृतिक एकता, ऐतिहासिक चेतना और समान राष्ट्रीय भावना की बात करते थे। आज जब पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में तनाव और सीमाओं पर चुनौतियाँ बनी हुई हैं, तब भारत को पटेल की कूटनीतिक दृढ़ता और संयम दोनों की आवश्यकता है।
विकसित भारत 2047 का लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकता है जब भारत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, अनुसंधान और नैतिक शासन के क्षेत्र में समान गति से आगे बढ़े। सरदार पटेल ने कहा था कि “नागरिक का चरित्र ही राष्ट्र की असली शक्ति है।” इस दृष्टि से देखें तो नीतियों के साथ-साथ समाज के नैतिक उत्थान की भी उतनी ही आवश्यकता है। जब तक नागरिक स्वयं जिम्मेदारी, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना नहीं अपनाते, तब तक कोई भी नीति स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकती। आज भारत कई मोर्चों पर आगे बढ़ रहा है — आर्थिक मजबूती, तकनीकी नवाचार, डिजिटल समावेशन, अंतर्राष्ट्रीय पहचान — परंतु सामाजिक असमानता, बेरोज़गारी, शिक्षा में असंतुलन और पर्यावरणीय संकट जैसी चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं। इन सबके बीच सरदार पटेल का स्वप्न हमें एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है — जिसमें विकास और नैतिकता, एकता और विविधता, शक्ति और सेवा, सबका संतुलित समन्वय हो।
अंततः, यदि हम पटेल की दृष्टि को वर्तमान नीतियों के साथ जोड़कर देखें तो स्पष्ट होता है कि भारत की दिशा सही है, परंतु गति को अधिक संवेदनशील और जनोन्मुख बनाना आवश्यक है। अखण्ड भारत केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और नैतिक एकता की परिणति है। श्रेष्ठ भारत तभी संभव है जब हर नागरिक अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व को समझे। और विकसित भारत तभी साकार होगा जब नीतियाँ केवल कागज़ी नहीं, बल्कि जीवन में उतरें। सरदार पटेल का स्वप्न आज भी जीवंत है — हर उस किसान में जो आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहा है, हर उस युवा में जो नवाचार का सपना देखता है, और हर उस नागरिक में जो एकता, समानता और न्याय में विश्वास रखता है। सरकार की नीतियाँ इस स्वप्न को साकार करने का माध्यम हैं, किंतु इन नीतियों की सफलता तभी सुनिश्चित होगी जब वे पटेल की दृष्टि की आत्मा — नैतिक शासन, सामाजिक समरसता और नागरिक उत्तरदायित्व — से जुड़ी रहें।
अतः यह कहा जा सकता है कि “सरदार पटेल के स्वप्न की दृष्टि और वर्तमान नीतियाँ” के बीच एक सेतु निर्मित हो रहा है। यह सेतु केवल योजनाओं से नहीं, बल्कि जन-भावना और नीति-संवेदना के समन्वय से बनेगा। जब नीति और निष्ठा, शासन और सेवा, विकास और मूल्य — सब एक दिशा में प्रवाहित होंगे, तभी “एक भारत, श्रेष्ठ भारत और अखण्ड भारत” का स्वप्न वास्तव में “विकसित भारत” के रूप में मूर्त रूप धारण करेगा। यही सरदार पटेल की सच्ची श्रद्धांजलि होगी — जब भारत केवल शक्तिशाली नहीं, बल्कि समरस, आत्मनिर्भर और मानवीय राष्ट्र के रूप में विश्व के सम्मुख खड़ा होगा।

डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा



