लेख

धर्म वंदना

पं० राम जस त्रिपाठी "नारायण"

प्रकाशित कृति – नारायण दोहावली (751 दोहे)

कृतिकार- पं० राम जस त्रिपाठी “नारायण”
वंदना खंड – धर्म वंदना (पृष्ठ संख्या 23) धारावाहिक प्रेषण

धैर्य क्षमा इंद्रिय दमन, शुद्धि अचौर्य सुकर्म।
बुद्धि ज्ञान अक्रोध सत्, ये दश लक्षण धर्म ॥

धर्म बिना मनु पशु सदृश, हिंसक सिंह समान।
धर्म साथ वह देवता, सहित ज्ञान विज्ञान।।

धर्म बिना विज्ञान को, अंधा जान सुजान।
बिन विज्ञान सुधर्म भी, होता पंगु समान।।

धर्म मात्र पूजा नहीं, मानवीय सद्कर्म।।
तात्कालिक कर्त्तव्य ही, कहलाता है धर्म।।

आपस का सद्भाव ही, है मानव का धर्म।
पूरण यदि यह हो गया, समझें पूरण कर्म।।

धर्म हानि जब -जब हुई, तब-तब हरि अवतार।
लेकर आए जगत में, हरने को भव भार।।

धारण करने योग्य जो, वह कहलाता धर्म।
जिससे जन उन्नति करें, आह्लादित हो मर्म।।

जो पालें नित धर्म को, करते अपने कर्म।
वे होते जग श्रेष्ठतम, सरसित मधुरिम मर्म।।
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प्रकाशन वर्ष- नवंबर 2024 प्रकाशक- नारायण साहित्य शाला प्रकाशन दिल्ली

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