माता रमाबाई आंबेडकर: सत्य, त्याग, कर्त्तव्यपरायण, प्रेम, बलिदान और साहस की प्रतीक व प्रतिमूर्ति
डॉ प्रमोद कुमार
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डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्षों, त्याग, और सामाजिक परिवर्तन की एक प्रेरणादायक गाथा है। उनके विचार, संघर्ष और उपलब्धियों ने भारतीय समाज को नया स्वरूप दिया, लेकिन उनके इस महान व्यक्तित्व के निर्माण में उनकी धर्मपत्नी माता रमाबाई आंबेडकर की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता। माता रमाबाई का जीवन प्रेम, त्याग, बलिदान और साहस का प्रतीक था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने पति को न केवल सहारा दिया, बल्कि उनके संघर्षों में संबल बनीं। यह लेख माता रमाबाई के जीवन, उनके त्याग और डॉ. आंबेडकर के जीवन में उनके योगदान को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करता है।
माता रमाबाई का प्रारंभिक जीवन:
रमाबाई का जन्म 1897 में एक गरीब और अछूत माने जाने वाले परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता समाज के सबसे वंचित वर्ग से थे और अत्यधिक गरीबी में जीवनयापन करते थे। बचपन से ही उन्हें कठिनाइयों और अभावों का सामना करना पड़ा। जब वे छोटी थीं, तब उनके माता-पिता का निधन हो गया और वे अपने रिश्तेदारों के साथ जीवन व्यतीत करने लगीं।
गरीबी और संसाधनों की कमी के बावजूद, रमाबाई में सहनशीलता, धैर्य और दृढ़ संकल्प की अद्वितीय क्षमता थी। उन्होंने बचपन में ही अपने जीवन में आई कठोर परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया और अपने कर्तव्यों का पालन करने लगीं।
भीमराव आंबेडकर और रमाबाई का विवाह:
1906 में, जब भीमराव आंबेडकर मात्र 15 वर्ष के थे और रमाबाई 9 वर्ष की थीं, तब दोनों का विवाह संपन्न हुआ। उस समय भीमराव अपने शिक्षा जीवन की शुरुआत कर रहे थे और उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना संजोया था। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं थी।
विवाह के बाद, रमाबाई ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया। उनके लिए यह आसान नहीं था, क्योंकि एक ओर वे गरीबी और समाज की बेड़ियों से जूझ रही थीं, वहीं दूसरी ओर उनके पति की शिक्षा और समाज सुधार की यात्रा कठिनाईयों से भरी हुई थी।
बाबा साहेब आंबेडकर व रमाबाई के बीच सुंदर ब्रतांत:
एक बार रमाबाई जिनको डॉ आंबेडकर प्यार से रामू बुलाते थे, ने बाबा साहब से कहा कि लोग आपको कोई बाबा साहब कहकर बुलाता है तो कोई आपको बाबा साहेब, और मैं आपको साहिब, मुझे अपना तो समझ आता है लेकिन वाकी लोगो का नही ऐसा क्यों ??? इस बात पर बाबा साहब ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया बोले कि रामू आप बहुत भोली हो सुनो लोग ऐसा क्यों बोलते है, जो लोग मुझसे प्यार करते है मेरी बात का अनुसरण करते है उनके लिए मैं उनका साहेब हू और जो मेरे अधीनस्थ सेवा में है उनका साहब और आपका साहिब। इस ज़बाब को सुनकर माता रमाबाई वहां से मुस्कराते हुए ग्रह कार्य के लिए चली गई।
माता रमाबाई का त्याग और संघर्ष:
भीमराव आंबेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (इंग्लैंड) में पढ़ाई की। इस दौरान रमाबाई ने अनेक कष्ट सहे। भीमराव आंबेडकर के विदेश जाने के बाद, रमाबाई को अत्यंत गरीबी और अभावों का सामना करना पड़ा। उनके पास इतने भी साधन नहीं थे कि वे आरामदायक जीवन बिता सकें।
1. गरीबी का दंश और सहनशीलता:
रमाबाई ने अपने जीवन को सादगी और तपस्या के रूप में जिया। उनके पास न उचित भोजन था, न अच्छे कपड़े और न ही कोई विशेष सुविधा। वे एक छोटे से मकान में रहती थीं, जहां मूलभूत आवश्यकताओं का भी अभाव था। जब बाबा साहेब पढ़ाई करने विदेश चले गए थे तो रमाबाई अपने परिवार का भरण पोषण के लिए गोबर के उपले टोकरी में रखकर शहर जाकर बाजार में बेचकर राशन पानी की व्यवस्था करती थी। उनका जीवन कठिनाईयो से भरा हुआ दयनीय रहा था। वे घर में रहकर भगवान की भक्ति करतीं और अपने पति के लिए प्रार्थना करतीं कि वे अपने लक्ष्य को पूरा कर सकें। उन्होंने कभी भी अपने संघर्षों की शिकायत नहीं की और अपने पति को पूरी तरह से सहयोग दिया।
2. पति के प्रति प्रेम और समर्पण:
रमाबाई न केवल एक समर्पित पत्नी थीं, बल्कि वे भीमराव आंबेडकर के सबसे बड़े प्रेरणा स्रोतों में से एक थीं। वे हमेशा उनके कार्यों का समर्थन करतीं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करतीं। जब भीमराव आंबेडकर विदेश में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब रमाबाई ने बड़ी कठिनाइयों को सहन किया। कई बार उन्हें भूखा भी रहना पड़ता था, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने पति को शिक्षा छोड़ने के लिए नहीं कहा। वे जानती थीं कि भीमराव आंबेडकर का शिक्षित होना केवल उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए आवश्यक है।
रमाबाई और बाबा साहेब के जीवन के कठिन दौर:
शिक्षा पूरी करने के बाद जब डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत लौटे, तो उन्होंने अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। यह लड़ाई आसान नहीं थी। समाज में व्याप्त कट्टरता और असमानता के खिलाफ लड़ना उनके लिए एक बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस संघर्ष में माता रमाबाई ने उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने अपने पति को मानसिक और भावनात्मक रूप से संबल दिया। वे हर कठिन परिस्थिति में उनके साथ खड़ी रहीं और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहीं।
1. सामाजिक कार्यों में समर्थन:
डॉ. आंबेडकर जब समाज सुधार और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब वे अक्सर घर से दूर रहते थे। इस दौरान रमाबाई ने अकेले घर की पूरी जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने अपने पति के कार्यों को प्राथमिकता दी और कभी भी उनसे कोई शिकायत नहीं की।
2. बीमारी और बलिदान:
लगातार संघर्षों और कठिनाइयों के कारण रमाबाई का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा। अत्यधिक गरीबी और मानसिक तनाव के कारण वे बीमार रहने लगीं। लेकिन उन्होंने अपनी पीड़ा को कभी अपने पति के संघर्षों के आगे नहीं आने दिया।
1929 में, लंबी बीमारी के बाद माता रमाबाई का निधन हो गया। उस समय डॉ. भीमराव आंबेडकर अपने सामाजिक आंदोलन में अत्यधिक व्यस्त थे। रमाबाई का निधन उनके लिए एक अपार क्षति थी, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को आगे बढ़ाना जारी रखा।
डॉ. आंबेडकर की सफलता में रमाबाई का योगदान:
डॉ. आंबेडकर ने हमेशा कहा कि उनकी सफलता के पीछे रमाबाई का बहुत बड़ा योगदान था। यदि रमाबाई ने उन्हें हर परिस्थिति में सहयोग और समर्थन न दिया होता, तो शायद वे इस ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाते। रमाबाई ने न केवल एक पत्नी के रूप में, बल्कि एक सच्ची साथी, मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत के रूप में बाबा साहेब का साथ दिया। उन्होंने अपनी इच्छाओं, आराम, और सुविधाओं का त्याग किया ताकि उनका पति समाज में बदलाव ला सके।
माता रमाबाई का जीवन प्रेम, त्याग, बलिदान और साहस का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में अपने पति का साथ दिया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया। उनका संघर्ष केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि वह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने परिवार और समाज के लिए त्याग करती हैं।
डॉ. भीमराव आंबेडकर को बाबा साहेब बनाने में माता रमाबाई की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे एक आदर्श नारी थीं, जिनके प्रेम, समर्पण और बलिदान ने इतिहास रच दिया।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम, त्याग और समर्पण किसी भी कठिनाई को मात दे सकता है और समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
डॉ प्रमोद कुमार
डिप्टी नोडल अधिकारी, MyGov
डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा